राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है ? How is the Governor appointed?

राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है ? How is the Governor appointed?

आज हम राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है ? How is the Governor appointed? के बारे में जानने वाले है। 

राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है ? How is the Governor appointed?

भारत की शासन संरचना के विविध और गतिशील परिदृश्य में, राज्यपाल का पद महत्वपूर्ण महत्व रखता है। राज्यपाल देश के संघीय ढांचे में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, राज्य के औपचारिक प्रमुख के रूप में कार्य करते हैं और साथ ही उनके पास पर्याप्त संवैधानिक शक्तियां भी होती हैं।

ऐतिहासिक विकास-

भारत में राज्यपालों की भूमिका की जड़ें औपनिवेशिक काल से चली आ रही हैं जब अंग्रेजों ने राज्यपालों को राजशाही के प्रतिनिधियों के रूप में नियुक्त किया था। स्वतंत्रता के बाद, स्थिति में महत्वपूर्ण परिवर्तन हुए क्योंकि 1950 में अपनाए गए भारतीय संविधान ने केंद्र और राज्यों के बीच शक्तियों के स्पष्ट सीमांकन के साथ एक संघीय प्रणाली की स्थापना की।

भारत के संविधान में राज्य में सरकार की इस तरह परिकल्पना की गई है जैसे कि केंद्र के लिए। इस संसदीय व्यवस्था कहते हैं। संविधान के छठे भाग में राज्य में सरकार के बारे में बताया गया है। संविधान के छठे भाग के अनुच्छेद 153 से 167 तक राज्य कार्यपालिका के बारे में बताया गया है।

राज्य कार्यपालिका में शामिल होते हैं –

राज्यपाल ,मुख्यमंत्री, मंत्री परिषद और राज्य के महाधिवक्ता, इस तरह राज्य में उपराज्यपाल का कोई कार्यालय नहीं होता ,जैसे कि केंद्र में उपराष्ट्रपति होते हैं। राज्यपाल का राज्य का कार्यकारी प्रमुख होता है। राज्यपाल केंद्र सरकार के प्रतिनिधि के रूप में भी कार्य करता है। इस तरह राज्यपाल कार्यालय दोहरी भूमिका निभाता है। सामान्यतः प्रत्येक राज्य के लिए एक राज्यपाल होता है ,लेकिन सातवें संविधान संशोधन अधिनियम 1956 की धारा की अनुसार एक ही व्यक्ति को दो या अधिक राज्यों का राज्यपाल भी नियुक्त किया जा सकता है.

राज्यपाल की नियुक्ति-

राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है ? How is the Governor appointed?

राज्यपाल ना तो जनता द्वारा सीधे चुना जाता है और न ही अप्रत्यक्ष रूप से राष्ट्रपति की तरह संवैधानिक प्रक्रिया के तहत उसका चुनाव होता है। उसकी नियुक्ति राष्ट्रपति के मुहर लगे आज्ञापत्र के माध्यम से होती है। इस प्रकार वह केंद्र सरकार द्वारा मनोनीत होता है।
लेकिन उच्चतम न्यायालय की 1979 की व्यवस्था की अनुसार राज्य में राज्यपाल का कार्यालय केंद्र सरकार के अधीन रोजगार नहीं है। यह एक स्वतंत्र संवैधानिक कार्यालय है और यह केंद्र सरकार के अधिनिष्ठ नहीं है। संविधान में वयस्क मताधिकार के तहत राज्यपाल के सीधे निर्वाचन की बात उठी लेकिन संविधान सभा ने वर्तमान व्यवस्था यानी राष्ट्रपति द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति को ही अपनाया इसके निम्नलिखित कारण है-

1) राज्यपाल का सिधा निर्वाचन राज्य में स्थापित संसदीय व्यवस्था की स्थिति के प्रतिकूल हो सकता है.

2) सीधे चुनाव की व्यवस्था से मुख्यमंत्री और राज्यपाल के बीच संघर्ष की स्थिति पैदा हो सकती है.

3) राज्यपाल सिर्फ संवैधानिक प्रमुख होता है इसलिए उसके निर्वाचन के लिए चुनाव की जटिल व्यवस्था और भारी धन खर्च करने का कोई अर्थ नहीं है.

4) राज्यपाल का चुनाव पूरी तरह से व्यक्तिक मामला है इसलिए इस चुनाव में भारी संख्या में मतदाताओं को शामिल करना राष्ट्रीय हित में नहीं है.

