रूस और ऑस्ट्रिया में पीएम मोदी का ऐतिहासिक दौरा व्यापार और सुरक्षा पर जोर  PM Modi historic visit to Russia and Austria Emphasis on trade and security

PM Modi historic visit to Russia and Austria Emphasis on trade and security

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1 PM Modi historic visit to Russia and Austria Emphasis on trade and security
1.1 चलिए हम और विस्तार से भारत और रूस के संबधो के बारे में जानते है।
1.1.4 स्वतंत्रता के बाद और शीत युद्ध काल (1947-1991)

रूस और ऑस्ट्रिया में पीएम मोदी का ऐतिहासिक दौरा व्यापार और सुरक्षा पर जोर  PM Modi historic visit to Russia and Austria Emphasis on trade and security

PM Modi historic visit to Russia and Austria Emphasis on trade and security रूस और ऑस्ट्रिया में व्यापार और सुरक्षा पर जोर। इस लेख में जानें कि कैसे ये दौरे भारत के अंतरराष्ट्रीय संबंधों को मजबूत कर रहे हैं और क्या हैं इसके संभावित लाभ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की जुलाई के दूसरे सप्ताह की शुरुआत 8 और 9 तारीख को रूस और ऑस्ट्रिया की यात्रा पर जाने वाले हैं।

  1. इस दौरे पर वे राष्ट्रपति पुतिन के साथ तमाम मुद्दे पर बात चित करेंगे। प्रधानमंत्री रूस के राष्ट्रपति के आमंत्रण पर 22 वें भारत रूस वार्षिक सम्मेलन में हिस्सा लेंगे।
  2. इस दौरान दो देशों के बीच बहुआयामी संबंधों की समीक्षा की जाएगी। दोनों नेताओं के बीच बातचीत में क्षेत्रीय और वैश्विक हित से जुड़े मुद्दे शामिल होंगे।
  3. भारत रूस शिखर सम्मेलन रक्षा निवेश और शिक्षा और संस्कृति और लोगों के बीच संबंध सहित द्वीपक्षीय संबंधों की संपूर्ण दायरे पर चर्चा करने का अवसर पर अवसर पैदा करेगा।
  4. आगामी शिखर सम्मेलन के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के रूस यात्रा से पहले विदेश सचिव विनय क्वात्रा ने कहा कि इस यात्रा को दोनों देश बहोत महत्व दे रहे हैं।
  5. यह करीब 5 साल में प्रधानमंत्री की पहली रूस यात्रा होगी। इससे पहले उन्होंने 2019 में ब्लादि वॉस्को में एक आर्थिक समेल्लन में हिस्सा लिया था।
  6. रूस की यात्रा समाप्त करने के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ऑस्ट्रिया की यात्रा करेंगे , जो 41 वर्षों में किसी भारतीय प्रधानमंत्री की ऑस्ट्रिया की यात्राहोंगी।
  7. प्रधानमंत्री ऑस्ट्रिया के राष्ट्रपति अलेक्जेंडर बेलन से मुलाकात करेंगे और ऑस्ट्रेलिया के चांसलर कार्ल नेहमान के साथ वार्ता करेंगे।
  8. प्रधानमंत्री भारत और ऑस्ट्रेलिया के उद्योगपतियोंको भी संबोधित करोगे।

भारत और रूस की दोस्ती को 70 साल से ज्यादा हो गए हैं। 13 अप्रैल 1947 को तत्कालीन सोवियत संघ और भारत में आधिकारिक तौर पर दिल्ली और मॉस्को में मिशन स्थापित करने का फैसला लिया था। दोनों देशों के बीच शुरू हुआ दोस्ती का यह सिलसिला 70 साल बाद भी जारी है। वर्तमान में अमेरिका और भारत के बीच नजदीकया बढ़ी है,लेकिन उसका असर भारत और रूस की अटूट दोस्ती पर नहीं पड़ा है। हकीकत यह है कि भारत का सच्चा दोस्त रूस ही है।

रूस और ऑस्ट्रिया में पीएम मोदी का ऐतिहासिक दौरा व्यापार और सुरक्षा पर जोर  PM Modi historic visit to Russia and Austria Emphasis on trade and security

