चटगांव शास्त्रागार लूट एक शहीद शिक्षक की कहानी chatgaon loot
“chatgaon loot : भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान क्रांतिकारियों द्वारा अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ की गई ऐतिहासिक चटगांव विद्रोह और लूट की पूरी कहानी। जानें इस साहसिक अभियान के नायक, योजना, और इसके प्रभाव का इतिहास।”
- यह वह बहादूर शिक्षक की कहानी है (chatgaon loot)जो अपने देश के लिए हस्ते हस्ते शहीद हो गये उनका नाम सूर्यसेन है | लोग प्यार से उन्हें मास्टर दा के नाम से पुकारते थे| वह कहां करते थे सह्यृदयता क्रांतिकारी का विशेष गुण है| सूर्य सेन मृदुभाषी शांत तथा लगनशील व्यक्ति थे| तथा कविताओं से उन्हें बहुत लगाव था रवींद्रनाथ टैगोर तथा काजी नज़रुल इस्लाम के बहुत बड़े प्रशंसक थे, सूर्य सेन ने जब भारत में असहयोग आंदोलन चल रहा था तब उसमें सक्रिय भूमिका निभाई थी तब वह चटगांव के राष्ट्रीय विद्यालय में एक शिक्षक के रूप में काम कर रहे थे |
- सूर्य सेन हर क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होने के कारण उन्हें 1926 से 1928 तक जेल में रहना पड़ा | जेल से रिहा होने के बाद वह फिर से कांग्रेस के साथ काम करने लगे, उन्हें चटगांव जिला कांग्रेस कमेटी के सचिव के रूप में पदभार सोपा गया|
चटगांव आर्मरी रेड, जिसे “चटगांव कांड ” के नाम से भी जाना जाता है, ब्रिटिश साम्राज्य के खिलाफ भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण घटना थी। 1930 में घटित यह कांड और साहसी विद्रोह की यह घटना चटगांव , बंगाल में एक युवा क्रांतिकारियों के समूह द्वारा नेतृत्व की गई थी, और इस घटना ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव छोडा ।
- 20वीं सदी की शुरुआत में, भारत ब्रिटिश साम्राज्य के दमनकारी शासन के तहत था। औपनिवेशिक नेताओं की अत्याचारी नीतियों, आर्थिक कठिनाइयों और राजकीय दमन से भारतीय जनसंख्या में असंतोष की भावना उत्पन्न हुई थी। इस दौरान, स्वायत्तता और स्वतंत्रता के पक्ष में देशभक्तो के एक नए आंदोलनों की शुरुवात हो रही थी। चटगांव कांड chatgaon loot भी ऐसा ही एक आंदोलन था, जिसमें ब्रिटिश साम्राज्य के शक्ति की दमनकारी नीतियोंसे से मुक्ति पाने की इच्छा थी।
सूर्य सेन ने अपने सहयोगियों अनंत सिंह ,गणेश घोष तथा लोकीनाथ बाउल के साथ मिलकर सशस्त्र विद्रोह की योजना बनाई इसका उद्देश्य जनता को यह बताना था कि सशस्त्र विद्रोह से शक्तिशाली ब्रिटिश साम्राज्यवाद को जड़ से उखाड़ फेंका जा सकता है | विद्रोही की प्रस्तावित कार्यवाही में चटगांव के दो शस्त्रागारों पर कब्जा कर युवा क्रांतिकारियों को हथियारबंद करने के निमित्त हथियारों को लूटने, नगर की टेलीफोन और टेलीग्राफ संचार व्यवस्था को नष्ट करना तथा चटगांव और शेष बंगाल के बीच रेल संपर्क को भंग करना था|- इंडियन रिपब्लिकन आर्मी की चटगांव शाखा के तले 65 युवा क्रांतिकारियों द्वारा अप्रैल 1930 में शस्त्रागारों पर धावा बोल दिया गया | पुलिस शस्त्रागारों पर सफलता पूर्वक कब्जा कर लिया गया, सूर्य सेन ने सहस्रागारोह के बाहर राष्ट्रीय झंडा फहराया, क्रांतिकारी युवकों ने उन्हें सलामी दी, तथा कामचलाउ क्रांतिकारी सरकार के गठन की घोषणा की गई| बाद में यह समीपवर्ती गांवो में फैल गए तथा सरकारी दफ्तरों एवं सरकारी संपत्ति पर छापे मारेकिंतु शीघ्र ही सेना चटगांव पहुंच गई तथा उसने मोर्चा संभाल लिया |
- सेना तथा क्रांतिकारियों ने सशस्त्र संघर्ष हुआ| कई युवा क्रांतिकारी बहादुरी पूर्वक संघर्ष करते हुए शहीद हो गए, फरवरी 1933 में सूर्य सेन गिरफ्तार कर लिए गए ,उन् पर मुकदमा चलाया गया तथा जनवरी 1934 में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया और वह हंसते-हंसते अपने देश के लिए शहीद हो गए | किंतु चटगांव कांड से जनता अत्यंत प्रभावित हुई, इस घटना से क्रांतिकारी विचारों वाले युवकों का उत्साह बहुत बढ़ गया तथा बड़ी तादाद में युवक विभिन्न क्रांतिकारी गुटों में शामिल होने लगे | 1930 में क्रांतिकारी गतिविधियों ने पुनर्ज़ोर पड़ा तथा यह कम 1932 तक चलता रहा |
सहस्रागारो की लूट से सरकार पहले तो घबराई लेकिन बाद में वह बर्बर दमन पर उत्तर आयी , सरकार ने 20 दमनकारी कानून जारी किये तथा क्रांतिकारियों को कुचलने हेतु पुलिस को पूरी छूट दे दी | चटगांव में पुलिस ने अनेक गांवों को जलाकर भस्म कर दिया तथा अनेक ग्रामीणों पर भारी जुर्माना लगाया देशद्रोह के आरोप में 1933 में जवाहरलाल नेहरू को गिरफ्तार कर लिया गया | तथा उन्हें 2 वर्ष की सजा दी गई उन पर साम्राज्यवाद तथा पुलिस के दमन की निंदा करने तथा क्रांतिकारी युवकों के साहस और वीरता की प्रशंसा करने का आरोप था|
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