संविधान ने राज्यपाल के रूप में नियुक्त किए जाने वाले व्यक्ति के लिए दो अहर्ताएं निर्धारित की है वह है-

1) उसे भारत का नागरिक होना चाहिए
2) वह 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो

इन वर्षों में इसके अतिरिक्त दो अन्य परंपराएं भी जुड़ गई है-
1 ) उसे बाहरी होना चाहिए यानी कि वह उसे राज्य से संबंधित ना हो जहां उसे नियुक्त किया गया है। ताकि वह स्थानीय राजनीति से मुक्त रह सके.

2 ) जब राज्यपाल की नियुक्ति हो तब राष्ट्रपति के लिए आवश्यक हो कि वह राज्य के मामले में मुख्यमंत्री से परामर्श करें ताकि राज्य में संवैधानिक व्यवस्था सुनिश्चित हो यद्यपि दोनों परंपराओं का कुछ मामलों में उल्लंघन किया गया है.

प्रधानमंत्री की नियुक्ति कैसे होती है? के बारे में जानने के लिए निचे के लिंक पर क्लिक करे-

https://iasbharti.com/how-is-the-prime-minister-appointed/#more-418

राज्यपाल के पद की शर्तें-

राज्यपाल की नियुक्ति कैसे होती है ? How is the Governor appointed?

संविधान में राज्यपाल के पद के लिए निम्नलिखित शर्तों का निर्धारण किया गया है-

1) उसे न तो संसद सदस्य होना चाहिए और ना ही विधानमंडल का सदस्य। यदि ऐसा कोई व्यक्ति राज्यपाल नियुक्त किया जाता है तो उसे सदन से उस तिथि से अपना पद छोड़ना होगा जब से उसने राज्यपाल का पद ग्रहण किया है.

2) उसे किसी लाभ के पद पर नहीं होना चाहिए।

3) बिना किसी किराए के उसे राज भवन उपलब्ध होगा।

4) वह संसद द्वारा निर्धारित सभी प्रकार की उपलब्धियां विशेष अधिकार और भक्तों के लिए अधिकृत होगा।

5) यदि वह व्यक्ति दो या अधिक राज्यों में बत्तौर राज्यपाल नियुक्त होता है तो यह उपलब्धियां और भत्ते राष्ट्रपति द्वारा तय मानकों को के हिसाब से राज्य मिलकर प्रदान करेंगे।

6) कार्यकाल के दौरान उसकी आर्थिक उपलब्धियां और भत्तों को कम नहीं किया जा सकता।

राज्यपाल का पदावधी –

सामान्यतया राज्यपाल का कार्यकाल पद ग्रहण से 5 वर्ष की अवधि के लिए होता है किंतु वास्तव में वह राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत पद धारण करता है। इसके अलावा वह कभी भी राष्ट्रपति को संबोधित कर अपना त्यागपत्र दे सकता है। उच्चतम न्यायालय ने यह व्यवस्था दी है कि राज्यपाल के ऊपर राष्ट्रपति के प्रसाद पर्यंत का मामला न्यायपूर्ण नहीं है। राज्यपाल के पास न तो कार्यालय की सुरक्षा है और नहीं कार्यालय की निश्चिततथा है। उसे राष्ट्रपति द्वारा किसी भी समय वापस बुलाया जा सकता है। संविधान ने ऐसी कोई विधि नहीं बनाई है जिसके तहत राष्ट्रपति राज्यपाल को हटा दे।

राज्यपालों के कार्य:-

संवैधानिक कर्तव्य-

राज्यपाल विभिन्न संवैधानिक कर्तव्यों का पालन करते हैं जैसे राज्य विधानमंडल को बुलाना और स्थगित करना, उसे संबोधित करना और राज्य विधानमंडल द्वारा पारित विधेयकों को सहमति देना।

कार्यकारी शक्तियाँ-

राज्यपाल राज्य की कार्यपालिका का नाममात्र प्रमुख होता है और मुख्यमंत्री और मंत्रिपरिषद के अन्य सदस्यों की नियुक्ति के लिए जिम्मेदार होता है। राज्यपाल महाधिवक्ता और राज्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति भी करता है।

विवेकाधीन शक्तियाँ-

राज्यपालों के पास कुछ स्थितियों में विवेकाधीन शक्तियाँ होती हैं, जैसे कि जब चुनाव के बाद किसी भी पार्टी के पास स्पष्ट बहुमत नहीं होता है। वे सरकार के गठन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, उस नेता को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करते हैं जिसके पास बहुमत होने की सबसे अधिक संभावना होती है।

विधायी प्रक्रिया में भूमिका-

राज्यपाल की भूमिका विधायी क्षेत्र तक फैली हुई है, जहां वे राज्य विधानमंडल को संबोधित कर सकते हैं और संदेश भेज सकते हैं, यदि आवश्यक हो तो विधान सभा को भंग कर सकते हैं और राष्ट्रपति के विचार के लिए कुछ विधेयकों को आरक्षित कर सकते हैं।

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