भारत के लोकसभा अध्यक्ष्य की भूमिका Role of the Speaker of the Lok Sabha in India
लोकसभा अध्यक्ष
भारतीय संसदीय प्रणाली में लोक सभा अध्यक्ष एक महत्वपूर्ण व्यक्ति है, जिसका इतिहास भारत के लोकतंत्र के विकास के साथ गहराई से जुड़ा हुआ है। यहाँ इस पद के ऐतिहासिक विकास और प्रमुख पहलुओं को शामिल करते हुए, बिंदुवार तरीके से विस्तृत विवरण दिया गया है:
Role of the Speaker of the Lok Sabha in India पर जानें। इस लेख में हम बताएंगे कि कैसे लोकसभा अध्यक्ष संसद की कार्यवाही को संचालित करते हैं, उनके अधिकार और जिम्मेदारियां क्या हैं, और यह लोकतंत्र में कैसे महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
पीठासीन अधिकारी: अध्यक्ष भारत की संसद के निचले सदन, लोकसभा का मुख्य पीठासीन अधिकारी होता है।
भारत के अध्यक्षों की सूची (1947 – वर्तमान)
- गणेश वासुदेव मावलंकर (1952-1956): स्वतंत्र भारत के पहले अध्यक्ष। कार्यालय की निष्पक्षता और गरिमा स्थापित करने के लिए जाने जाते हैं।
- एम. अनंथशयनम अयंगर (1956-1962): संसदीय प्रक्रियाओं को मजबूत किया।
- हुकम सिंह (1962-1967): राजनीतिक अस्थिरता के दौर में अहम भूमिका निभाई।
- नीलम संजीव रेड्डी (1967-1969): बाद में भारत के राष्ट्रपति बने।
- गुरदयाल सिंह ढिल्लों (1969-1971, 1971-1975): अशांत समय के दौरान सदन का प्रबंधन किया।
- बली राम भगत (1976-1977): आपातकाल के दौर की देखरेख की।
- के.एस. हेगड़े (1977-1980): संसदीय लोकतंत्र पर जोर दिया।
- बलराम जाखड़ (1980-1989): सबसे लंबे समय तक अध्यक्ष रहे, जिन्हें लोकसभा के आधुनिकीकरण के लिए जाना जाता है।
- रबी राय (1989-1991): पारदर्शिता की वकालत की।
- शिवराज पाटिल (1991-1996): बाद में गृह मंत्री बने।
- पीए संगमा (1996-1998): सदस्यों के आचरण और नैतिकता पर ध्यान केंद्रित किया।
- जीएमसी बालयोगी (1998-2002): पहले दलित अध्यक्ष, पद पर रहते हुए उनकी मृत्यु हो गई।
- मनोहर जोशी (2002-2004): महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री।
- सोमनाथ चटर्जी (2004-2009): इस्तीफा न देने के कारण पार्टी से निष्कासित।
- मीरा कुमार (2009-2014): पहली महिला अध्यक्ष।
- सुमित्रा महाजन (2014-2019): अपने व्यापक विधायी अनुभव के लिए जानी जाती हैं।
- ओम बिरला (2019-वर्तमान): वर्तमान अध्यक्ष, लोकसभा के कामकाज को आधुनिक बनाने के प्रयासों के लिए जाने जाते हैं।
विभिन्न अध्यक्षों द्वारा महत्वपूर्ण योगदान और सुधार
- गणेश वासुदेव मावलंकर: शून्यकाल की अवधारणा सहित विभिन्न प्रक्रियात्मक नवाचारों की शुरुआत की।
बलराम जाखड़: लोकसभा के बुनियादी ढांचे का आधुनिकीकरण किया और कम्प्यूटरीकरण की शुरुआत की।
सोमनाथ चटर्जी: अध्यक्ष के कार्यालय की स्वतंत्रता पर अपने रुख और बहस की गुणवत्ता में सुधार के प्रयासों के लिए जाने जाते हैं।
मीरा कुमार: लैंगिक समानता और महिला सांसदों के लिए बेहतर सुविधाओं की वकालत की।
निर्वाचन एवं पदावली
- पहली बैठक के पश्चात उपस्थित सदस्यों के बीच से अध्यक्षता चुनाव किया जाता है जब अध्यक्ष का स्थान रिक्त होता है तो लोकसभा इस रिक्त स्थान के लिए किसी अन्य सदस्यों को चुनती है। राष्ट्रपति लोकसभा अध्यक्ष के चुनाव की तारीख निर्धारित करता है।
