प्रकृति संरक्षण सूचकांक 2024 में भारत 176वें स्थान पर India ranked 176th in the Nature Conservation Index 2024

India ranked 176th in the Nature Conservation Index 2024

India ranked 176th in the Nature Conservation Index 2024: जानें कैसे पर्यावरण संरक्षण में चुनौतियाँ और अवसर हमारे देश के लिए बदल रहे हैं। भारत की रैंकिंग, प्रयास, और सुधार की संभावनाओं पर पूरी जानकारी यहाँ पढ़ें।

प्रकृति संरक्षण सूचकांक 2024 में भारत 176वें स्थान पर India ranked 176th in the Nature Conservation Index 2024

  • भारत वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक (NCI) 2024 में 176वें स्थान पर आ गया है, जो पर्यावरण संरक्षण के लिए देश की प्रमुख चुनौतियों की ओर इशारा करता है। यह सूचकांक, जो कि 180 देशों में संरक्षण प्रयासों का मूल्यांकन करता है, भारत को प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और सतत विकास के क्षेत्रों में सुधार की आवश्यकता की ओर संकेत देता है। यह विस्तृत लेख आपको NCI की प्रमुख बिंदुओं और भारत की स्थिति के बारे में जानकारी देगा।

1. वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक क्या है?

  • वैश्विक प्रकृति संरक्षण सूचकांक (NCI) को बेन-गुरियन विश्वविद्यालय और BioDB.com में गोल्डमैन सोननफेल्ड स्कूल ऑफ़ सस्टेनेबिलिटी एंड क्लाइमेट चेंज ने विकसित किया है। यह सूचकांक देशों को उनके संरक्षण प्रयासों के आधार पर रैंक करता है।

NCI के चार प्रमुख घटक:

  1. भूमि प्रबंधन: कितनी भूमि सतत और जिम्मेदारी से प्रबंधित की जा रही है।
  2. जैव विविधता के लिए खतरे: जैव विविधता के लिए मुख्य खतरों का स्तर और इससे निपटने के प्रयास।
  3. क्षमता और शासन: संरक्षण में सरकारों और संगठनों की क्षमता और नीतियां।
  4. भविष्य के रुझान: पर्यावरण की स्थिति को लेकर भविष्य में संभावित बदलाव।

2. भारत की वर्तमान स्थिति और मुख्य कारण

  • भारत ने NCI में 176वां स्थान प्राप्त किया है, जिसका मुख्य कारण भूमि प्रबंधन, जैव विविधता के खतरों के बढ़ते स्तर, और शासन में चुनौतियां हैं। इस स्थान के पीछे कुछ महत्वपूर्ण कारण निम्नलिखित हैं:

A. भूमि प्रबंधन की चुनौतियाँ

  • भारत में भूमि का लगभग 53% हिस्सा शहरी, औद्योगिक और कृषि कार्यों के लिए उपयोग में लिया जा चुका है।
  • भारत का नाइट्रोजन सूचकांक 0.77 है, जो बताता है कि मृदा स्वास्थ्य में सुधार की आवश्यकता है।
  • कीटनाशक के अत्यधिक उपयोग के कारण मिट्टी की गुणवत्ता में गिरावट हो रही है।

B. जैव विविधता के लिए खतरें

  • जैव विविधता के लिए बढ़ते खतरे: भारत में प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग और शहरीकरण के कारण जैव विविधता पर संकट है।
  • वनों की कटाई: 2001 से 2019 तक 23,300 वर्ग किलोमीटर वृक्षों का क्षेत्र नष्ट हुआ है।
  • जलवायु परिवर्तन का प्रभाव: अल्पाइन क्षेत्रों, मैंग्रोव और प्रवाल भित्तियों जैसे संवेदनशील पारिस्थितिकी तंत्रों पर जलवायु परिवर्तन का प्रतिकूल प्रभाव पड़ा है।

3. समुद्री संरक्षण की स्थिति

  • भारत के केवल 0.2% जलमार्ग संरक्षित हैं, जो समुद्री संरक्षण में कमी का संकेत देते हैं। देश के अनन्य आर्थिक क्षेत्र (EEZ) में संरक्षित क्षेत्रों की अनुपस्थिति से समुद्री जैव विविधता को खतरा है।
श्रेणी संरक्षित क्षेत्र (%)
राष्ट्रीय जलमार्ग 0.2%
स्थलीय भूमि 7.5%
EEZ कोई संरक्षित क्षेत्र नहीं

सुधार की संभावना

  • भारत को समुद्री संरक्षण बढ़ाने के लिए संरक्षित क्षेत्रों की संख्या में वृद्धि और समुद्री प्रदूषण को कम करने की आवश्यकता है।

4. सतत विकास लक्ष्य (SDG) और भारत

  • भारत के लिए SDG 14 (पानी के नीचे जीवन) और SDG 15 (भूमि पर जीवन) की प्राप्ति में भी चुनौतियाँ हैं। सतत विकास लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए भारत को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों का सामना करना होगा और सतत विकास नीतियों को लागू करना होगा।

5. भविष्य के रुझान और आवश्यक सुधार

  • भारत की जनसंख्या और घनत्व के बढ़ते स्तर से पर्यावरण पर दबाव बढ़ रहा है। भविष्य में, प्रभावी संरक्षण के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति, नवीन तकनीक और स्थानीय समुदायों की भागीदारी आवश्यक होगी।

संभावित सुधार की पहल:

  1. कड़े कानूनों का क्रियान्वयन: पर्यावरण संरक्षण के लिए ठोस कानून बनाए और लागू किए जाएं।
  2. स्थायी खेती और भूमि उपयोग: खेती और भूमि उपयोग के अधिक स्थायी और जिम्मेदार तरीके अपनाए जाएं।
  3. जागरूकता अभियान: लोगों में पर्यावरणीय खतरों के प्रति जागरूकता बढ़ाने के लिए अभियान चलाए जाएं।

6. निष्कर्ष

  • भारत को NCI में 176वें स्थान से ऊपर लाने के लिए ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण, जैव विविधता की सुरक्षा, और भविष्य के खतरों से निपटने के लिए सहयोगात्मक प्रयासों की जरूरत है।
  • इस पूरी प्रक्रिया में भारत को सतत विकास, जागरूकता, और जागरूकता अभियानों के माध्यम से आगे बढ़ना होगा।

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