महासागरीय धाराएं Ocean currents

Ocean currents-

  • महासागरीय जल कभी स्थिर नहीं रहता। महासागरीय जल में तीन प्रकार की गतियां होती है। इनमें से प्रथम प्रकार की गति ज्वार भाटा के रूप में होती है। ज्वार भाटा जलस्तर के निरंतर क्रमिक रूप में उठने तथा नीचे गिरने की प्रक्रिया है। ज्वार भाटा की उत्पत्ति चंद्रमा तथा सूर्य की गुरुत्वाकर्षण शक्ति के कारण होती है। अतः ज्वार भाटा जल के एक स्थान से दूसरे स्थान की ओर स्थानांतरित की ओर संकेत नहीं करता। महासागरीय जल में दूसरे प्रकार की गति तरंगों के रूप में होती है।
  • समुद्रों में तरंगे पानी के साथ पवनों के घर्षण तथा पृथ्वी की हलचलो आदि का परिणाम होती है। तरंगों के अंतर्गत भी जल का एक स्थान से दूसरे स्थान तक स्थानांतरण नहीं होता। तरंगों के रूप में महासागरीय जल केवल ऊर्ध्वाधर गति करता है। केवल तटों के निकट तरंगों के कारण समुद्र के पानी में थोड़ी बहुत क्षैतिज गति अथवा स्थानांतरण देखा जा सकता है। तरंगों के कारण जल का यह क्षैतिज स्थानांतरण जल में विभिन्नता का परिणाम होता है।

महासागरीय धाराएं Ocean currents

Ocean currents जानें महासागरों की धाराओं का महत्त्व, उनके प्रकार, और जलवायु पर उनके प्रभाव। इस लेख में हम महासागरीय धाराओं के रहस्यों का खुलासा करेंगे, जो पृथ्वी के पर्यावरण और मौसम को आकार देती हैं।

  • महासागरीय जल की गतियां में समुद्री धाराएं सबसे अधिक महत्वपूर्ण है। महासागरीय जल का एक अनिश्चित दिशा में गतिशील होना महासागरीय धारा कहलाता है। धाराएं जल को एक स्थान से दूसरे स्थान पर स्थानांतरित करती है। महासागरीय धाराएं लवणता, घनत्व, महासागरीय जल के तापमान तट रेखा का आकार, पृथ्वी का घूर्णन करना तथा पवनों आदि कारकों का सम्मिलित परिणाम है।
  • महासागरीय जल का घनत्व तापमान और लवणता पर निर्भर करता है। घनत्व का और लवणता के बीच सीधा संबंध है परंतु तापमान और घनत्व के बीच व्युत्क्रम संबंध है। दूसरे शब्दों में महासागर या लवणता में वृद्धि होने से जल का घनत्व बढ़ता है। परंतु तापमान में वृद्धि होने पर घनत्व कम होता है। इन दोनों कारकों के सम्मिलित प्रभाव के परिणाम स्वरुप समुद्री जल का घनत्व उष्णकटिबंधीय क्षेत्र में तथा ध्रुवीय क्षेत्र में अधिक होता है।
  • मध्य अक्षांशीय क्षेत्र में न तो तापमान ही अती निम्न होता है और न हीं लवणता अधिक उच्च होती है। इसलिए इन क्षेत्रों में जल का घनत्व कम होता है। समुद्रों में घनत्व प्रवणता के कारण महासागरीय जल ध्रुवों से तथा उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों से मध्य अक्षांशीय क्षेत्र की ओर महासागरीय धाराओं के रूप में गति करता है। परंतु महासागरीय धाराओं का वास्तविक स्वरूप बहुत से कारको जैसे पृथ्वी का घूर्णन, तट रेखा की आकृति, पवनों की दिशा आदि से भी प्रभावित होता है।

उष्ण एवं शीत धाराएं-

महासागरीय धाराएं Ocean currents

उष्ण धाराएं

  • महासागरीय धाराओं को उष्ण और शीत धाराओं में विभक्त किया जाता है। धाराओं को उष्ण और शीत महासागरीय धाराओं में उनके सापेक्ष तापमान के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है। जब महासागरों में धाराओं के रूप में प्रभावित होने वाले जल का तापमान किसी स्थान के सामान्य अक्षांशीय तापमान की अपेक्षा अधिक होता है तो इन महासागरीय धाराओं को उष्ण धाराएं कहते हैं।