आमतौर पर अध्यक्ष लोकसभा के जीवन काल तक पद धारण करता है। हालांकि इसका पद निम्नलिखित तीन मामलों में से इससे पहले भी समाप्त हो सकता है-
1. यदि वह सदन का सदस्य नहीं रहता।
2. यदि वह उपाध्यक्ष को संबोधित अपने हस्ताक्षर सहित लेख द्वारा पद त्याग करें।
3. यदि लोकसभा के तत्कालीन सदस्य बहुमत से पारित संकल्प द्वारा उसे उसके पद से हटाए ऐसा संकल्प तब तक प्रस्तावित नहीं किया जाएगा जब तक कि उसे संकल्प को प्रस्तावित करने के आशय की कम से कम 14 दिन की सूचना न दे दी गई हो।
- जब अध्यक्ष को हटाने के लिए संकल्प विचाराधीन है तो अध्यक्ष पीठासीन नहीं होगा ,किंतु उसे लोकसभा में बोलने और इसकी कार्यवाही में भाग लेने का अधिकार होगा। ऐसी स्थिति में उसे मत देने का भी अधिकार होगा। परंतु मतों के बराबर होने की दशा में मत देने का अधिकार नहीं होगा।
- यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि जब लोकसभा विघटित होती है अध्यक्ष अपना पद नहीं छोड़ता ,वह नई लोकसभा की बैठक तक पद धारण करता है।
लोकसभा के अध्यक्ष की भूमिका शक्ति एवं कार्य –
- अध्यक्ष लोकसभा व उसके प्रतिनिधियों का मुखिया होता है। वह सदस्यों की शक्तियों व विशेष अधिकार का अभिभावक होता है। वह सदन का मुख्य प्रवक्ता होता है और सभी संसदीय मामलों में उसका निर्णय अंतिम होता है। अतः वह लोकसभा का पीठासिन अधिकारी ही नहीं बल्कि इससे अधिक है इस पद पर अध्यक्ष के पास असीम व महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां होती है तथा वह सदन के अंदर सम्मान उच्च प्रतिष्ठा व सर्वोच्च अधिकार का उपभोग करता है।
- लोकसभा का अध्यक्ष तीन स्रोतों =भारत का संविधान लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियम तथा संसदीय परंपराओं से अपनी शक्तियों व कर्तव्य को प्राप्त करता है।
अध्यक्ष की शक्तियां एवं कर्तव्य नीचे दिए गए हैं
1. अध्यक्ष का यह कर्तव्य है की गणपूर्ति कोरम के अभाव में सदन को स्थगित कर दे। सदन की बैठक के लिए गणपूर्ति सदन की संख्या का दसवां भाग होता है।
2. सदन के कार्यवाही व संचालन के लिए वह नियम व विधि का निर्वहन करता है। यह उसका प्राथमिक कर्तव्य है। उसका निर्णय अंतिम होता है।
3. सामान्य स्थिति में मत नहीं देता है परंतु बराबर की स्थिति में वह मत दे सकता है। दूसरे शब्दों में किसी मुद्दे पर अगर सदन समान रूप से विभाजित हो तो वह अपने मत का प्रयोग कर सकता है। ऐसे मत को निर्णायक मत कहा जाता है और इसका तात्पर्य गतिरोध को समाप्त करना है।
4. सदन के भीतर वह भारत के संविधान लोकसभा की प्रक्रिया तथा कार्य संचालन नियम तथा संसदीय पूर्वदाहरणों का अंतिम व्याख्या कार होता है।
5. अध्यक्ष सांसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की अध्यक्षता करता है। सादनों के बीच विधायक पर गतिरोध समाप्त करने के लिए राष्ट्रपति संयुक्त बैठक बुलाता है।
