Indias first CO2 to methanol plant in Pune
पुणे में भारत का पहला CO2-से-मेथनॉल पायलट प्लांट: एक संधारणीय पहल
भारत में जलवायु परिवर्तन से निपटने और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के उद्देश्य से एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। पुणे, महाराष्ट्र में स्थित CO2-से-मेथनॉल पायलट प्लांट देश का पहला ऐसा प्लांट है, जो कार्बन डाइऑक्साइड (CO2) को मेथनॉल में बदलने की तकनीक का उपयोग कर रहा है। यह परियोजना न केवल कार्बन कैप्चर तकनीक का एक सफल उदाहरण है, बल्कि भारत के संधारणीय विकास के लक्ष्यों को भी मजबूती से आगे बढ़ा रही है।
Indias first CO2 to methanol plant in Pune “पुणे में भारत का पहला CO2 से मेथनॉल प्लांट कार्बन उत्सर्जन को कम करने और सतत विकास को बढ़ावा देने की दिशा में एक क्रांतिकारी पहल है। इसके उद्देश्यों, तकनीक और राष्ट्रीय जलवायु लक्ष्यों के साथ इसके संरेखण के बारे में जानें।”
आज हम Indias first CO2 to methanol plant in Pune के बारे में जानने वाले है।
परियोजना का अवलोकन
Indias first CO2 to methanol plant in Pune यह पायलट प्लांट थर्मैक्स लिमिटेड द्वारा संचालित है और प्रतिदिन 1.4 टन CO2 को संसाधित करने की क्षमता रखता है। इसका मुख्य उद्देश्य कार्बन डाइऑक्साइड को मेथनॉल में बदलना है, जो औद्योगिक उपयोग के लिए एक महत्वपूर्ण रसायन है। मेथनॉल का उपयोग रासायनिक उद्योग में ईंधन और अन्य उत्पादों के उत्पादन के लिए किया जाता है, जिससे इसे एक महत्वपूर्ण ऊर्जा संसाधन माना जाता है।
आँकड़े-
श्रेणी | विवरण |
---|---|
प्लांट क्षमता | 1.4 टन CO2/प्रति दिन |
स्थान | थर्मैक्स लिमिटेड, पुणे, महाराष्ट्र |
निवेश | ₹31 करोड़ (लगभग 3.7 मिलियन अमरीकी डॉलर) |
प्रमुख संगठन | विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST), IIT दिल्ली |
लॉन्च वर्ष | 2024 |
CO2-से-मेथनॉल तकनीक क्या है?
CO2-से-मेथनॉल तकनीक कार्बन कैप्चर एंड यूटिलाइजेशन (CCU) की एक प्रक्रिया है, जिसमें कार्बन डाइऑक्साइड को रासायनिक प्रतिक्रियाओं के माध्यम से मेथनॉल में परिवर्तित किया जाता है। इस तकनीक का प्रमुख लाभ यह है कि यह CO2 के उत्सर्जन को कम करके उसे पुनः उपयोगी उत्पाद में बदल देती है, जो औद्योगिक और ऊर्जा उद्देश्यों के लिए उपयोगी होता है।
प्रमुख हितधारक
इस परियोजना को भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) दिल्ली और थर्मैक्स लिमिटेड के सहयोग से विकसित किया गया है। विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग (DST) ने इस परियोजना के लिए वित्तीय सहायता प्रदान की है। यह एक सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP) मॉडल पर आधारित है, जिसमें उद्योग और शिक्षा क्षेत्र की भागीदारी को बढ़ावा दिया गया है। DST के सचिव अभय करंदीकर ने इस परियोजना को देश के लिए एक परिवर्तनकारी मंच के रूप में वर्णित किया है, जो भारत की कार्बन उत्सर्जन को कम करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
वित्तीय पहलू
इस पायलट प्लांट की अनुमानित लागत ₹31 करोड़ (लगभग 3.7 मिलियन अमरीकी डॉलर) है। इस राशि का वित्त पोषण विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय के तहत DST द्वारा किया गया है। यह निवेश भारत की घरेलू कार्बन कैप्चर तकनीक विकसित करने की प्रतिबद्धता को दर्शाता है। भारत में CO2 के पुनः उपयोग के लिए मेथनॉल उत्पादन तकनीक की सफलता भविष्य में सस्ते और संधारणीय ईंधन के रूप में काम आएगी।
पहल का महत्व
CO2-से-मेथनॉल तकनीक के सफल विकास से कार्बन कैप्चर तकनीकों को बढ़ावा मिलेगा, जिससे भारत जलवायु परिवर्तन से निपटने के वैश्विक प्रयासों में अग्रणी भूमिका निभा सकेगा। मेथनॉल एक महत्वपूर्ण औद्योगिक उत्पाद है, जिसका उपयोग ईंधन, रसायन, और अन्य आवश्यक वस्तुओं के उत्पादन में किया जाता है। इस प्लांट के माध्यम से उत्पादित मेथनॉल का उपयोग भविष्य में ईंधन विकल्प के रूप में किया जा सकता है, जो पेट्रोलियम उत्पादों पर निर्भरता को कम करने में मदद करेगा।
मेथनॉल के उपयोग
- ईंधन: मेथनॉल का उपयोग मोटर वाहनों, रॉकेटों, और अन्य यंत्रों के लिए एक ऊर्जा स्रोत के रूप में किया जाता है।
- रसायन उत्पादन: मेथनॉल का उपयोग रसायनों के उत्पादन में कच्चे माल के रूप में किया जाता है।
- स्वच्छ ऊर्जा: भविष्य में मेथनॉल को स्वच्छ ऊर्जा स्रोत के रूप में उपयोग किया जा सकता है, जो पर्यावरण के लिए लाभकारी होगा।
राष्ट्रीय लक्ष्यों के साथ संरेखण
यह परियोजना भारत के पंचामृत लक्ष्यों के अनुरूप है, जिनकी घोषणा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने सीओपी 26 जलवायु शिखर सम्मेलन में की थी। इन लक्ष्यों के तहत भारत ने 2070 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन प्राप्त करने का संकल्प लिया है। CO2-से-मेथनॉल तकनीक के माध्यम से कार्बन उत्सर्जन को कम करने और पर्यावरण के अनुकूल ऊर्जा समाधान प्रदान करने के लिए यह पहल एक महत्वपूर्ण कदम है।
पंचामृत लक्ष्य क्या हैं?