बीते 70 साल में अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में कई बदलाव हुए। कई देशों के बीच रिश्तो में गिरावट आई, लेकिन भारत और रूस के रिश्तो में आज तक कोई खटास देखने को नहीं मिली। भारत की हर मुश्किल में रूस हमेशा ही खड़ा रहा है और खड़ा था। आजादी के बाद देश जब नई करवट ले रहा था तो सोवियत संघ ने मदद के लिए हाथ बढ़ाया था। कई परियोजनाओं में सोवियत संघ ने सहायता की थी।

राजनीतिक संबंधों के बहाली जून 1955 में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सोवियत संघ की यात्रा से हुई और इसी साल के अंत में निकिता खुशियों ने भारत का दौरा किया। खुशियों ने उस वक्त कश्मीर और गोवा पर भारत की दावेदारी का समर्थन किया था। गोवा उस वक्त पुर्तगाल के कब्जे में था। उसके बाद से दुनिया की परवाह किए बगैर सोवियत संघ अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत से दोस्ती निभाता रहा है।

संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सोवियत संघ ने 22 जून 1962 को वीटो का इस्तेमाल करके कश्मीर मुद्दे पर भारत का समर्थन किया था। दरसल सुरक्षा परिषद में कश्मीर के मस्ले को लेकर भारत के खिलाफ एक प्रस्ताव पेश किया था। जिसका अमेरिका ,फ्रांस, ब्रिटेन ,चीन के अलावा आयरलैंड, चिली और वेनेजुएला ने समर्थन किया था।

उस प्रस्ताव के बीच में भारत के खिलाफ पश्चिमी देशों की बड़ी साजिश थी। इसका मकसद कश्मीर को भारत से छीनकर पाकिस्तान को दे देने की योजना थी। लेकिन रूस ने उस वक्त भारत के साथ दोस्ती निभाई और इस साजिश को नाकाम किया।

उससे पहले साल 1961 में भी सोवियत संघ ने वीटो पॉवर वीटो का इस्तेमाल भारत के लिए ही किया था। उसपर रूस का वीटो गोवा के पक्ष में भारत के पक्ष में था। इसके अलावा रूस ने भी पाकिस्तान के खिलाफ और भारत के पक्ष में अपनी वीटो का इस्तेमाल कर चुका है। 1962 के भारत -चीन युद्ध में चीन को उम्मीद थी कि सोवियत संघ उसकी मदद करेगा, लेकिन सोवियत संघ ने इसमें किसी का समर्थन नहीं किया।

1960 के दशक के बीच बीते बीते हालत यह हो गई थी सोवियत संघ चीन से ज्यादा आर्थिक मदद भारत की करने लगा। 1962 में सोवियत संघ ने भारत को मिग – 21 विमान दिया। 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के बाद सोवियत संघ ने दोनों देशों के बीच मध्यस्थता की और शांति कायम करने में अहम भूमिका निभाई।

1970 और 80 के दशक में भी दोनों देशों के बीच भी बेहतरीन संबंध रहे। 1990 के दशक में दुनिया ने नई करवट ली एक तरफ सोवियत संघ का विघटन हुआ दूसरी तरफ भारत ने उदारीकरण की डोर थामली। यह पूरा दशक संबंधों के लिए लिहाज से बेहद औसत रहा।

1991 में रूस बनने के दशक भर बाद 2000 में दोनों देशों ने राजनीतिक संबंधों को नया आयाम दिया इसके लिए दोनों देशों ने सालाना शिखर सम्मेलन आयोजित करने का फैसला किया। दोनों देशों के बीच आब तक 19 बार वार्षिक सम्मेलन हो चुके हैं। दोनों देशों के बीच कई ऐसी समितियां है जो साझा तौर पर काम करती है।

दोनों देश कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों में मंच साझा करते हैं। संयुक्त राष्ट्र ब्रिक्स G- 20 और शंघाई सहयोग संगठन में इसमें सबसे अहम है। इन मंचों पर द्विपक्षीय मुद्दों के अलावा क्षेत्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत और रूस दोनों मिलकर सामान मुद्दों का सामान समाधान चाहते हैं। और उसके रक्षा उद्योग के लिए भारत दूसरा सबसे बड़ा बाजार है व्यापार को बढ़ावा देने के लिए दिसंबर 2015 में दोनों देशों ने वीजा कानून को लचीला बनाया।

