भर्तृहरि महताब भारत के नए प्रो टेम स्पीकर Bhartruhari Mahtab is the new Pro Tem Speaker of India

भर्तृहरि महताब भारत के नए प्रो टेम स्पीकर Bhartruhari Mahtab is the new Pro Tem Speaker of India

सामायिक अध्यक्ष
(प्रोटेम स्पीकर)

आज हम भर्तृहरि महताब भारत के नए प्रो टेम स्पीकर Bhartruhari Mahtab is the new Pro Tem Speaker of India के बारे में जानने वाले है।

आज श्री. भर्तृहरि महताब भारत के नए प्रो टेम स्पीकर Bhartruhari Mahtab is the new Pro Tem Speaker of India के रूप में भारत के राष्ट्रपति श्रीमती. द्रोपदी मुरमुजिने शपथ दिलाई। इस शपथ विधि में भारत के लोकप्रिय पंतप्रधान श्री. नरेन्द्रजी मोदी भी मंत्रिमंडल के साथ शामिल हुए थे। राष्ट्रपति भवन में यह शपथ ग्रहण समारंभ पूरा हुवा।

भर्तृहरि महताब भारत के नए प्रो टेम स्पीकर Bhartruhari Mahtab is the new Pro Tem Speaker of India

आज हम भर्तृहरि महताब भारत के नए प्रो टेम स्पीकर Bhartruhari Mahtab is the new Pro Tem Speaker of India के बारे में जानने वाले है।

1. संविधान में व्यवस्था है कि पिछले लोकसभा के अध्यक्ष नई लोकसभा की पहली बैठक के ठीक पहले तक अपने पद पर रहता है।
2. राष्ट्रपति लोकसभा के एक सदस्य को सामायिक (प्रोटेम स्पीकर) अध्यक्ष नियुक्त करता है।
3. आमतौर पर लोकसभा के वरिष्ठ सदस्य को इसके लिए चुना जाता है।
4. राष्ट्रपति खुद सामायिक (प्रोटेम स्पीकर ) अध्यक्ष को शपथ दिलाता है।
5. सामायिक (प्रोटेम स्पीकर )अध्यक्ष को स्थाई अध्यक्ष के समान ही शक्तियां प्राप्त होती है।
6. वह नई लोकसभा की पहली बैठक में पीठासीन अधिकारी होता है।
7. इसका मुख्य कर्तव्य नए सदस्यों को शपथ दिलवाना है।
8. वह सदन को नए अध्यक्ष का चुनाव करने के लिए मदद करता है।
9. जब नया अध्यक्ष चुन लिया जाता है तो सामायिक (प्रोटेम स्पीकर )अध्यक्ष का पद खुद समाप्त हो जाता है।
10. यह पद अल्पकालिक होता है।

ऐतिहासिक संदर्भ

प्रथम प्रोटेम स्पीकर: गणेश वासुदेव मावलंकर ने 1952 में लोकसभा के पहले प्रोटेम स्पीकर के रूप में कार्य किया।
उल्लेखनीय प्रोटेम स्पीकर:

रबी रे (1989)
इंद्रजीत गुप्ता (1996)
मनोहर जोशी (2004)
वीरेंद्र कुमार (2019): 17वीं लोकसभा में प्रोटेम स्पीकर के रूप में कार्य किया।
कमलनाथ (1980): 1980 के दशक की शुरुआत में प्रोटेम स्पीकर के रूप में उनकी भूमिका उल्लेखनीय रही।

संवैधानिक और कानूनी आधार

संवैधानिक प्रावधान

भारतीय संविधान का अनुच्छेद 93 लोकसभा के अध्यक्ष और उपाध्यक्ष के चुनाव से संबंधित है।
संविधान में प्रोटेम स्पीकर का कोई विशेष उल्लेख नहीं है, लेकिन यह संसदीय प्रक्रियाओं के आधार पर अपनाई जाने वाली परंपरा है।
लोकसभा में प्रक्रिया और कार्य संचालन के नियम: ये नियम प्रोटेम स्पीकर के कामकाज के बारे में दिशा-निर्देश प्रदान करते हैं।

अगर आप को भारत के लोकसभा अध्यक्ष्य की भूमिका Role of the Speaker of the Lok Sabha in India के बारे में जानना है तो निचे दिए गए link पर click करे। ↓↓
https://iasbharti.com/role-of-the-speaker-of-the-lok-sabha-in-india/#more-532

कार्यकाल और अवधि

प्रोटेम स्पीकर का कार्यकाल आम तौर पर बहुत छोटा होता है, जो लोकसभा अध्यक्ष के निर्वाचित होने तक ही रहता है।
कोई निश्चित कार्यकाल नहीं: प्रोटेम स्पीकर की भूमिका समय-बद्ध नहीं होती है, बल्कि विशिष्ट कार्यों को पूरा करने तक ही सीमित होती है।

महत्व और सार्थकता

निरंतरता सुनिश्चित करना:

यह सुनिश्चित करता है कि लोकसभा अपने कार्यकाल की शुरुआत से ही सुचारू रूप से कार्य करे।

परिवर्तन को सुगम बनाना:

प्रारंभिक प्रशासनिक प्रक्रियाओं को संभालकर एक संसदीय कार्यकाल से दूसरे में निर्बाध संक्रमण में मदद करता है।

प्रतीकात्मक भूमिका:

लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं और संसदीय परंपराओं के पालन का प्रतिनिधित्व करता है।

नियमित अध्यक्ष के साथ तुलना

अस्थायी बनाम स्थायी:

प्रोटेम स्पीकर एक अस्थायी नियुक्ति है, जबकि नियमित अध्यक्ष को लोकसभा के पूर्ण कार्यकाल के लिए चुना जाता है।

सीमित शक्तियाँ:

प्रोटेम स्पीकर के पास सीमित शक्तियाँ होती हैं जो प्रारंभिक प्रक्रियात्मक कार्यों पर केंद्रित होती हैं, जबकि नियमित अध्यक्ष के पास विधायी प्रक्रिया में व्यापक शक्तियाँ और ज़िम्मेदारियाँ होती हैं।

चुनौतियाँ और आलोचनाएँ

सीमित मान्यता:

प्रोटेम स्पीकर की भूमिका को अक्सर सार्वजनिक चर्चा में कम मान्यता दी जाती है।

प्रारंभिक सत्रों के प्रबंधन में चुनौतियाँ:

नव निर्वाचित सदस्यों की विविधतापूर्ण प्रकृति को देखते हुए प्रारंभिक सत्रों का सुचारू संचालन सुनिश्चित करना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।

प्रोटेम स्पीकर भारतीय संसद के कामकाज में एक महत्वपूर्ण, यद्यपि अस्थायी, भूमिका निभाता है। सांसदों के व्यवस्थित शपथ ग्रहण को सुनिश्चित करके और अध्यक्ष के चुनाव की देखरेख करके, प्रोटेम स्पीकर भारत में संसदीय प्रक्रियाओं की निरंतरता और अखंडता को बनाए रखने में मदद करता है।

 

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