शीत धाराएं

  • इसके विपरीत जिन धाराओं के पानी का तापमान अपेक्षाकृत निम्न होता है उन्हें शीत धाराएं कहते हैं। इस प्रकार जो धाराएं निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर बहती है उष्ण धाराएं होती है, जबकि उच्च अक्षांशों से निम्न अक्षांशों की ओर प्रवाहित होने वाली धाराएं शीत धाराएं होती है।
  • समुद्रों में तलीय धाराओं के अतिरिक्त कुछ उपतलीय धाराएं भी होती है। यह धाराएं समुद्रों में जल संतुलन बनाए रखने वाले कारकों के रूप में कार्य करती है। उष्ण जल विषुवतीय क्षेत्रों से समुद्र की सतह पर बहता हुआ ध्रुवों की ओर जाता है जबकि ठंडी जलधाराए ध्रुवीय क्षेत्रों से विषुवत रेखा की ओर उपतलीय बहाव के रूप में जाती है। ध्रुवीय क्षेत्रों से आने वाली यह धाराएं निम्न अक्षांशों से उच्च अक्षांशों की ओर जाने वाले जल की पुन: आपूर्ति करती है।
  • ध्रुवीय गोलार्ध में धाराएं घड़ी की सुइयों के अनुरूप दिशा में प्रवाह करती है। जबकि दक्षिणी गोलार्ध में इनका प्रवाह इससे विपरीत दिशा में होता है। यह मूलतः पृथ्वी के घूर्णन का परिणाम है। इसी कारण शीत धाराएं उष्णकटिबंध में महाद्वीपों के पश्चिमी तटों के साथ बहती है। जबकि उष्ण धाराएं इन्ही अक्षांशों पर महाद्वीपों के पूर्वी किनारो के साथ बहती है।
  • इसके विपरीत उच्च अक्षांशों पर शीत धाराएं महाद्वीपों के पूर्वी तटों पर तथा उष्णधाए महाद्वीपों के पश्चिमी तटों के साथ बहती है। इसी कारण उत्तरी यूरोप के पश्चिमी तटों पर उष्ण धाराएं बहती है और कनाडा के पूर्वी तट पर स्थित शीत धाराओं का प्रवाह होता है। इसी नियम के अनुसार उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट के साथ शीत धाराएं होती है जबकि इन्हीं अक्षांशों पर संयुक्त राज्य अमेरिका के दक्षिणी पूर्वी तट के साथ उष्ण धाराएं पाई जाती है।

महासागरीय धाराओं का तापमान पर प्रभाव-

  • महासागरीय धाराएं विश्व के अनेक भागों के तापमान को प्रभावित करती है। महासागरीय धाराएं जलवायु से संबंधित महत्वपूर्ण कारक नहीं है किंतु कई क्षेत्रों में जलवायु को परिवर्तित करने में इनका महत्वपूर्ण योगदान रहता है। एक समान अक्षांशों पर महाद्वीपों के पूर्वी तटों के साथ शीत धाराऔ और पश्चिमी तटों के साथ उष्ण धाराओं की उपस्थिति से इन क्षेत्रों का तापमान प्रभावित होता है। इसी कारण महाद्वीपों के पश्चिमी तटों पर उच्च अक्षांशों में स्थित बंदरगाह शीतकाल में भी खुले रहते हैं।
  • जबकि समान अक्षांशों पर पूर्वी तटों पर स्थित बंदरगाह बर्फ जमी होने से बंद हो जाते हैं। महाद्वीपों के पश्चिमी किनारो पर स्थित मरुस्थल भी इस तथ्य को स्पष्ट करते हैं, कि उष्णकटिबंधी में महाद्वीपों के पश्चिमी किनारो के साथ शीत धाराएं बहती है। इन महासागरों से स्थल की ओर बहने वाली पवने शीत होती हैं, जिस कारण इनमें आद्रता धारण करने की क्षमता कम होती है और यह पवनें निकटवर्ती स्थलखंडो पर वर्षा करने में असमर्थ होते हैं। शीत धाराएं इन मरुस्थलों में शुष्कता को बढ़ावा देती है ,यद्यपि मरुस्थल कई बार महासागरों से काफी समीप स्थित होते हैं।

प्रमुख धाराएं-

संसार के प्रमुख उष्ण धाराएं हैं

  • -उत्तरी और दक्षिणी विषुवतीय धाराएंहीन (तीनों प्रमुख महासागरों ) में गल्फ स्ट्रीम, फ्लोरिडा धारा, उत्तरी अटलांटिक ड्रिफ्ट तथा ब्राजील धारा, अटलांटिक महासागर में क्यूरोशियो धारा, प्रशांत महासागर में तथा अगुलहास धारा हिंद महासागर में।
  • प्रमुख शीत महासागरीय धाराओं- में लैब्राडोर धारा, कनेरी धारा, बेंगु एला धारा, फॉकलैंड धारा, अटलांटिक महासागर में अलास्का धारा, पेरू धारा, अथवा हम्बोल्ट धारा और कैलिफोर्निया धारा प्रशांत महासागर में बहती है।
  • जैसा कि पहले कहां जा चुका है की धाराओं की उत्पत्ति के लिए महत्वपूर्ण कारक महासागरीय जल के घनत्व में अंतर, पृथ्वी का घूर्णन, पवनें एवं तट रेखा की बनावट आदि है। पृथ्वी के घूर्णन के कारण विषुवतीय रेखीय प्रदेश में महाद्वीपों के पूर्वी तटों के समीप जल का जमाव हो जाता है। इसके परिणाम स्वरुप प्रत्येक महासागर में एक विषुवत रेखीय धारा पश्चिम की ओर प्रवाहित होती है।
  • पृथ्वी के घूर्णन एवं कोरियोलिस प्रभाव के कारण पवनों की भांति महासागरीय धाराएं भी अपने मार्ग से मुड़ जाती है। इस प्रभाव के कारण उत्तरी गोलार्ध में धाराएं अपनी दाहिनी और तथा दक्षिणी गोलार्ध में अपनी बायी और मुड़ जाती है। इन सभी कारकों के मिले-जुले प्रभाव से धाराओं की एक श्रृंखला चक्राकार कोष के रूप में सभी महासागरों में दोनों गोलार्ध में प्रवाहित होती है। इस चक्रीय कोष को जाइर (Gyre)कहते हैं।

महासागरीय धाराएं Ocean currents

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