RBI

भारतीय रिजर्व बैंक  RBI 

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1 भारतीय रिजर्व बैंक RBI

भारतीय रिजर्व बैंक 

भारतीय रिजर्व बैंक RBI की स्थापना वर्ष 1935 में (सीबीआई एक्ट 1934) एक निजी बैंक के रूप में की गई थी। इसे सामान्य बैंकिंग व्यवसाय के साथ 2 अन्य कार्य भी दिए गए थे।

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आज हम भारतीय रिजर्व बैंक RBI  के बारे में जानने वाले है।

रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) का पूरा इतिहास विस्तार से निम्नलिखित है-

स्थापना और प्रारंभिक वर्ष (1935-1950)

1 अप्रैल 1935- रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (भारतीय रिजर्व बैंक  )की स्थापना हुई। इसे ब्रिटिश राज के दौरान भारतीय मुद्रा और क्रेडिट प्रणाली को नियंत्रित करने के लिए स्थापित किया गया।

1937- RBI का मुख्यालय कोलकाता से मुंबई स्थानांतरित हुआ।

1947- भारत की आजादी के बाद, RBI भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर करने और विकास में योगदान देने के उद्देश्य से काम करने लगी।

राष्ट्रीयकरण और विस्तार (1950-1991)

1 जनवरी 1949- RBI का राष्ट्रीयकरण हुआ। इसका मतलब था कि यह पूरी तरह से भारतीय सरकार के नियंत्रण में आ गया।

1950-1960- इस दशक में RBI ने भारतीय बैंकिंग प्रणाली को मजबूत करने के लिए कई उपाय किए, जैसे कि नए बैंकिंग संस्थानों की स्थापना और ग्रामीण

बैंकों का विस्तार।

1969- भारत सरकार ने 14 प्रमुख वाणिज्यिक बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, जिससे बैंकिंग क्षेत्र में सरकारी नियंत्रण और बढ़ गया।

उदारीकरण और आधुनिकरण (1991-वर्तमान)

1991- भारत ने आर्थिक उदारीकरण की प्रक्रिया शुरू की, जिसमें निजी और विदेशी बैंकों को भारतीय बाजार में प्रवेश की अनुमति दी गई। RBI ने इस प्रक्रिया का मार्गदर्शन किया।

1997: बिमल जालान को RBI का गवर्नर नियुक्त किया गया, जिन्होंने कई वित्तीय सुधारों की शुरुआत की।

2004-2008: वाई वी रेड्डी के कार्यकाल में भारतीय अर्थव्यवस्था को स्थिर रखने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाए गए।

2016: उर्जित पटेल ने गवर्नर का पदभार संभाला और भारतीय मुद्रा प्रणाली में महत्वपूर्ण परिवर्तन किए, जिसमें नोटबंदी शामिल थी।

2020: कोविड-19 महामारी के दौरान, RBI ने कई नीतिगत उपाय किए ताकि अर्थव्यवस्था को स्थिर रखा जा सके और वित्तीय संकट से निपटा जा सके।

प्रमुख उपलब्धियाँ और घटनाएँ

1974: प्राथमिकता प्राप्त क्षेत्र (Priority Sector) के लिए ऋण देने की नीति लागू की गई, जिससे कृषि और लघु उद्योगों को समर्थन मिला।

1985: भारतीय अर्थव्यवस्था में नकली नोटों पर काबू पाने के लिए RBI ने कई सुरक्षा उपाय अपनाए।

2000: डिजिटल बैंकिंग और ऑनलाइन बैंकिंग सेवाओं की शुरुआत हुई।

2013: रघुराम राजन ने गवर्नर का पदभार संभाला और मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए कई उपाय किए।

रिज़र्व बैंक ऑफ़ इंडिया (RBI) भारत का केंद्रीय बैंक है, जो देश के मौद्रिक और वित्तीय प्रणाली को नियंत्रित और विनियमित करता है। इसका मुख्यालय मुंबई में स्थित है। आइए, सरल भाषा में समझते हैं कि RBI कैसे काम करता है:

1. मुद्रा का नियमन (Currency Regulation)

RBI भारतीय मुद्रा, यानी रूपये का प्रबंधन करता है। यह नए नोटों और सिक्कों की छपाई और जारी करने का कार्य करता है, जबकि पुराने और खराब नोटों को वापस लेता है।

2. मौद्रिक नीति (Monetary Policy)

RBI देश की मौद्रिक नीति बनाता है। इसका मुख्य उद्देश्य मुद्रास्फीति (महंगाई) को नियंत्रण में रखना और आर्थिक विकास को बढ़ावा देना है। इसे प्राप्त करने के लिए, RBI रेपो रेट, रिवर्स रेपो रेट, और बैंक रेट जैसी दरों को नियंत्रित करता है।

3. बैंकों का नियमन (Regulation of Banks)

RBI सभी बैंकों का नियमन और निगरानी करता है। यह बैंकों को लाइसेंस जारी करता है, उनकी वित्तीय स्थिति की जांच करता है, और सुनिश्चित करता है कि बैंक नियमों का पालन करें। अगर कोई बैंक संकट में है, तो RBI उसे मदद भी प्रदान कर सकता है।

4. वित्तीय स्थिरता (Financial Stability)

RBI यह सुनिश्चित करता है कि देश की वित्तीय प्रणाली स्थिर और सुरक्षित रहे। यह वित्तीय संकट को रोकने के लिए विभिन्न उपाय अपनाता है और जरूरत पड़ने पर त्वरित कार्यवाही करता है।

5. विदेशी मुद्रा प्रबंधन (Foreign Exchange Management)

RBI विदेशी मुद्रा भंडार का प्रबंधन करता है और विदेशी मुद्रा बाजार में हस्तक्षेप करके रुपया की विनिमय दर को स्थिर रखने की कोशिश करता है। यह विदेशी मुद्रा लेनदेन के नियम भी बनाता है।

6. विकासात्मक कार्य (Developmental Functions)

RBI वित्तीय समावेशन को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न योजनाएं और कार्यक्रम चलाता है। यह ग्रामीण और छोटे उद्योगों के विकास के लिए भी कदम उठाता है।

7. ग्राहक संरक्षण (Customer Protection)

RBI ग्राहकों के हितों की रक्षा के लिए भी कार्य करता है। यह बैंकों को ग्राहकों की समस्याओं का समाधान करने के निर्देश देता है और उपभोक्ता शिकायतों के निवारण के लिए तंत्र उपलब्ध कराता है।

8. भुगतान और निपटान प्रणाली (Payment and Settlement System)

RBI देश में भुगतान और निपटान प्रणाली को संचालित और नियंत्रित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि सभी प्रकार के बैंकिंग लेनदेन सुरक्षित और समय पर पूरे हों।

9. ऋण नियंत्रण (Credit Control)

RBI बैंकों को दिए जाने वाले ऋण की मात्रा और शर्तों को नियंत्रित करता है। यह सुनिश्चित करता है कि बैंकों द्वारा दिये जाने वाले ऋण सुरक्षित और उत्पादक क्षेत्रों में लगें।

भारतीय रिजर्व बैंक

RBI

RBI का मुख्य उद्देश्य देश की आर्थिक स्थिरता और विकास को बनाए रखना है। यह एक ऐसा संस्थान है जो बैंकिंग और वित्तीय प्रणाली की रीढ़ माना जाता है।

1. भारत में विद्यमान बैंकों का नियमन तथा नियंत्रण करना एवं
2. सरकार के बैंक की भूमिका निभाना।

भारत सरकार द्वारा 1949 में राष्ट्रीयकरण कर दिया गया तथा इसे विश्व के अन्य देशों की तरह केंद्रीय बैंकिंग निकाय (CENTRAL बैंकींग BODY )का दर्जा प्रदान किया गया। इसके साथ ही आरबीआई तकनीकी तौर पर एक बैंक नहीं रह गया, अर्थात यह सामान्य बैंकिंग व्यवसाय नहीं कर सकता। आरबीआई राष्ट्रीयकरण अधिनियम तथा आने वाले समय की अपनी कई घोषणाओं के माध्यम से सरकार द्वारा इसे कई कार्य सौंपे गए जिनका विवरण नीचे दिया गया है।