भारत और सोवियत संघ शीत युद्ध के दौर में भी एक दूसरे के मित्र थे और भारत पारंपरिक तौर पर अपने अधिकतर हथियार रूस से ही खरीदता रहा है। 1991 में सोवियत संघ का विघटन हो गया। लेकिन भारत के परंपरागत दोस्त रूस का मिजाज नहीं बदला। पिछले 70 सालों में रूस को तमाम उतर चढ़ाव से गुजरना पड़ा लेकिन रूस ने भारत का साथ नहीं छोड़ा।

चलिए हम और विस्तार से भारत और रूस के संबधो के बारे में जानते है।

प्रारंभिक संबंध और ऐतिहासिक संदर्भ-

प्राचीन काल से लेकर आधुनिक युग तक- 

भारत और रूस के बीच सबसे शुरुआती संबंध उस समय से जुड़े हैं जब रूसी यात्री और व्यापारी भारत आए थे। भारत आने वाले सबसे पहले रूसी यात्रियों में से एक अफ़ानासी निकितिन थे, जिन्होंने 15वीं शताब्दी में भारत का दौरा किया था। इन शुरुआती यात्राओं ने भविष्य के सांस्कृतिक और वाणिज्यिक आदान-प्रदान की नींव रखी, भले ही वे छिटपुट और सीमित दायरे में थे।

19वीं शताब्दी और स्वतंत्रता-पूर्व युग-

19वीं शताब्दी में भारत ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के अधीन था और रूस मध्य एशिया में अपना प्रभाव बढ़ा रहा था। इस अवधि में मध्य एशिया में प्रभुत्व के लिए ब्रिटिश साम्राज्य और रूसी साम्राज्य के बीच रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता “ग्रेट गेम” देखी गई। हालाँकि इस प्रतिद्वंद्विता ने तनाव पैदा किया, लेकिन इसका भारत और रूस के लोगों के बीच संबंधों पर सीधा असर नहीं पड़ा।

स्वतंत्रता के बाद और शीत युद्ध काल (1947-1991)

राजनयिक संबंध स्थापित करना-

1947 में ब्रिटिश शासन से स्वतंत्रता प्राप्त करने के बाद, भारत ने सोवियत संघ सहित विभिन्न देशों के साथ मजबूत राजनयिक संबंध स्थापित करने की कोशिश की। 1947 में, भारत और यूएसएसआर ने औपचारिक रूप से राजनयिक संबंध स्थापित किए, जिससे एक रणनीतिक साझेदारी की शुरुआत हुई जो अगले कुछ दशकों में काफी बढ़ गई।

गुटनिरपेक्षता और यूएसएसआर की ओर झुकाव-

भारत ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में शीत युद्ध के दौरान गुटनिरपेक्षता की नीति अपनाई। इसका मतलब यह था कि भारत औपचारिक रूप से न तो अमेरिका के नेतृत्व वाले पश्चिमी ब्लॉक के साथ और न ही सोवियत के नेतृत्व वाले पूर्वी ब्लॉक के साथ गठबंधन करता था। हालाँकि, यूएसएसआर के साथ भारत के संबंध मजबूत हुए, खासकर पड़ोसी पाकिस्तान और चीन के साथ संघर्ष के बाद।

आर्थिक और सैन्य सहयोग-

शीत युद्ध के दौरान, यूएसएसआर भारत के लिए एक महत्वपूर्ण सहयोगी बन गया। सोवियत संघ ने भारत को पर्याप्त आर्थिक और सैन्य सहायता प्रदान की। इस सहायता में सैन्य उपकरणों की आपूर्ति, तकनीकी सहायता और आर्थिक सहायता शामिल थी। सोवियत संघ ने भारत को अपने भारी उद्योग स्थापित करने में भी मदद की और इसके बुनियादी ढांचे के विकास में योगदान दिया।

1971 भारत-सोवियत शांति, मैत्री और सहयोग संधि-

भारत-यूएसएसआर संबंधों में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर 1971 भारत-सोवियत शांति, मैत्री और सहयोग संधि पर हस्ताक्षर करना था। इस संधि ने दोनों देशों के बीच रणनीतिक साझेदारी को औपचारिक रूप दिया और ज़रूरत के समय में आपसी सहयोग का आश्वासन दिया। इस संधि ने 1971 के बांग्लादेश मुक्ति युद्ध के दौरान एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, जहाँ यूएसएसआर ने पाकिस्तान के खिलाफ भारत को राजनयिक और सैन्य सहायता प्रदान की।

सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान-

इस अवधि के दौरान भारत और यूएसएसआर के बीच सांस्कृतिक संबंध भी विकसित हुए। दोनों देशों ने फिल्म समारोहों, कला प्रदर्शनियों और शैक्षणिक सहयोग सहित विभिन्न सांस्कृतिक आदान-प्रदान किए। कई भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए सोवियत संघ गए, खासकर चिकित्सा, इंजीनियरिंग और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में। इन आदान-प्रदानों ने दोनों देशों के लोगों के बीच आपसी समझ और सद्भावना को बढ़ावा देने में मदद की।

सोवियत काल के बाद (1991-वर्तमान)

रूस का उदय और मजबूत संबंधों की निरंतरता-

1991 में सोवियत संघ के विघटन के बाद रूसी संघ का उदय हुआ, जो इसका उत्तराधिकारी राज्य था। भू-राजनीतिक उथल-पुथल के बावजूद, भारत ने नवगठित रूसी संघ के साथ जल्दी ही राजनयिक संबंध स्थापित कर लिए। ऐतिहासिक संबंधों और आपसी हितों ने सुनिश्चित किया कि भारत और रूस के बीच संबंध मजबूत बने रहें।

रक्षा सहयोग-

रूस और ऑस्ट्रिया में पीएम मोदी का ऐतिहासिक दौरा व्यापार और सुरक्षा पर जोर  PM Modi historic visit to Russia and Austria Emphasis on trade and security

रक्षा सहयोग भारत-रूस संबंधों की आधारशिला बना हुआ है। रूस भारत का सैन्य हार्डवेयर का प्राथमिक आपूर्तिकर्ता बना हुआ है, और दोनों देश उन्नत सैन्य प्रौद्योगिकी के विकास और उत्पादन के लिए कई संयुक्त उपक्रमों में लगे हुए हैं। इसका एक उल्लेखनीय उदाहरण ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना है, जो भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) और रूस के NPO मशीनोस्ट्रोयेनिया के बीच एक संयुक्त उद्यम है।

आर्थिक सहयोग-

भारत और रूस के बीच आर्थिक संबंध बढ़े हैं, हालांकि वे रक्षा सहयोग के समान तीव्रता के स्तर तक नहीं पहुंचे हैं। दोनों देशों के बीच व्यापार में हीरे, फार्मास्यूटिकल्स, मशीनरी और कृषि उत्पादों जैसे विविध प्रकार के सामान शामिल हैं। दोनों देश अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) और यूरेशियन आर्थिक संघ (EAEU) के साथ मुक्त व्यापार समझौते के बारे में चर्चा सहित विभिन्न पहलों के माध्यम से आर्थिक सहयोग बढ़ाने के लिए काम कर रहे हैं।

ऊर्जा क्षेत्र में सहयोग-

भारत-रूस संबंधों में ऊर्जा सहयोग एक महत्वपूर्ण पहलू बन गया है। भारत ने रूस के तेल और गैस क्षेत्रों में निवेश किया है और दोनों देशों ने ऊर्जा संसाधनों की दीर्घकालिक आपूर्ति के लिए समझौतों पर हस्ताक्षर किए हैं। रूस की रोसनेफ्ट और भारत की ऑयल एंड नेचुरल गैस कॉरपोरेशन (ONGC) ने विभिन्न ऊर्जा परियोजनाओं पर सहयोग किया है, जिससे भारत को हाइड्रोकार्बन की निरंतर आपूर्ति सुनिश्चित हुई है।

उच्च स्तरीय दौरे और संवाद-

नियमित उच्च स्तरीय दौरे और संवाद भारत-रूस संबंधों की पहचान रहे हैं। दोनों देशों के नेता अक्सर द्विपक्षीय मुद्दों और वैश्विक विकास पर चर्चा करने के लिए मिलते हैं। ये दौरे रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करते हैं और सहयोग के नए क्षेत्रों की पहचान करने में मदद करते हैं।

अंतरिक्ष और परमाणु सहयोग-

रूस और ऑस्ट्रिया में पीएम मोदी का ऐतिहासिक दौरा व्यापार और सुरक्षा पर जोर  PM Modi historic visit to Russia and Austria Emphasis on trade and security