पंचामृत लक्ष्य भारत के जलवायु परिवर्तन और कार्बन उत्सर्जन को कम करने के लिए घोषित किए गए पांच प्रमुख उपाय हैं:
- गैर-जीवाश्म ऊर्जा से 500 गीगावाट उत्पादन।
- 2030 तक 50% ऊर्जा नवीकरणीय स्रोतों से।
- 2030 तक 1 बिलियन टन कार्बन उत्सर्जन की कमी।
- 2030 तक उत्सर्जन तीव्रता में 45% की कमी।
- 2070 तक नेट जीरो का लक्ष्य।
CO2-से-मेथनॉल पायलट प्लांट की तकनीकी विशेषताएं
इस पायलट प्लांट में आधुनिक कार्बन कैप्चर और रूपांतरण तकनीक का उपयोग किया जा रहा है, जो CO2 को रासायनिक रूप से मेथनॉल में परिवर्तित करता है। इस प्रक्रिया में निम्नलिखित चरण होते हैं:
- कार्बन कैप्चर: वायुमंडल से CO2 को कैप्चर किया जाता है।
- रासायनिक प्रतिक्रिया: कैप्चर किए गए CO2 को हाइड्रोजन के साथ मिलाकर मेथनॉल में परिवर्तित किया जाता है।
- उपयोग: उत्पादित मेथनॉल को औद्योगिक उद्देश्यों के लिए उपयोग किया जाता है।
पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ
CO2-से-मेथनॉल तकनीक के कई पर्यावरणीय और आर्थिक लाभ हैं:
- कार्बन उत्सर्जन में कमी: इस तकनीक से वायुमंडल में उत्सर्जित CO2 की मात्रा को कम किया जा सकता है।
- स्वच्छ ईंधन: मेथनॉल को एक स्वच्छ और संधारणीय ईंधन के रूप में देखा जा रहा है, जो पेट्रोल और डीजल का पर्यावरणीय विकल्प हो सकता है।
- औद्योगिक विकास: मेथनॉल उत्पादन से जुड़े उद्योगों को विकसित करने का अवसर मिलेगा, जिससे रोजगार और आर्थिक विकास को बढ़ावा मिलेगा।
संभावित चुनौतियां
हालांकि यह परियोजना अत्यधिक प्रभावी है, लेकिन इसके साथ कुछ चुनौतियां भी हैं:
- तकनीकी लागत: CO2-से-मेथनॉल तकनीक की उच्च लागत इसे बड़े पैमाने पर अपनाने में बाधा उत्पन्न कर सकती है।
- ऊर्जा स्रोत: इस प्रक्रिया के लिए बड़ी मात्रा में ऊर्जा की आवश्यकता होती है, जो वर्तमान में नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों पर निर्भर नहीं है।
- बुनियादी ढांचा: इस तकनीक के व्यापक उपयोग के लिए उचित बुनियादी ढांचे का विकास आवश्यक है।
भविष्य की दिशा
CO2-से-मेथनॉल पायलट प्लांट का सफल संचालन भविष्य में बड़े पैमाने पर कार्बन कैप्चर और रूपांतरण परियोजनाओं के लिए मार्ग प्रशस्त करेगा। इसका विस्तार भारत को सस्टेनेबल ऊर्जा समाधानों में वैश्विक अग्रणी बना सकता है। इसके अलावा, भारत अपने कार्बन न्यूनीकरण लक्ष्यों को पूरा करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और निवेश का भी लाभ उठा सकता है।
सारांश –
पुणे में स्थापित CO2-से-मेथनॉल पायलट प्लांट भारत के संधारणीय विकास और कार्बन उत्सर्जन को कम करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। यह परियोजना न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि औद्योगिक विकास और आर्थिक प्रगति के लिए भी एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है। कार्बन कैप्चर और यूटिलाइजेशन तकनीक में भारत का यह प्रयास वैश्विक जलवायु परिवर्तन से निपटने के प्रयासों में एक मिसाल बनेगा।