संसद का संयुक्त अधिवेशन joint session of parliament
भारत की संसद का संयुक्त अधिवेशन
परिचय
- भारत की संसद देश की सर्वोच्च विधायी संस्था है, जिसमें दो सदन होते हैं: लोक सभा (लोक सभा) और राज्य सभा (राज्यों की परिषद)। संसद का संयुक्त अधिवेशन इन दोनों सदनों की संयुक्त बैठक होती है। इस तंत्र का उपयोग कुछ विधायी मामलों पर दोनों सदनों के बीच गतिरोध को हल करने के लिए किया जाता है।
- आज हम संसद का संयुक्त अधिवेशन joint session of parliament के बारे में जानने वाले है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
- भारत में संसद का संयुक्त अधिवेशन joint session of parliament सत्र की अवधारणा भारतीय संविधान से ली गई है, जिसे 1950 में अपनाया गया था। यह विचार अन्य लोकतंत्रों में इसी तरह की प्रथाओं से प्रभावित था, विशेष रूप से यूनाइटेड किंगडम में वेस्टमिंस्टर प्रणाली और ऑस्ट्रेलिया में संसदीय प्रथाएँ। भारतीय संविधान के निर्माताओं का उद्देश्य सुचारू शासन सुनिश्चित करने के लिए विधायी विवादों को हल करने के लिए एक मजबूत प्रणाली बनाना था।
चलिए आज हम विस्तार से दोनों सदनोंकी सयुंक्त बैठक के बारे में जानने वाले है।
- राष्ट्रपति भारतीय संसद का एक अभिन्न अंग है तथा उसे निम्नलिखित विधाई शक्तियां प्राप्त है
1. वह संसद की बैठक बुला सकता है अथवा कुछ समय के लिए स्थगित कर सकता है और लोकसभा को विघटित कर सकता है वह संसद के संयुक्त अधिवेशन का आवाहन कर सकता है जिसकी अध्यक्षता लोकसभा अध्यक्ष करता है
2. वह प्रत्येक नए चुनाव के बाद तथा प्रत्येक वर्ष संसद के प्रथम अधिवेशन को संबोधित कर सकता है
3. वह संसद के लंबित किसी विधायक या अन्यथा किसी संबंध में संसद को संदेश भेज सकता है
4. यदि लोकसभा के अध्यक्ष व उपाध्यक्ष दोनों के पद रिक्त हो तो वह लोकसभा के किसी भी सदस्यों को सदन की अध्यक्षता सोप सकता है इसी प्रकार यदि राज्यसभा के सभापति वह उपसभापति दोनों पद रिक्त हो तो वह राज्यसभा के किसी भी सदस्यों को सदन की अध्यक्षता सौप सकता है
5. वह साहित्य विज्ञान कला व समाज सेवा से जुड़े अथवा जानकारी व्यक्तियों में से 12 सदस्यों का राज्यसभा के लिए मनोनीत कर सकता है
6. वह लोकसभा में दो आंग्ल भारतीय समुदाय के व्यक्तियों को मनोनीत कर सकता है
7. वह चुनाव आयोग से परामर्श कर संसद सदस्यों की नीरहर्ता के प्रश्न पर निर्णय करता है
8. संसद में कुछ विशेष प्रकार के विधेयकों को प्रस्तुत करने के लिए राष्ट्रपति की सिफारिश अथवा आज्ञा आवश्यक है उदाहरण के लिए भारत की संचित निधि से खर्च संबंधी विधायक अथवा राज्यों की सीमा परिवर्तन या नए राज्य के निर्माण या संबंधी विधेयक
9. जब एक विधेयक सांसद द्वारा पारित होकर राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो वह
A. विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है अथवा
B. विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है अथवा
C. विधेयक को यदि वह धन विधेयक नहीं है तो संसद के पुनर्विचार के लिए लौटा देता है
हालांकि यदि संसद विधेयक को संशोधन या बिना किसी संशोधन के पुनर्स्थापित पुनर पारित करती है तो राष्ट्रपति को अपनी सहमति देने ही होती है
10. राज्य विधायिका द्वारा पारित किसी विधेयक को राज्यपाल जब राष्ट्रपति के विचार के लिए सुरक्षित रखता है तब राष्ट्रपति
A.विधेयक को अपनी स्वीकृति देता है अथवा
B. विधेयक पर अपनी स्वीकृति सुरक्षित रखता है अथवा
C. राज्यपाल को निर्देश देता है कि विधेयक यदि वह धन विधेयक नहीं है तो को राज्य विधायिका को पुनर्विचार हेतु लौटा दे यह ध्यान देने की बात है कि यदि राज्य विधायिका विधायक को पुनर राष्ट्रपति की सहमति के लिए भेजती है तो राष्ट्रपति स्वीकृति देने के लिए बाध्य नहीं है
11. वह संसद के सत्रावसान की अवधि में अध्यादेश जारी कर सकता है यह अध्यादेश संसद की पुनर बैठक के 6 हफ्तों के भीतर संसद द्वारा अनुमोदित करना आवश्यक है और किसी अध्यादेश को किसी भी समय वापस ले सकता है
12. वह महानियंत्रक व लेखा परीक्षक ,संघ लोक सेवा आयोग, वित्त आयोग अन्य की रिपोर्ट संसद के समक्ष रखता है
13. वह अंडमान वन निकोबार दीप समूह, लक्षद्वीप ,दादर एवं नगर हवेली एवं दमन एवं दीव में शांति विकास व सुशासन के लिए विनिमय बन सकता है पुडुचेरी के भी वह नियम बना सकता है परंतु केवल तब जब वहां की विधानसभा निलंबित हो अथवा विघटित अवस्था में हो .
