भारतीय रिजर्व बैंक का ईतिहास History of Reserve Bank of India
इतिहास-
History of Reserve Bank of India और भारत की अर्थव्यवस्था में इसकी भूमिका को समझें – जानें कैसे RBI बना देश की वित्तीय प्रणाली का आधार।
- भारत में एक केंद्रीय बैंक स्थापित करने का विचार सबसे पहले 1926 में भारतीय मुद्रा और वित्त पर रॉयल कमीशन, जिसे हिल्टन-यंग कमीशन के नाम से भी जाना जाता है, द्वारा प्रस्तावित किया गया था। इस सिफारिश के बाद, भारतीय रिज़र्व बैंक की संकल्पना की गई और यह अस्तित्व में आया।
- भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना वर्ष 1935 में एक निजी बैंक के रूप में की गई थी इसे सामान्य बैंकिंग व्यवसाय के साथ दो अन्य कार्य भारत में विद्यमान बैंकों का नियमन तथा नियंत्रण करना एवं सरकार में बैंक की भूमिका निभाना भी दिए गए थे। भारत सरकार द्वारा वर्ष 1949 में इसका राष्ट्रीयकरण कर दिया गया। तथा इसे विश्व के अन्य देशों की तरह केंद्रीय बैंकिंग निकाय का दर्जा प्रदान किया गया। इसके साथ ही आरबीआई तकनीकी तौर पर एक बैंक नहीं रहा गया। आरबीआई राष्ट्रीयकरण अधिनियम तथा आने वाले समय की अपनी कई घोषणाओं के माध्यम से सरकार द्वारा इसे कई कार्य सौंप गए। जिनका विवरण निम्न है
1) निर्गम एजेंसी-
- यह एक रुपए के नोट एवं सिक्कों तथा छोटे सिक्कों को छोड़कर सभी करेंसी नोट एवं सिक्कों का निर्गम एजेंसी का कार्य करता है.
2) वितरणकारी एजेंसी-
- आरबीआई अपने एवं सरकार द्वारा निर्गमित नोटों एवं सिक्कों का वितरणकर्ता भी है.
3) सरकार का बैंक-
- आरबीआई भारत सरकार के बैंक/ बैंकर का कार्य किया जाता है। इसके अंतर्गत यह सरकार के ऋण का प्रबंध उसके द्वारा किए गए ट्रेजरी बिलों की खरीद इत्यादि कार्य संपादित करता है.
4) अंतिम घड़ी का बैंक-
- इसके अंतर्गत आरबीआई देश में कार्य करने वाले सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ,वित्तीय संस्थानों को संकट की अवधि में आर्थिक सहायता उपलब्ध कराता है.
5) मौद्रिक एवं शाखा नीति-
- आरबीआई द्वारा ही भारत की मौद्रिक एवं साख नीति की घोषणा की जाती है। आमतौर पर इसकी घोषणा वर्ष में दो बार व्यस्त काल तथा सुस्त काल के प्रारंभ होने के पूर्व की जाती है ,लेकिन आवश्यकता पड़ने पर इसमें सामाजिक परिवर्तन भी होता रहता है.
6) विनिमय दर स्थरीकरण-
- आरबीआई को भारतीय मुद्रा रुपए के विनिमय दर को स्थिरीकृत रखने का भी कार्य सोपा गया है.
7) मुद्रास्फीति दर स्थिरीकरण-
- मुद्रा स्थिति दर के बार-बार उच्च स्तरीय होने की स्थिति में सरकार ने इसे मुद्रास्फीति स्तरीकरण का भी कार्य सोफा।
8) विदेशी विनिमय भंडार-
- का संग्रह करता भारत के विदेशी विनिमय भंडार का यह अंतिम संग्रह करता है। तथा यह इसका प्रबंधन भी करता है.
9) सरकार का एजेंट
- इसके अंतर्गत यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष , इत्यादि में सरकार के एजेंट के रूप में कार्य करता है.
10) विकास प्रोस्ताहन संबंधी कार्य –
- उपरोक्त कार्यो के अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा इसे अर्थव्यवस्था विकास एवं प्रोस्ताहन का भी कार्य सोपा गया है। अपने इस उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हुए आरबीआई द्वारा कई विशेषाकृत वित्तीय संस्थान बैंकों को स्थापना की गई है। भारतीय औद्योगिक विकास बैंक ,भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक, राष्ट्रीय कृषि विकास बैंक ,राष्ट्रीय आवासीय बैंक इत्यादि।
चुनौतियाँ और भविष्य का दृष्टिकोण-
- जबकि भारतीय रिज़र्व बैंक ने भारतीय अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, इसे गतिशील वैश्विक और घरेलू आर्थिक परिदृश्य में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। कुछ प्रमुख चुनौतियों में मुद्रास्फीति का प्रबंधन, बैंकिंग क्षेत्र में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों को संबोधित करना और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं के प्रभाव को नियंत्रित करना शामिल है।
- आरबीआई के भविष्य के दृष्टिकोण में तकनीकी प्रगति को अपनाना, नियामक ढांचे को मजबूत करना और वित्तीय समावेशन की दिशा में निरंतर प्रयास शामिल हैं। चूँकि भारत निरंतर आर्थिक विकास के लिए प्रयासरत है, वित्तीय स्थिरता बनाए रखने और समावेशी विकास को बढ़ावा देने में केंद्रीय बैंक की भूमिका अपरिहार्य बनी हुई है।
निष्कर्ष-
- भारतीय रिज़र्व बैंक एक समृद्ध इतिहास और बहुमुखी कार्यों के साथ भारत की मौद्रिक और वित्तीय प्रणाली की आधारशिला के रूप में खड़ा है। मौद्रिक नीति तैयार करने से लेकर बैंकिंग क्षेत्र को विनियमित करने और आर्थिक विकास को बढ़ावा देने तक, आरबीआई देश के आर्थिक प्रक्षेप पथ को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। जैसे-जैसे भारत वैश्विक मंच पर विकसित हो रहा है, भारतीय रिजर्व बैंक निस्संदेह देश की अर्थव्यवस्था की स्थिरता और विकास सुनिश्चित करने में एक प्रमुख खिलाड़ी बना रहेगा।
1 thought on “भारतीय रिजर्व बैंक का ईतिहास History of Reserve Bank of India”