उत्तरी मैदान की उत्पत्ति (Origin Of Northern Plains)

उत्तरी मैदान की उत्पत्ति (Origin Of Northern Plains)

  • हिमालय पर्वत के निर्माण के कारण हिमालय व प्रायद्वीप पठार के मध्य एक गहरी खाई बन गई थी जिसमें टेथिस का जल भर गया. अरब सागर वह बंगाल की खाड़ी उसी जल पूर्ण खाड़ी का अवशिष्ट रूप है. हिमालय से निकलने वाली नदियां उस खाड़ी के तल में कंकर, पत्थर आदि अवसाद का निक्षेपण करने लगी, इसी से वर्तमान विशाल उत्तरी मैदान की रचना हुई. (Origin Of Northern Plains)

origin of northern plains

आज हम उत्तरी मैदान की उत्पत्ति (Origin Of Northern Plains) के बारे में जानने वाले है।

  • इस मैदान का निर्माण काल प्लीस्टोसीन युग व आधुनिक युग माना जाता है. बुर्राड के मता अनुसार यह मैदान एक भ्रंश घाटी के रूप में है.| किंतु यह मत अधिक मान्य नहीं है। सुयश के अनुसार उत्तरी मैदान प्रायद्वीप कठोर भाग ने सामने एक विशाल गर्त के रूप में निर्मित हुआ जहां से टेथिस सागर के तल की मिट्टी प्रायद्वीप की ओर निक्षेपित हुई। आधुनिक भू – वैज्ञानिक इस मैदान को एक साधारण गहरा सागर मानते हैं जो नदियों द्वारा लाये गए निक्षेपण से बना।

इस मैदान की भौगोलिक विशेषताएं निम्नलिखित है

  1.  यह मैदान अत्यधिक समतल है इस पर पहाड़ियों व टीलों का प्राय अभाव पाया जाता है..
  2.  इस मैदान का ढाल अत्यंत मंद तथा उच्चावच बहुत कम है तराई प्रदेश में तराई प्रदेश से गंगा डेल्टा तक उच्चावच केवल 200 मीटर तक औसत ढाल 25 सेंटीमीटर प्रति किलोमीटर मात्र है।
  3.  इस मैदान में उर्वर मिट्टी के निक्षेप बहुत गहरे हैं। पूर्व मैदान (Eastern Plains) गंगा बेसिन का यह पूर्वी भाग ही वास्तव में मुख्य मैदान है। इस विशाल मैदान की गहराई बहुत अधिक है। यहां प्रतिवर्ष गंगा और उसकी सहायक नदियों द्वारा लाई गई बारीक कांप मिट्टी की तहे जमती जाती है। अतः हजारों मीटर की गहराई तक खुदाई करने पर भी पुरानी चट्टानों का पता नहीं चलता है यह मैदान अपेक्षा कुर्त अधिक नम तथा निम्न भूमि वाला है। इस मैदान का क्षेत्रफल 5 लाख वर्ग किलोमीटर से अधिक है.
  4. गंगा के मैदान को धरातल के विचार से दो भागों में बांटा गया है – बांगड़ और खादर। इस मैदान में उन भागों को जहां नदियों द्वारा पुरानी मिट्टी के ऊंचे मैदान बन गए हैं और जहां सामान्य रूप से नदियों की बाढ़ का जल नहीं पहुंच पाता है उसे बांगड़ कहते हैं। बांगड़ के पुराने जमाव में कहीं-कहीं चुने की कंकड़ीली मिट्टी (बिहार के तिरहुत जिले में) भी पाई जाती है। कछारी भाग जो निचले मैदान है और जहां बाढ़ का जल प्रतिवर्ष पहुंचकर नई मिट्टी की परत जमा कर देता है खादर के नाम से पुकारे जाते हैं…
  5. गंगा का सारा मैदान बांगड़ और खादर नाम की ऊंची नीची भूमि से बना है। बांगड़ की ऊंचाई कहीं-कहीं 30 मीटर है लेकिन ऊंचाई में इस तरह का लहरदार उतार चढ़ाव पाया जाता है कि सरसरी दृष्टि से देखने पर बांगड़ और खादर में बहुत ही हम अंतर दृष्टिगोचर होता है। यही कारण है कि इस मैदान में धरातल का उतार चढ़ाव समुद्र के समान मालूम होता है.
  6. बांगड़ के मैदान का विस्तार उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक पाया जाता है जबकि खादर की बहुतायत बिहार पश्चिम बंगाल में विशेष रूप से है। बिहार और उत्तर प्रदेश में सबसे अधिक पाया जाता है जबकि खादर की बहुतायत बिहार और पश्चिम बंगाल में विशेष रूप से है पंजाब की भांति पश्चिमी उत्तर प्रदेश में भी कहीं-कहीं बालू के ढेर पाए जाते हैं जिन्हें भूड (Bhoor) कहते हैं .यहां भूड़ प्राचीन काल में जल के बहाव से बन गए थे। सिंधु के मैदान की भांति वायु द्वारा बने बालू के टीले गंगा के मैदान में नहीं मिलते क्योंकि इस मैदान में बालू और सुखी मिटटी कम पाई जाती है.
  7. पूर्वी मैदान का पश्चिमी भाग उत्तर प्रदेश के अंतर्गत आता है जिसमें गंगा यमुना नदियों के दोआब सम्मिलित है। हरिद्वार से अलीगढ़ तक का भाग ऊपरी दोआब कहलाता है। इसका ढाल बहुत ही धीमा है। इसी भाग में पूर्वी यमुना और ऊपरी गंगा नहरों से सिंचाई की जाती है। अलीगढ़ से इलाहाबाद तक मध्य दोआब क्षेत्र अधिक धीमे ढाल वाला और उपजाऊ है। इसमें गंगा की निचली नहर द्वारा सिंचाई होती है। इलाहाबाद के निकट यह दोआब समाप्त हो जाता है.
  8. गंगा -यमुना के दोआब तथा उत्तर प्रदेश के उत्तरी मध्य भाग पर रोहिलखंड का मैदान फैला है। इसका ढाल दक्षिण पूर्व को है। जिसमें राम गंगा, शारदा और गोमती नदियां बहती है इस मैदान में अत्यंत उपजाऊ कांप मिट्टी पाई जाती है.
  9. उत्तर प्रदेश के उत्तरी पूर्व भाग का अवध का मैदान है, जिसमें घाघरा, ताप्ती और गोमती नदियों ने काफी गहराई तक कांप मिट्टी बिछा दी है। इस मैदान के विभिन्न भागों को पुरबिया सरयू पार तथा गोमती का मैदान कहते हैं.
  10. गंगा की मध्य और निचली घाटी में उत्तरी बिहार, दक्षिणी बिहार, उत्तरी बंगाल तथा गंगा ब्रह्मपुत्र का डेल्टा फैला है.