भारत और रूस के बीच अंतरिक्ष और परमाणु प्रौद्योगिकी में सहयोग का लंबा इतिहास रहा है। रूस भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम में एक प्रमुख भागीदार रहा है, जिसने उपग्रहों को लॉन्च करने और अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी विकसित करने में महत्वपूर्ण सहायता प्रदान की है। यह सहयोग परमाणु ऊर्जा क्षेत्र तक फैला हुआ है, जहाँ रूस ने भारत में परमाणु ऊर्जा संयंत्रों के निर्माण में सहायता की है, जैसे कि कुडनकुलम परमाणु ऊर्जा संयंत्र।

सांस्कृतिक और शैक्षिक आदान-प्रदान
सांस्कृतिक आदान-प्रदान-

सांस्कृतिक आदान-प्रदान ने भारत और रूस के बीच संबंधों को मजबूत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। शास्त्रीय नृत्य और संगीत के प्रदर्शन सहित भारतीय सांस्कृतिक उत्सव नियमित रूप से रूस में आयोजित किए जाते हैं। इसी तरह, पारंपरिक नृत्य, संगीत और कला की विशेषता वाले रूसी सांस्कृतिक कार्यक्रम भारत में आयोजित किए जाते हैं।

शैक्षिक सहयोग-

कई भारतीय छात्र रूस में उच्च शिक्षा प्राप्त करना जारी रखते हैं, खासकर चिकित्सा, इंजीनियरिंग और विज्ञान जैसे क्षेत्रों में। रूसी विश्वविद्यालय अपने उच्च मानकों के लिए जाने जाते हैं और पिछले कुछ वर्षों में बड़ी संख्या में भारतीय छात्रों को आकर्षित किया है। ये शैक्षिक संबंध पेशेवरों का एक नेटवर्क बनाने में योगदान करते हैं जो द्विपक्षीय संबंधों को समझते हैं और महत्व देते हैं।

लोकप्रिय संस्कृति-

भारतीय सिनेमा, खास तौर पर बॉलीवुड, रूस में काफी लोकप्रिय है। भारतीय फिल्में अक्सर रूसी फिल्म समारोहों में दिखाई जाती हैं और रूसी दर्शकों से गर्मजोशी से मिलती हैं। इसी तरह, रूसी साहित्य और शास्त्रीय संगीत को भी भारत में प्रशंसक मिले हैं। रूस में योग और आयुर्वेद की लोकप्रियता भी भारत के सांस्कृतिक प्रभाव का उदाहरण है।

समकालीन मुद्दे और सहयोग
वैश्विक संबंधों को संतुलित करना-

समकालीन भारत-रूस संबंधों में चुनौतियों में से एक उनके संबंधित वैश्विक संबंधों को संतुलित करना है। भारत संयुक्त राज्य अमेरिका के साथ अपने संबंधों को मजबूत कर रहा है, जबकि रूस चीन और पाकिस्तान के साथ अपने संबंधों को बेहतर बना रहा है। इन गतिशीलता के बावजूद, भारत और रूस कूटनीतिक प्रयासों और रणनीतिक संवादों के माध्यम से एक मजबूत द्विपक्षीय संबंध बनाए रखने में कामयाब रहे हैं।

रक्षा और सुरक्षा-

रक्षा सहयोग भारत-रूस संबंधों का एक महत्वपूर्ण घटक बना हुआ है। दोनों देश नियमित रूप से संयुक्त सैन्य अभ्यास करते हैं और रक्षा प्रौद्योगिकी पर सहयोग करते हैं। भारत रूस से लड़ाकू जेट, पनडुब्बियों और मिसाइल प्रणालियों सहित उन्नत सैन्य उपकरण खरीदना जारी रखता है। ये सहयोग सुनिश्चित करते हैं कि रक्षा साझेदारी मजबूत और पारस्परिक रूप से लाभकारी बनी रहे।