1. निर्गम एजेंसी (ISSUING अजेंसी ) यह ₹1 के नोट एव सिक्कों तथा छोटे सिक्कों को छोड़कर सभी करेंसी नोट एवं सिक्कों के निर्गम एजेंसी का कार्य करता है। (एक रुपए के नोट एव सिक्कें तथा एक रुपए से छोटे सिक्के प्रत्यक्ष वित्त मंत्रालय द्वारा निर्गमित होते हैं)

आरबीआई के इस कार्य को वित्त मंत्रालय द्वारा नियंत्रित किया जाता है। नई मुद्रा को निर्गमित करने की सलाह आरबीआई देता है, लेकिन इसका फैसला वित्त मंत्रालय लेता है। निर्गम एजेंसी से यह तात्पर्य नहीं है कि आरबीआई द्वारा ही नोटों की छपाई का भी अंतिम निर्णय लिया जाता है। तकनीकी तौर पर आरबीआई इस प्रक्रिया में शामिल होता है।

2. वितरणकारी एजेंसी (DISTRIBUTING अजेंसी )आरबीआई अपने एवं सरकार (वित्त मंत्रालय) द्वारा निर्मित निर्गमित नोटों एंव सिक्कों का वितरण करता भी है।

3. सरकार का बैंक (BANKER OF THE GOVERNMENT )आरबीआई द्वारा भारत सरकार के बैंक बैंकर का कार्य किया जाता है। इसके अंतर्गत यह सरकार के ऋण का प्रबंध उसके द्वारा किए गए ट्रेजरी बिलों(TREASURY BILLS ) की खरीद इत्यादि कार्य संपादित करता है।

4. अंतिम घड़ी का बैंक (BANK OF THE LAST RESORT )इसके अंतर्गत आरबीआई देश में कार्य करने वाले सभी अनुसूचित वाणिज्यिक बैंकों ,वित्तीय संस्थानों को संकट की अवधि में आर्थिक सहायता उपलब्ध कराता है।

5. मौद्रिक एवं साख नीति (CREDIT AND MONETARY POLICY )आरबीआई द्वारा ही भारत के मौद्रिक एवं साख नीति की घोषणा की जाती है। आमतौर पर इसकी घोषणा वर्ष में दो बार व्यस्त काल तथा सुस्त कल के प्रारंभ होने के पूर्व की जाती है। लेकिन आवश्यकता पड़ने पर इसमें सामाजिक परिवर्तन भी होता रहता है।

6. मुद्रास्फीति दर स्थिरीकरण (INFLATION STABILISATION )मुद्रास्फीति दर के बार-बार उच्च स्तरीय होने की स्थिति में सरकार ने इसे 1970 के दशक के उत्तरार्ध में मुद्रास्फीति स्थिरीकरण का भी कार्य सोपा।

7. विनिमय दर स्थिरीकरण (EXCHANGE RATE STABILISATION )आरबीआई को भारतीय मुद्रा रुपए के विनिमय दर को स्थिरीकृत रखने का भी कार्य सोपा गया है।

8. विदेशी विनिमय भंडार का संग्रहकर्ता (KEEPER OF THE FOREIGN EXCHANGE RESERVES )भारत के विदेशी विनिमय भंडारा का यह अंतिम संग्रह करता है तथा यह इसका प्रबंधन भी करता है।

9. सरकार का एजेंट (AGENT OF THE GOVERNMENT )इसके अंतर्गत यह अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष आईएमएफ (IMF )इत्यादि में सरकार के एजेंट प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है।