विशाल मैदान का उप विभाजन

भारतीय विशाल मैदान को उसकी धरातलीय विशेषताओं के आधार पर निम्न उप – भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है

a) पंजाब- हरियाणा मैदान
b) राजस्थान का मैदान
c) गंगा का मैदान
d) असम की घाटी

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a) पंजाब हरियाणा मैदान –

  • इसे समतल यमुना विभाजक भी कहते हैं। पंजाब, हरियाणा और दिल्ली राज्यों पर इसका विस्तार है। सतलज, व्यास व रावी नदिया यहां पर बहती है। इसी मैदान में अत्यंत प्राचीन काल में सरस्वती और दुस्दवती नदियां बहती थी। समय के साथ-साथ यह नदिया विलुप्त हो गई। यह चौरा मैदान 1075 लाख वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में फैला है।
  • उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम दिशा में इसकी लंबाई 640 किलोमीटर है जबकि पश्चिम से पूर्व दिशा में इसकी चौड़ाई 300 किलोमीटर है। पूर्वी सीमा यमुना नदी बनाती है। इसके दक्षिणी पूर्वी भाग पर अरावली पहाड़ियां समाप्त होती हुई मिलती है।
  • समुद्र तल से इस मैदान की औसत ऊंचाई 250 मीटर है। उत्तरी भाग में यहां ऊंचाई 300 मीटर है, जबकि दक्षिणी -पूर्वी भाग में यह 213 मीटर रह जाती है।
  • नदियों के किनारे बाढ़ ग्रस्त क्षेत्र पाए जाते हैं जिनकी अधिकतम चौड़ाई 10 से 12 किलोमीटर तक है। इन क्षेत्रों को बेट कहते हैं।
  • रवि और व्यास नदियों के बीच के भूभाग को ऊपर बारी दोआब व्यास और सतलज के बीच के भूभाग को बिष्ट दोआब तथा सतलज के दक्षिण की ओर भूभाग को मालवा मैदान कहते हैं। यह अपेक्षा कृत ऊंचे मैदान है। इसके और अधिक दक्षिण में हरियाणा का मैदान है जो उपयुक्त मैदाने के लगभग एक चौथाई भाग को प्रभावित करती है।
  • यमुना नदी अपने दाएं किनारे पर पहले भूभाग को प्रभावित करती है। सतलज और यमुना के बीच में घग्गर जो की एक मौसमी प्रवाह है पाई जाती है इसकी तलहटी 10 किमी चौड़ी है।
  • सूरतगढ़ के पूर्व से 15 किमी तक इसकी तलहटी मिलती है। प्राचीन समय में इसमें सरस्वती के नाम से जाना जाता था। जिसमें पानी का प्रवाह निरंतर बहा करता था। उसे यहां की जलवायु शुष्क थी।
  • वर्तमान समय में सिंचाई की सुविधाओं के कारण यह मैदान हरा भरा रहता है.

