Growing tensions in the South China Sea
बढ़ते संघर्ष से क्या छिड़ सकता है क्षेत्रीय संघर्ष?
परिचय
Growing tensions in the South China Sea के कारण एशिया-प्रशांत क्षेत्र में नई चुनौतियाँ उभर रही हैं। इस क्षेत्रीय विवाद में चीन, फिलीपींस और अन्य देशों के बीच संप्रभुता और समुद्री अधिकारों को लेकर टकराव गहराता जा रहा है। जानिए इस महत्वपूर्ण क्षेत्रीय मुद्दे के पीछे के कारण, इसके प्रभाव और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रियाएँ।
- दक्षिण चीन सागर विवाद (South China Sea Dispute) एशिया-प्रशांत क्षेत्र में स्थित एक महत्वपूर्ण भू-राजनीतिक मुद्दा है। यह क्षेत्र अपने प्राकृतिक संसाधनों, जैसे तेल, गैस, और मछली के विशाल भंडार के लिए जाना जाता है, और कई देशों ने इस पर अपनी क्षेत्रीय दावेदारी जताई है। इस विवाद में विशेष रूप से चीन और फिलीपींस के बीच टकराव तेज होता जा रहा है। हाल के घटनाक्रमों ने इस संघर्ष को और बढ़ा दिया है, जिसमें दक्षिण चीन सागर में क्षेत्रीय संप्रभुता और समुद्री अधिकारों को लेकर तनाव और भी बढ़ा है।
दक्षिण चीन सागर का भूगोल और महत्व
- दक्षिण चीन सागर लगभग 35 लाख वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, जो एशिया के सबसे व्यस्त समुद्री मार्गों में से एक है। यह जलमार्ग चीन, फिलीपींस, वियतनाम, मलेशिया, ब्रुनेई और ताइवान जैसे देशों से घिरा हुआ है। इस क्षेत्र से प्रतिवर्ष कई ट्रिलियन डॉलर का व्यापार होता है, जिससे यह एक आर्थिक रूप से महत्वपूर्ण क्षेत्र बन जाता है। इसके अतिरिक्त, यहां बड़ी मात्रा में तेल और प्राकृतिक गैस के भंडार हैं, जो इसे आर्थिक रूप से और भी अधिक महत्वपूर्ण बनाते हैं।
पृष्ठभूमि: दक्षिण चीन सागर विवाद की शुरुआत
- दक्षिण चीन सागर पर कई देशों का दावा है। चीन ने “नाइन-डैश लाइन” के माध्यम से लगभग पूरे दक्षिण चीन सागर पर अपना दावा किया है, जो अन्य देशों के क्षेत्रीय दावों के साथ टकराता है। इसके अतिरिक्त, स्कारबोरो शोल और स्प्रैटली द्वीप समूह जैसे स्थानों पर विशेष रूप से विवाद होता है। 2016 में, अंतर्राष्ट्रीय मध्यस्थता न्यायाधिकरण ने फिलीपींस के पक्ष में फैसला सुनाया, जिसमें चीन के दावों को खारिज कर दिया गया था, लेकिन चीन ने इस फैसले को मानने से इंकार कर दिया।
- 8 नवंबर, 2024 को फिलीपींस के राष्ट्रपति फर्डिनेंड मार्कोस ने दो महत्वपूर्ण कानूनों पर हस्ताक्षर किए। इन कानूनों का उद्देश्य फिलीपींस की समुद्री सीमाओं को परिभाषित करना और विदेशी जहाजों के लिए मार्ग निर्धारित करना है। इस पर चीन ने तुरंत विरोध दर्ज किया और फिलीपींस के राजदूत को बुलाकर असंतोष व्यक्त किया। इसके बाद, चीन ने स्कारबोरो शोल (हुआंगयान दाओ) पर अपने दावे को फिर से मजबूती से पेश किया।
चीन की स्थिति और दावे
- चीन का दावा है कि लगभग पूरा दक्षिण चीन सागर उसके अधिकार क्षेत्र में आता है। बीजिंग के विदेश मंत्रालय ने अपने हालिया कदम को वैध और अंतरराष्ट्रीय प्रथाओं के अनुरूप बताया है। चीन का मानना है कि समुद्री क्षेत्रों की स्थापना और प्रबंधन उसके अधिकार क्षेत्र के अंतर्गत आता है। इसके तहत, उसने स्कारबोरो शोल और स्प्रैटली द्वीप समूह जैसे स्थानों पर अपनी सैन्य उपस्थिति भी बढ़ा दी है।
फिलीपींस की विधायी कार्रवाइयाँ
फिलीपींस ने हाल ही में समुद्री क्षेत्र अधिनियम और द्वीपसमूह समुद्री मार्ग अधिनियम जैसे कानून लागू किए हैं:
- समुद्री क्षेत्र अधिनियम: यह अधिनियम फिलीपींस के जलक्षेत्र को परिभाषित करता है और संयुक्त राष्ट्र के समुद्र के कानून के अनुसार उसके अधिकार स्थापित करता है।
- द्वीपसमूह समुद्री मार्ग अधिनियम: इस अधिनियम के तहत राष्ट्रपति विदेशी जहाजों के मार्ग के लिए विशेष समुद्री और हवाई मार्ग निर्धारित कर सकते हैं।
इन कानूनों का उद्देश्य फिलीपींस की समुद्री संप्रभुता की रक्षा करना और राष्ट्रीय सुरक्षा को सुनिश्चित करना है।
चीन की प्रतिक्रियाएँ और सैन्य उपस्थिति
- चीन ने फिलीपींस के इन नए कानूनों का विरोध करते हुए इन्हें उसकी क्षेत्रीय संप्रभुता का उल्लंघन बताया है। चीन का कहना है कि फिलीपींस द्वारा इन कानूनों का लागू करना एक प्रकार का उकसावा है। चीनी अधिकारियों ने फिलीपींस पर आरोप लगाया कि वह विवादित जलक्षेत्र में अनाधिकृत गतिविधियाँ कर रहा है। इसके जवाब में चीन ने अपने तट रक्षक और नौसेना के जहाजों को तैनात कर दिया है, ताकि वह इस क्षेत्र पर नियंत्रण बनाए रख सके।
समुद्र में टकराव की घटनाएँ
- दक्षिण चीन सागर में बढ़ते तनाव ने कई बार दोनों देशों के जहाजों के बीच टकराव का रूप लिया है। चीनी जहाजों ने फिलीपींस के जहाजों को टक्कर मारी है, उन्हें रोकने की कोशिश की है, और पानी की बौछारें डाली हैं। ये घटनाएँ संघर्ष की बढ़ती प्रकृति को दर्शाती हैं और क्षेत्रीय संप्रभुता के प्रश्न को और गंभीर बना देती हैं।
अंतर्राष्ट्रीय निहितार्थ
- दक्षिण चीन सागर पर चल रहे विवाद का प्रभाव केवल चीन और फिलीपींस तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका प्रभाव पूरे क्षेत्र पर है। दक्षिण पूर्व एशिया के कई देश इस विवाद में शामिल हैं और इसके कारण क्षेत्रीय स्थिरता प्रभावित होती है। इसके अलावा, अंतर्राष्ट्रीय शिपिंग मार्गों पर इसका प्रभाव पड़ सकता है, जिससे वैश्विक व्यापार बाधित हो सकता है।
विशेषताएँ | चीन का दावा | फिलीपींस की स्थिति |
---|---|---|
दावा किए गए क्षेत्र | नाइन-डैश लाइन | संयुक्त राष्ट्र के अनुसार जलक्षेत्र |
हालिया कानून | समुद्री क्षेत्र प्रबंधन | समुद्री क्षेत्र अधिनियम, द्वीपसमूह अधिनियम |
प्रमुख विवादित क्षेत्र | स्प्रैटली द्वीप समूह, स्कारबोरो शोल | फिलीपींस जलक्षेत्र |
सैन्य उपस्थिति | उच्च | नियंत्रण प्रयास |
- पाई चार्ट: विभिन्न देशों द्वारा दावा किए गए दक्षिण चीन सागर के क्षेत्रों का प्रतिशत।
कूटनीतिक समाधान की संभावना
- इस विवाद को हल करने के लिए कूटनीति सबसे महत्वपूर्ण साधन हो सकती है। दक्षिण चीन सागर की स्थिति में अंतर्राष्ट्रीय संस्थाएँ जैसे संयुक्त राष्ट्र और ASEAN (दक्षिण पूर्व एशियाई राष्ट्र संघ) भूमिका निभा सकते हैं। संवाद के माध्यम से समाधान खोजने के प्रयासों की आवश्यकता है ताकि क्षेत्रीय स्थिरता बनी रहे।
निष्कर्ष: दक्षिण चीन सागर विवाद की भविष्यवाणी
- वर्तमान में दक्षिण चीन सागर विवाद की स्थिति बहुत ही अस्थिर और जटिल बनी हुई है। चीन और फिलीपींस दोनों अपने रुख पर अड़े हुए हैं और उनके बीच सैन्य तनाव भी बढ़ता जा रहा है। इस विवाद का समाधान तभी संभव है जब सभी देश शांतिपूर्ण समाधान की ओर बढ़ें और क्षेत्रीय स्थिरता को प्राथमिकता दें।
- यह स्थिति अंतर्राष्ट्रीय शांति और सुरक्षा के लिए एक चुनौती बनी हुई है और निकट भविष्य में इसके समाधान के कोई स्पष्ट संकेत नहीं दिखाई दे रहे हैं।