10. विकास संबंधी कार्य (DEVELOPMENT FUNCTION ) उपरोक्त कार्यो (जो विश्व के लगभग सभी केंद्रीय बैंकों द्वारा किए जाते हैं) के अतिरिक्त भारत सरकार द्वारा इसे अर्थव्यवस्था विकास एवं विकास का भी कार्य सोपा गया है। अपने इस उत्तरदायित्व का निर्वाह करते हुए आरबीआई द्वारा कई विशेषाकृत वित्तीय संस्थानों, बैंकों की स्थापना की गई है। भारतीय औद्योगिक विकास बैंक (IDBI ) भारतीय लघु उद्योग विकास बैंक (SIDBI ),राष्ट्रीय कृषि विकास बैंक (NABARD )राष्ट्रीय आवासीय बैंक(NHB ) इत्यादि।

रेपो रेट क्या होता है?

रेपो रेट (Repo Rate) भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) द्वारा तय की गई एक दर है, जिस पर वह वाणिज्यिक बैंकों को अल्पकालिक धनराशि उधार देता है। सरल शब्दों में, जब बैंकों को अचानक पैसों की जरूरत होती है, तो वे अपनी कुछ सिक्योरिटीज़ को गिरवी रखकर RBI से उधार लेते हैं। इस पर जो ब्याज दर लगती है, उसे रेपो रेट कहते हैं।

रेपो रेट कैसे काम करता है?

बैंकिंग प्रणाली में पैसा-

जब RBI रेपो रेट कम करता है, तो बैंकों को कम ब्याज दर पर पैसा मिलता है। इससे बैंक अपने ग्राहकों को भी कम ब्याज दर पर लोन दे पाते हैं, जिससे बाजार में पैसे की उपलब्धता बढ़ती है।

मुद्रास्फीति (Inflation)-

जब बाजार में बहुत ज्यादा पैसा आ जाता है, तो कीमतें बढ़ने लगती हैं, जिसे मुद्रास्फीति कहते हैं। इसे नियंत्रित करने के लिए RBI रेपो रेट बढ़ा देता है, जिससे उधारी महंगी हो जाती है और बाजार में पैसे की आपूर्ति कम हो जाती है।

रेपो रेट का प्रभाव-

लोन और EMI पर असर-

जब रेपो रेट कम होता है, तो बैंकों द्वारा दिए जाने वाले लोन की ब्याज दरें भी कम हो जाती हैं, जिससे लोन लेना सस्ता हो जाता है और आपकी EMI कम हो सकती है।

बचत और निवेश-

रेपो रेट बढ़ने पर बैंक भी अपने फिक्स्ड डिपॉजिट और अन्य बचत योजनाओं की ब्याज दरें बढ़ा सकते हैं, जिससे बचत करने वालों को फायदा होता है।

रेपो रेट का महत्व-

रेपो रेट भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह न केवल बैंकों और वित्तीय संस्थानों को प्रभावित करता है, बल्कि आम जनता, व्यवसाय और संपूर्ण अर्थव्यवस्था पर भी इसका प्रभाव पड़ता है।

रिवर्स रेपो रेट का अर्थ और महत्व-

रिवर्स रेपो रेट वह दर है जिस पर केंद्रीय बैंक (जैसे कि भारतीय रिजर्व बैंक – RBI) वाणिज्यिक बैंकों से धन उधार लेता है। इसे

आसान भाषा में समझें-
क्या है रिवर्स रेपो रेट?

जब बैंकों के पास अतिरिक्त पैसा होता है जिसे वे तुरंत उपयोग नहीं कर पा रहे होते, तो वे इस धन को केंद्रीय बैंक के पास जमा कर सकते हैं और बदले में ब्याज प्राप्त कर सकते हैं। इस ब्याज की दर को रिवर्स रेपो रेट कहा जाता है।

यह कैसे काम करता है?

मान लीजिए, किसी बैंक के पास अधिक नकदी है और वे इसे सुरक्षित रखना चाहते हैं और उस पर ब्याज भी पाना चाहते हैं। वे इस पैसे को केंद्रीय बैंक के पास जमा करते हैं और बदले में रिवर्स रेपो रेट के हिसाब से ब्याज कमाते हैं।

महत्व क्यों है?

मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने में मदद-

जब बाजार में बहुत ज्यादा पैसा होता है, तो इससे वस्तुओं और सेवाओं की कीमतें बढ़ सकती हैं (मुद्रास्फीति)। केंद्रीय बैंक रिवर्स रेपो रेट बढ़ाकर बैंकों को प्रोत्साहित कर सकता है कि वे अपने अतिरिक्त धन को केंद्रीय बैंक के पास जमा करें, जिससे बाजार में नकदी की कमी होगी और मुद्रास्फीति नियंत्रित होगी।

मौद्रिक नीति का हिस्सा-

रिवर्स रेपो रेट केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति का एक महत्वपूर्ण उपकरण है। इसके माध्यम से बैंक अपनी नीतियों को लागू कर सकते हैं और आर्थिक स्थिरता बनाए रख सकते हैं।

उदाहरण-

यदि रिवर्स रेपो रेट 4% है, और एक बैंक केंद्रीय बैंक के पास 1,00,000 रुपये जमा करता है, तो उस बैंक को साल के अंत में 4,000 रुपये ब्याज के रूप में मिलेंगे।

रिवर्स रेपो रेट में परिवर्तन-

केंद्रीय बैंक समय-समय पर आर्थिक स्थिति के अनुसार रिवर्स रेपो रेट को बदल सकता है। उदाहरण के लिए, आर्थिक संकट के समय, बैंक इस दर को कम कर सकते हैं ताकि बैंक अपना पैसा बाजार में निवेश करें और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करें।
इस प्रकार, रिवर्स रेपो रेट एक महत्वपूर्ण वित्तीय उपकरण है जो बैंकों और केंद्रीय बैंक के बीच के संबंधों को दर्शाता है और आर्थिक स्थिरता बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

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https://www.youtube.com/watch?v=AkeWRVrBFOw

बैंक रेट-

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बैंक रेट का मतलब है वह दर जिसके अनुसार बैंक अपने ऋण और जमा के ब्याज निर्धारित करते हैं। यह रेट बैंक की नीतियों और अर्थव्यवस्था की स्थिति पर निर्भर करता है। जब बैंक रेट कम होता है, तो बैंक अपने उच्च ब्याज वाले ऋणों और जमा पर कम ब्याज देते हैं। जब बैंक रेट बढ़ जाता है, तो बैंक अपने ब्याज दरों को बढ़ा सकते हैं। इसका मुख्य उद्देश्य अर्थव्यवस्था को संतुलित रखना और मुद्रा के अंतर्निहित स्तर को नियंत्रित करना होता है।

अगर आप को RBI के ताज़ा अपडेट के बारे में जानना हे, तो निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे।

https://www.rbi.org.in/

भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के गवर्नरों की सूची-

ओसबोर्न स्मिथ

कार्यकाल: 1 अप्रैल 1935 – 30 जून 1937

जेम्स ब्रैड टेलर

कार्यकाल: 1 जुलाई 1937 – 17 फरवरी 1943

सी. डी. देशमुख

कार्यकाल: 11 अगस्त 1943 – 30 जून 1949

बेनेगल रामा राव

कार्यकाल: 1 जुलाई 1949 – 14 जनवरी 1957

के. जी. अम्बेगांवकर

कार्यकाल: 14 जनवरी 1957 – 28 फरवरी 1957 (कार्यवाहक)

एच. वी. आर. अयंगर

कार्यकाल: 1 मार्च 1957 – 28 फरवरी 1962

पी. सी. भट्टाचार्य

कार्यकाल: 1 मार्च 1962 – 30 जून 1967

एल. के. झा

कार्यकाल: 1 जुलाई 1967 – 3 मई 1970

बी. एन. अदारकर

कार्यकाल: 4 मई 1970 – 15 जून 1970 (कार्यवाहक)

एस. जगन्नाथन

कार्यकाल: 16 जून 1970 – 19 मई 1975

एन. सी. सेन गुप्ता

कार्यकाल: 19 मई 1975 – 19 अगस्त 1975 (कार्यवाहक)