b) राजस्थान का मैदान –

  • इसका विस्तार 1.57 लाख वर्ग किमी क्षेत्र पर है। यह अरावली पहाड़ियों के पश्चिम में फैला है तथा इसका विस्तार भारत पाकिस्तान सीमा तक है। इसमें मरुस्थलीय तथा बांगड़ क्षेत्र भी शामिल है।
  • मरुस्थली मारवाड़ मैदान का एक अंग है जो बालू से सुसज्जित है। कहीं-कहीं पर निस तथा ग्रेनाइट चट्टानों की नंगी सतह दिखाई पड़ती है। जो इस बात का प्रमाण है कि यह प्रायद्वीपीय पठार का एक अंग रहा है। बालू के तिलों का यह प्राधान्य है।
  • दक्षिणी पश्चिमी भाग में पवन अनुवर्ती टीले पाए जाते हैं। जबकि दक्षिण पूर्वी भाग में जहां पर हवाई बहुत तेज चलती है बरखान और अनुप्रस्थ टीले पाए जाते हैं। अरावली के पूर्व में बांगड़ की स्टेपी भूमि उत्तर पूर्व से दक्षिण पश्चिम दिशा में प्रस्तुत मिलती है।
  • पश्चिम में इसका विस्तार 25 सेंटीमीटर की वर्षा रेखा तक है। यहां की प्रमुख नदी लूनी है इसका बेसिन 150 मीटर ऊंचा है। यहां पर कुछ पहाड़ियां भी मिलती है यहां पर अनेक जिले भी पाई जाती है।
  • सांभर ,डीडवाना ,लूकरनसार ,कुचमान और डेगाना प्रमुख जिले हैं। सांभर सबसे बड़ी झील है जो 300 वर्ग किमी क्षेत्र में फैली है। यह जयपुर के 65 किमी पश्चिम में है.

d) गंगा का मैदान-

  • यह मैदान उत्तर प्रदेश बिहार और पश्चिम बंगाल राज्यों के 3057 लाख वर्ग किमी भूभाग पर फैला है। इसका ढाल पश्चिम पूर्व व दक्षिणी पूर्व की ओर है।
  • गंगा की यहां प्रमुख नदी है। दाएं किनारे पर इसको प्रमुख सहायक नदियां यमुना और सोन है। जबकि बाय किनारे पर घाघरा ,गंडक और कोसी प्रमुख सहायक नदियां है। इस मैदान पर नदियों का जाल फैला हुआ है जो बरसात में बाढ़ लाने में सहायक होती है तथा प्रतिवर्ष हजारों टन मिट्टी यहां पर लाकर बढ़ा देती है भू आकृतिक दृष्टि से बांगर और खादर इसके दो भाग है।
  • नदियों के पुराने प्रवाह मार्ग जो की पानी से भरे रहते हैं बिल कहलाते हैं। इस मैदान को तीन उप विभागों में बांटा गया है

1. ऊपरी गंगा का मैदान इस मैदान-

  • की उत्तरी सीमा शिवालिक पहाड़ियों दक्षिणी सीमा प्रायद्वीपीय पठार द्वारा बनती है।
  • पश्चिम में यमुना नदी इसकी प्राकृतिक सीमा बनाती है तथा पूर्व 100 किलोमीटर की समोच्च रेखा द्वारा इसकी सीमा बनती है। इस मैदान की ऊंचाई 100 से 300 मीटर के बिच पाई जाती है।
  • उत्तरी भाग में ढाल दक्षिण व पूर्व की अपेक्षा अधिक तेज है। यमुना, गंगा, राम गंगा, शारदा, गोमती, घाघरा इस मैदान की प्रमुख नदियां है.