6. दसवीं अनुसूची के तहत दल बदल उपबंध के आधार पर अध्यक्ष लोकसभा के किसी सदस्य की निर्हरता के प्रश्न का निपटारा करता है। 1992 में उच्चतम न्यायालय ने कहा कि इस संबंध में अध्यक्ष के निर्णय को न्यायालय में चुनौती दी जा सकती है।
7. वह लोकसभा की सभी संसदीय समितियां के सभापति नियुक्त करता है और उनके कार्यों का पर्यवेक्षण करता है। वह स्वयं भी कार्य मंत्रणा समिति ,नियम समिति व सामान्य प्रयोजन समिति का अध्यक्ष होता है।
8. सदन के नेता के आग्रह पर वह गुप्त बैठक बुला सकता है। जब गुप्त बैठक की जाती है तो किसी अनजान व्यक्ति को चैंबर या गैलरी में जाने की इजाजत नहीं होती है।
9. अध्यक्ष यह तय करता है कि विधेयक धन विधेयक है या नहीं और उसका निर्णय अंतिम होता है। राज्यसभा में सिफारिश या राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजा जाने वाला विधायक अध्यक्ष द्वारा सत्यापित होता है कि वह धन विधेयक है।
10. वह अंतर संसदीय संघ के भारतीय संसदीय समूह के पदेन अध्यक्ष के रूप में भी काम करता है। वह देश के विभिन्न विधिक निकायों के पीठासीन अधिकारियों के सम्मेलन को भी पदेन अध्यक्ष होता है।
स्वतंत्रता व निष्पक्षता-
अध्यक्ष के पद में प्रतिष्ठा मर्यादा और प्राधिकार निहित है अंत स्वतंत्रता को निष्पक्षता इसकी अनिवार्य शर्तें है।
नीचे दिए गए कुछ अध्यक्ष के स्वतंत्रता हुआ निष्पक्षता के बिंदु है
1. वह पहली बार मत नहीं देगा परंतु मत बराबर होने की दशा में निर्णायक मत कर सकता है। यह अध्यक्ष के पद को निष्पक्ष बनता है।
2. वरीयता सूची में उसका स्थान काफी ऊपर है। उसे भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ सातवें स्थान पर रखा गया है। यानी वह प्रधानमंत्री या उप प्रधानमंत्री को छोड़कर सभी कैबिनेट मंत्रियों से ऊपर है।
3. वह सदन के जीवन काल पर्यंत पद धारण करता है। उसे लोकसभा के तत्कालीन सदस्यों के विशेष बहुमत द्वारा संकल्प पारित करने पर हटाया जा सकता है। इस प्रक्रिया पर विचार करने या चर्चा करने के लिए कम से कम 50 सदस्यों का समर्थन जरूरी है।
4. उसका वेतन व भत्ता संसद निर्धारित करती है।
5. उसके कार्यों व आचरण की लोकसभा में ना तो चर्चा की जा सकती है और नहीं आलोचना।
6. सदन की प्रक्रिया विनियमित करने या व्यवस्था रखना कि उसकी शक्ति न्यायालय के अधिकार क्षेत्र से बाहर है।
भारतीय लोकतंत्र पर अध्यक्ष का प्रभाव
- स्थिरता और निरंतरता: अध्यक्ष राजनीतिक परिवर्तनों के बावजूद संसदीय कार्यवाही की निरंतरता सुनिश्चित करता है।
सुधार और आधुनिकीकरण: विभिन्न अध्यक्षों ने विधायी प्रक्रिया और बुनियादी ढांचे के आधुनिकीकरण में योगदान दिया है।
लोकतांत्रिक मूल्यों को कायम रखना: संविधान में निहित लोकतांत्रिक मूल्यों और सिद्धांतों को कायम रखने में अध्यक्ष की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
विधायी प्रक्रिया में अध्यक्ष की भूमिका
- एजेंडा सेटिंग: सदन के नेता के परामर्श से विधायी एजेंडा तय करता है।
- समिति प्रणाली: विभिन्न संसदीय समितियों में सदस्यों की नियुक्ति करता है और उनके प्रभावी कामकाज को सुनिश्चित करता है।
- वाद-विवाद प्रबंधन: वाद-विवाद के लिए समय आवंटन का प्रबंधन करता है और सुनिश्चित करता है कि सभी सदस्यों को बोलने का अवसर मिले।