ऊर्जा सुरक्षा-

ऊर्जा सुरक्षा एक और क्षेत्र है जहाँ भारत और रूस के बीच महत्वपूर्ण सहयोग है। भारत की बढ़ती ऊर्जा ज़रूरतें इसे रूसी तेल और गैस निर्यात के लिए एक महत्वपूर्ण बाज़ार बनाती हैं। भारतीय और रूसी ऊर्जा कंपनियों के बीच दीर्घकालिक समझौते भारत को हाइड्रोकार्बन की स्थिर आपूर्ति सुनिश्चित करते हैं। इसके अतिरिक्त, दोनों देश अपनी ऊर्जा साझेदारी में विविधता लाने के लिए अक्षय ऊर्जा परियोजनाओं की खोज कर रहे हैं।

अंतर्राष्ट्रीय सहयोग-

भारत और रूस अक्सर संयुक्त राष्ट्र, ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका) और शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर एक-दूसरे का समर्थन करते हैं। इन मंचों पर उनका सहयोग बहुध्रुवीय विश्व व्यवस्था और सामूहिक रूप से वैश्विक चुनौतियों का समाधान करने के लिए उनकी साझा प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

भविष्य की संभावनाएँ
आर्थिक संबंधों का विस्तार-

रक्षा सहयोग मजबूत है, लेकिन भारत और रूस के बीच आर्थिक संबंधों के विस्तार की संभावना है। दोनों देश सूचना प्रौद्योगिकी, फार्मास्यूटिकल्स और कृषि जैसे क्षेत्रों में व्यापार और निवेश बढ़ाने के अवसर तलाश रहे हैं। अंतर्राष्ट्रीय उत्तर-दक्षिण परिवहन गलियारा (INSTC) जैसी पहल का उद्देश्य दोनों देशों के बीच संपर्क में सुधार करना और व्यापार को बढ़ावा देना है।

तकनीकी सहयोग-

तकनीकी सहयोग भारत-रूस संबंधों को और गहरा करने का एक और रास्ता प्रस्तुत करता है। कृत्रिम बुद्धिमत्ता, साइबर सुरक्षा और अंतरिक्ष अन्वेषण जैसे क्षेत्रों में संयुक्त अनुसंधान और विकास परियोजनाओं से महत्वपूर्ण लाभ मिल सकते हैं। दोनों देशों के पास ऐसी नवीन परियोजनाओं पर सहयोग करने के लिए तकनीकी विशेषज्ञता है जो आम चुनौतियों का समाधान करती हैं और आर्थिक विकास को बढ़ावा देती हैं।

लोगों के बीच संपर्क-

पर्यटन, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और शैक्षिक कार्यक्रमों के माध्यम से लोगों के बीच संपर्क को मजबूत करने से भारत-रूस संबंध और मजबूत होंगे। दोनों देशों के नागरिकों के बीच अधिक बातचीत को प्रोत्साहित करने से आपसी समझ और दीर्घकालिक मित्रता को बढ़ावा मिल सकता है।

अगर आप को History of Russia-India Bilateral Relations in Photos देखने हे तो निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे।

https://india.mid.ru/en/history/photo_archive/70_years_of_bilateral_relations/

निष्कर्ष-

भारत और रूस के बीच ऐतिहासिक संबंधों, रणनीतिक हितों और आपसी सहयोग पर आधारित एक गहरा और बहुआयामी संबंध है। रूसी यात्रियों की शुरुआती यात्राओं से लेकर शीत युद्ध के दौरान एक मजबूत रणनीतिक साझेदारी की स्थापना तक, यह संबंध रक्षा, ऊर्जा, संस्कृति और शिक्षा सहित विभिन्न क्षेत्रों को शामिल करते हुए विकसित हुआ है। वैश्विक राजनीतिक परिदृश्य में बदलावों के बावजूद, भारत और रूस एक मजबूत और स्थायी साझेदारी बनाए रखने में कामयाब रहे हैं।

भारत-रूस संबंधों का भविष्य आशाजनक दिखता है, जिसमें आर्थिक संबंधों, तकनीकी सहयोग और लोगों के बीच संपर्क बढ़ाने के अवसर हैं। अपनी ऐतिहासिक मित्रता को आगे बढ़ाते हुए और सहयोग के नए क्षेत्रों की खोज करके, भारत और रूस अपने बंधन को मजबूत करना जारी रख सकते हैं और वैश्विक शांति और स्थिरता में योगदान दे सकते हैं।

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https://iasbharti.com/new-turn-in-relations-between-india-and-bangladesh-sheikh-hasina-welcomed/#more-558

 

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