2). मध्य गंगा का मैदान-

  • उत्तरी बिहार वह पूर्वी उत्तर प्रदेश पर इसका विस्तार है। पश्चिमी सीमा 100 मीटर और सम्मोच रेखा द्वारा बनती है। जो इलाहाबाद फैजाबाद रेल मार्ग का अनुसरण करती है।
  • कुछ विद्वानों ने इसकी सीमा 100 सेंटीमीटर वर्षा रेखा निर्धारण की है।
  • पूर्वी सीमा उत्तरी पूर्वी भाग में 75 मीटर तथा दक्षिण पूर्व में 30 मीटर की समस्या रेखाओं द्वारा बनती है।
  • यह मैदान नदियों के प्रवाह मार्ग में परिवर्तन से बुरी तरह प्रभावित है।
  • कोसी नदी इस कार्य के लिए बहुत बदनाम है। घाघरा गंडक ,कोसी, गंगा की प्रमुख सहायक नदियां है। यह खादर भूमि की अधिकता है भूमि में कंकड़ों का अभाव है यह मैदान अत्यंत उपजाऊ है यह स्थान स्थान पर धनुष जाकर जिले वह नदियों के पुराने प्रवाह मार्ग मिलते हैं भादो की अधिकता इस मैदान की नदियों की प्रमुख विशेषताएं है.

3). निम्न गंगा का मैदान-

  • इस मैदान में उत्तरी पहाड़ी क्षेत्रों तथा पश्चिम में स्थित पूरुलिया जिले को छोड़कर संपूर्ण पश्चिम बंगाल शामिल है। इस प्रकार यह हिमालय की तलहटी से लगाकर गंगा के डेल्टा तक फैला है।
  • मैदान का उत्तरी भाग तीस्ता जल ढाका और टोरसा नदियों द्वारा सींचा जाता है। राजमहल पहाड़ियों के निकट यह मैदान संकरा हो गया है।
  • इससे दक्षिण में गंगा का पुराना डेल्टा का विस्तार है इसका निर्माण प्लीस्टोसीन काल में हुआ है। इससे और दक्षिण में बंगाल की खाड़ी तक फैला हुआ डेल्टाई भाग नवीनतम कॉप के निर्मित भू भाग से तैयार हुआ है।
  • यह समुद्र तल से केवल 50 मीटर ऊंचा है तथा निचा समतल मैदान है। समुद्र में उठने वाले ज्वार इसके अधिकांश भाग को जल से ढक लेते हैं। इसलिए यह भाग अधिकतर दलदल बना रहता है।
  • इस डेल्टा के ऊपरी भाग में कहीं भी कहीं कुछ टीले या नदियों के पुराने चर पाए जाते हैं।
  • यह उभरे भाग गांव के बसाव स्थान के रूप में प्रयोग किए जाते हैं जो की पानी में डूबने से सुरक्षित रहते हैं। निम्न भूमि को बिल कहते हैं।

4) ब्रह्मपुत्र का मैदान

  • इसको असम घाटी भी कहते हैं। यह मेघालय पठार और हिमालय पर्वत के बीच में एक लंबा और पतला मैदान है यह केवल 30 किलोमीटर चौड़ा है। ब्रह्मपुत्र नदी ने इस घाटी को बनाने में यहां पर भारी मात्रा में मिट्टी लाकर एकत्र कर दी है।
  • मिट्टी के भारी जमाव के कारण कहीं-कहीं द्वीप भी निर्मित हो गए हैं। ब्रह्मपुत्र नदी साईया के निकट मैदान में प्रवेश करती है। और 720 किमी बहाने पर धुबरी के निकट दक्षिण की ओर मुड़कर बांग्लादेश में प्रवेश कर जाती है।
  • घाटी का तल पूर्वी भाग में 130 मीटर तथा पश्चिमी भाग में 30 मीटर ऊंचा है। इस प्रकार है इसके ढाल का औसत 12 सेंटीमीटर प्रति किलोमीटर है।
  • ढाल की दिशा दक्षिण पश्चिम दिशा की ओर है। उत्तरी सीमा पर तराई वह अर्द्ध तराई क्षेत्र पाए जाते हैं। जो दलदल मिट्टी व सघन वन से आच्छादित रहते हैं।
New Coastal Plains Of India (तटीय मैदान)
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चलिए कुछ प्रश्न देखते है।

Q.1 उत्तरी मैदान का निर्माण कैसे हुआ है? 