अंतर्राष्ट्रीय भूमिका और कूटनीति
- संसदीय कूटनीति: अध्यक्ष अंतर्राष्ट्रीय मंचों और संसदीय प्रतिनिधिमंडलों में लोकसभा का प्रतिनिधित्व करता है।
अंतर-संसदीय सहयोग: द्विपक्षीय और बहुपक्षीय सहयोग बढ़ाने के लिए अन्य देशों के समकक्षों के साथ संपर्क करता है।
ऐतिहासिक निर्णय और फैसले
- दलबदल के मामले: दलबदल विरोधी कानून के तहत दलबदल के मामलों में निर्णय लेने में स्पीकरों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
संसदीय विशेषाधिकार: संसदीय विशेषाधिकारों के उल्लंघन और संसदीय प्रतिरक्षा की सीमा पर फैसले।
महत्वपूर्ण मिसालें: विभिन्न फैसलों ने संसदीय प्रक्रिया और सदन के कामकाज में महत्वपूर्ण मिसाल कायम की है।
तकनीकी एकीकरण
- डिजिटलीकरण: संसदीय रिकॉर्ड और कार्यवाही को डिजिटल बनाने की पहल।
ई-संसद: विधायी प्रक्रियाओं को कारगर बनाने के लिए इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग और अन्य ई-गवर्नेंस उपकरणों की शुरूआत।
पारदर्शिता: लाइव प्रसारण और ऑनलाइन पोर्टल के माध्यम से संसदीय कार्यवाही को अधिक पारदर्शी और जनता के लिए सुलभ बनाने के प्रयास।
वक्ता और मीडिया संबंध
- मीडिया कवरेज: मीडिया संबंधों का प्रबंधन और संसदीय कार्यवाही की सटीक रिपोर्टिंग सुनिश्चित करना।
सार्वजनिक जुड़ाव: जनता से जुड़ने और संसदीय प्रक्रियाओं की समझ बढ़ाने के लिए मीडिया का उपयोग करना।
आलोचनाएँ और विवाद
- पक्षपात के आरोप: ऐसे उदाहरण जहाँ स्पीकर पर सत्तारूढ़ पार्टी का पक्ष लेने का आरोप लगाया गया है।
निष्कासन पर निर्णय: सदस्यों के निष्कासन के बारे में विवादास्पद निर्णयों ने अक्सर राजनीतिक बहस को जन्म दिया है।
भविष्य की चुनौतियाँ
- बदलते राजनीतिक परिदृश्य के अनुकूल होना: तेजी से बदलते राजनीतिक माहौल की जटिलताओं से निपटना।
प्रासंगिकता सुनिश्चित करना: सोशल मीडिया और त्वरित संचार के युग में अध्यक्ष की संस्था को प्रासंगिक बनाए रखना।
संसदीय दक्षता बढ़ाना: संसदीय कार्यवाही की दक्षता और प्रभावशीलता में सुधार के लिए सुधारों को लागू करना
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निष्कर्ष
- लोकसभा अध्यक्ष भारत के लोकतंत्र के कामकाज में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। पिछले कुछ वर्षों में, कार्यालय ने बदलते राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य के साथ तालमेल बिठाते हुए महत्वपूर्ण रूप से विकास किया है। अध्यक्षों ने संसदीय परंपराओं को मजबूत करने और विधायी प्रक्रिया के सुचारू संचालन में योगदान दिया है। भविष्य में, लोकतांत्रिक मूल्यों को बनाए रखने और लोकसभा के प्रभावी संचालन को सुनिश्चित करने में अध्यक्ष की भूमिका महत्वपूर्ण बनी रहेगी।
- अपने समृद्ध इतिहास और विकसित होती जिम्मेदारियों के साथ अध्यक्ष का कार्यालय भारत के संसदीय लोकतंत्र की आधारशिला बना हुआ है, जो यह सुनिश्चित करता है कि लोगों की आवाज़ सुनी जाए और लोकतंत्र के सिद्धांतों को बरकरार रखा जाए।
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