के. आर. पुरी

कार्यकाल: 20 अगस्त 1975 – 2 मई 1977

एम. नरसिम्हम

कार्यकाल: 3 मई 1977 – 30 नवंबर 1977 (कार्यवाहक)

आई. जी. पटेल

कार्यकाल: 1 दिसंबर 1977 – 15 सितंबर 1982

मनमोहन सिंह

कार्यकाल: 16 सितंबर 1982 – 14 जनवरी 1985

ए. घोष

कार्यकाल: 15 जनवरी 1985 – 4 फरवरी 1985 (कार्यवाहक)

आर. एन. मल्होत्रा

कार्यकाल: 4 फरवरी 1985 – 22 दिसंबर 1990

एस. वेंकटरमनन

कार्यकाल: 22 दिसंबर 1990 – 21 दिसंबर 1992

सी. रंगराजन

कार्यकाल: 22 दिसंबर 1992 – 21 नवंबर 1997

बिमल जालान

कार्यकाल: 22 नवंबर 1997 – 6 सितंबर 2003

वाई. वी. रेड्डी

कार्यकाल: 6 सितंबर 2003 – 5 सितंबर 2008

दुव्वुरी सुब्बाराव

कार्यकाल: 5 सितंबर 2008 – 4 सितंबर 2013

रघुराम राजन

अवधि: 4 सितंबर 2013 – 4 सितंबर 2016

उर्जित पटेल

अवधि: 4 सितंबर 2016 – 10 दिसंबर 2018

शक्तिकांत दास

अवधि: 12 दिसंबर 2018 – वर्तमान (जुलाई 2024 तक)

अगर आप को अधिक जानकारी चाहिए तो हमारे RBI आर्टिकल 1 में जाने के लिए निचे दी गई लिंक पर क्लिक करे।

https://iasbharti.com/history-of-reserve-bank-of-india/#more-449

 

FAQ-

Q.1आरबीआई के सीईओ कौन हैं?
ANS. शक्तिकांत दास
अवधि: 12 दिसंबर 2018 – वर्तमान (जुलाई 2024 तक)

Q.2 आरबीआई क्या है और इसके कार्य क्या हैं?

ANS. RBI या भारतीय रिजर्व बैंक, भारत का केंद्रीय बैंक है जो देश की मौद्रिक नीति और वित्तीय प्रणाली को विनियमित करने के लिए जिम्मेदार है। इसके कार्यों में मुद्रास्फीति को नियंत्रित करना, मुद्रा जारी करना, विदेशी मुद्रा का प्रबंधन करना और बैंकों और वित्तीय संस्थानों की नियामक निगरानी के माध्यम से वित्तीय क्षेत्र की स्थिरता सुनिश्चित करना शामिल है। RBI देश में विकास को बढ़ावा देने और वित्तीय स्थिरता बनाए रखने के उद्देश्य से विभिन्न विकासात्मक नीतियों को तैयार करने और लागू करने के माध्यम से आर्थिक विकास में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

Q.क्या आरबीआई सरकार द्वारा संचालित है?

ANS. हां, भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) भारत सरकार के अधिकार के तहत काम करता है, लेकिन काफी हद तक स्वायत्तता के साथ काम करता है। इसकी स्थापना 1935 में भारतीय रिजर्व बैंक अधिनियम के तहत की गई थी और इसे देश की मौद्रिक नीति को विनियमित करने, मुद्रा जारी करने और बैंकिंग प्रणाली की देखरेख करने का काम सौंपा गया है। जबकि सरकार RBI के गवर्नर और डिप्टी गवर्नर की नियुक्ति करती है और विभिन्न माध्यमों से नीतिगत निर्णयों को प्रभावित कर सकती है, RBI वित्तीय स्थिरता और आर्थिक विकास को बनाए रखने के लिए स्वतंत्र रूप से काम करता है। इस संरचना का उद्देश्य भारत के मौद्रिक मामलों के प्रबंधन में RBI की परिचालन स्वतंत्रता के साथ सरकारी निगरानी को संतुलित करना है।

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