ANS. उत्तरी मैदान भारत के उत्तर भाग में स्थित एक विशाल भूमि क्षेत्र है। इसके निर्माण की प्रक्रिया कुछ प्रमुख चरणों में हुई

गैंगेटिक प्लेन का निर्माण-

  • उत्तरी मैदान, जिसे गैंगेटिक प्लेन भी कहते हैं, का निर्माण मुख्य रूप से गंगा, यमुना, और ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियों द्वारा हुआ।
  • ये नदियाँ अपने साथ मिट्टी और सिल्ट (रेत और कीचड़) लेकर आईं, जिससे एक समतल मैदान बना।

नदी प्रवाह और तलछट जमा होना

  • नदियाँ जब ऊँचाई से निचले इलाकों में बहती हैं, तो अपने साथ बहुत सारी तलछट (मिट्टी और रेत) ले आती हैं।
  • यह तलछट समय के साथ मैदान के विभिन्न हिस्सों में जमा हो जाती है, जिससे एक समतल और उपजाऊ क्षेत्र तैयार होता है।

नदियों का फैलाव और डेल्टा का निर्मा

  • गंगा, यमुना, और ब्रह्मपुत्र नदियाँ समुद्र में मिलने से पहले डेल्टा बनाती हैं।
  • ये डेल्टा क्षेत्र मैदान को और भी समतल और उपजाऊ बनाते हैं।

भूगर्भीय गतिविधियाँ

  • इस क्षेत्र में भूगर्भीय गतिविधियाँ भी होती रहती हैं, लेकिन नदियों की वजह से मैदान की समतलता बरकरार रहती है।

निष्कर्ष- उत्तरी मैदान का निर्माण मुख्य रूप से बड़ी नदियों द्वारा होता है, जो मिट्टी और सिल्ट लेकर आती हैं और इसे समतल बनाती हैं। यह क्षेत्र कृषि के लिए बहुत उपजाऊ होता है और यहाँ पर बहुत से लोग बसते हैं।

Q.2 उत्तरी मैदान का दूसरा नाम क्या है?

ANS. उत्तरी मैदान को गैंगेटिक प्लेन भी कहते हैं।

मुख्य बिंदु

  • गैंगेटिक प्लेन नाम इस क्षेत्र की प्रमुख नदियों गंगा, यमुना, और ब्रह्मपुत्र के नाम पर पड़ा है, जो इस क्षेत्र में बहती हैं।
  • यह क्षेत्र उत्तर भारत के अधिकांश हिस्से में फैला हुआ है और बहुत उपजाऊ है।
  • यहाँ की समतल भूमि और नदी द्वारा लायी गई मिट्टी इसे कृषि के लिए अनुकूल बनाती है।

Q.3 उत्तरी मैदानों के गठन का क्या कारण है?

ANS. उत्तरी मैदान का निर्माण मुख्य रूप से नदियों के कारण हुआ है। यहाँ के गठन के कुछ प्रमुख कारण हैं-

नदियों का तलछट लाना-

  • गंगा, यमुना, और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ अपने रास्ते में मिट्टी, रेत और कीचड़ (तलछट) ले आती हैं।
  • जब ये नदियाँ निचले इलाकों में पहुँचती हैं, तो अपनी तलछट को छोड़ देती हैं, जिससे एक समतल मैदान बन जाता है।

नदियों का फैलाव-

  • इन नदियों का पानी धीरे-धीरे फैलता है और तलछट को व्यापक क्षेत्र में फैलाता है।
  • इसके कारण एक विस्तृत और उपजाऊ मैदान का निर्माण होता है।

भूगर्भीय गतिविधियाँ-

  • इस क्षेत्र में भूगर्भीय गतिविधियाँ भी होती रहती हैं, लेकिन नदियों की वजह से मैदान की समतलता बनी रहती है।

Q.4 उत्तरी मैदान के अंतर्गत कौन से राज्य आते हैं?

ANS. उत्तरी मैदान भारत के उत्तर हिस्से में फैला हुआ है और इसमें निम्नलिखित प्रमुख राज्य शामिल हैं-

  1. उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh)
  2. बिहार (Bihar)
  3. झारखंड (Jharkhand)
  4. पंजाब (Punjab)
  5. हरियाणा (Haryana)
  6. दिल्ली (Delhi)

मुख्य बिंदु-

  • ये राज्य उत्तरी मैदान के बड़े हिस्से में आते हैं और यहाँ की समतल भूमि कृषि के लिए बहुत उपजाऊ है।
  • गंगा, यमुना, और ब्रह्मपुत्र जैसी नदियाँ इन राज्यों से होकर बहती हैं, जिससे इस क्षेत्र की उपजाऊ भूमि बनती है।

निष्कर्ष- उत्तरी मैदान में उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, पंजाब, हरियाणा और दिल्ली राज्य आते हैं। ये राज्य इस क्षेत्र के समतल और उपजाऊ मैदान का हिस्सा हैं।

Q.5 उत्तरी मैदान की लंबाई कितनी है?

ANS. उत्तरी मैदान की लंबाई

उत्तरी मैदान की लंबाई लगभग 2,400 किलोमीटर (2400 किमी) है।

मुख्य बिंदु-

  • यह मैदान भारत के उत्तर से लेकर पश्चिमी और पूर्वी हिस्सों तक फैला हुआ है।
  • इसके अंतर्गत कई प्रमुख नदियाँ और उपजाऊ क्षेत्र आते हैं, जो इसे कृषि के लिए बहुत उपयुक्त बनाते हैं।

Q.6 उत्तर भारत का विशाल मैदान?

ANS. उत्तर भारत का विशाल मैदान जिसे उत्तरी मैदान या गैंगेटिक प्लेन भी कहते हैं, भारत के उत्तर भाग में फैला हुआ है।

मुख्य बिंदु-

  • यह मैदान एक विशाल और समतल क्षेत्र है जो मुख्य रूप से गंगा, यमुना, और ब्रह्मपुत्र नदियों द्वारा बनाया गया है।
  • यहाँ की भूमि बहुत उपजाऊ है, जिससे यहाँ की कृषि बहुत अच्छी होती है।
  • यह क्षेत्र उत्तर भारत के कई राज्यों में फैला हुआ है, जैसे उत्तर प्रदेश, बिहार, पंजाब, हरियाणा, और दिल्ली।

Q.7 उत्तरी मैदानों में अधिक जनसंख्या निवास करती है क्यों?

ANS. उत्तरी मैदान में अधिक जनसंख्या निवास करने के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-

उपजाऊ भूमि-

  • उत्तरी मैदान की भूमि बहुत उपजाऊ है क्योंकि यहाँ की नदियाँ बहुत सारी मिट्टी और रेत लेकर आती हैं।
  • उपजाऊ भूमि खेती के लिए आदर्श होती है, जिससे यहाँ पर कृषि के लिए अधिक अवसर होते हैं।

जल की उपलब्धता-

  • यहाँ पर गंगा, यमुना, और ब्रह्मपुत्र जैसी बड़ी नदियाँ बहती हैं, जिससे पानी की अच्छी उपलब्धता रहती है।
  • जल की उपलब्धता से खेती और जीवन की अन्य आवश्यकताएँ आसानी से पूरी होती हैं।

विकसित इंफ्रास्ट्रक्चर-

  • उत्तरी मैदान के कई हिस्से अच्छे सड़क और रेल नेटवर्क से जुड़े हुए हैं, जिससे यहाँ पर व्यापार और परिवहन में आसानी होती है।
  • बेहतर इंफ्रास्ट्रक्चर लोगों को यहाँ बसने और काम करने के लिए प्रेरित करता है।

आर्थिक अवसर-

  • यहाँ पर कृषि, उद्योग, और व्यापार के अच्छे अवसर उपलब्ध होते हैं, जिससे लोगों को रोजगार मिलते हैं।
  • आर्थिक अवसरों की अधिकता से जनसंख्या यहाँ पर बढ़ जाती है।

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