संयुक्त सत्रों का महत्व
- संसद का संयुक्त अधिवेशन joint session of parliament निम्नलिखित कारणों से महत्वपूर्ण हैं:
1. वे लोकसभा और राज्यसभा के बीच मतभेदों को हल करने में मदद करते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि विधायी कार्य अनिश्चित काल तक ठप न रहे।
2. वे एक ऐसा मंच प्रदान करके लोकतांत्रिक सिद्धांत को बनाए रखते हैं जहाँ दोनों सदन एक साथ विवादास्पद मुद्दों पर चर्चा और बहस कर सकते हैं।
3. वे महत्वपूर्ण कानून पारित करने में सहायता करते हैं, जिससे सरकार के सुचारू संचालन में योगदान मिलता है।
संयुक्त सत्रों के ऐतिहासिक उदाहरण
- भारतीय संसद के इतिहास में तीन संसद का संयुक्त अधिवेशन joint session of parliament हुए हैं:
1. दहेज निषेध अधिनियम, 1961: दहेज निषेध अधिनियम पारित करने के लिए पहला संसद का संयुक्त अधिवेशन joint session of parliament आयोजित किया गया था, जिसका उद्देश्य भारत में दहेज प्रथा को समाप्त करना था।
2. बैंकिंग सेवा आयोग निरसन विधेयक, 1978: बैंकिंग सेवा आयोग अधिनियम को निरस्त करने के लिए इस विधेयक को पारित करने के लिए दूसरा संसद का संयुक्त अधिवेशन joint session of parliament बुलाया गया था।
3. आतंकवाद निवारण अधिनियम, 2002 (पोटा): तीसरा संयुक्त सत्र पोटा को पारित करने के लिए आयोजित किया गया था, जिसे देश में आतंकवाद से निपटने के लिए पेश किया गया था।
तुलनात्मक विश्लेषण
ऑस्ट्रेलिया:
- ऑस्ट्रेलियाई संसद भी गतिरोधों को हल करने के लिए संयुक्त सत्रों का उपयोग करती है। प्रक्रिया कुछ हद तक भारत के समान है, हालांकि आवृत्ति और संदर्भ भिन्न हो सकते हैं।
संयुक्त राज्य अमेरिका:
- अमेरिका में विधायी गतिरोधों को हल करने के लिए संसद का संयुक्त अधिवेशन joint session of parliament का कोई प्रावधान नहीं है। इसके बजाय, सम्मेलन समितियों के माध्यम से मतभेदों को हल किया जाता है।
केस स्टडीज़
1. दहेज निषेध अधिनियम, 1961: यह पहला सफल उदाहरण था कि कैसे संयुक्त सत्र का उपयोग महत्वपूर्ण सामाजिक कानून पारित करने के लिए प्रभावी ढंग से किया जा सकता है। इस अधिनियम का उद्देश्य दहेज की सामाजिक बुराई पर अंकुश लगाना था, और संसद का संयुक्त अधिवेशन joint session of parliament में इसके पारित होने से विधायी गतिरोधों पर काबू पाने में ऐसे तंत्रों के महत्व को रेखांकित किया गया।
2. बैंकिंग सेवा आयोग निरसन विधेयक, 1978: संयुक्त सत्र के माध्यम से इस विधेयक के पारित होने से बैंकिंग क्षेत्र में चुनौतियों और नियामक सुधारों की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया। इसने दबावपूर्ण आर्थिक मुद्दों को संबोधित करने के लिए विधायी प्रक्रिया को क्रियान्वित किया।
3. आतंकवाद निवारण अधिनियम, 2002 (पोटा): यह सत्र विधेयक की विवादास्पद प्रकृति के कारण महत्वपूर्ण था, जिसे मजबूत समर्थन और विरोध मिला। संसद का संयुक्त अधिवेशन joint session of parliament ने संवेदनशील राष्ट्रीय सुरक्षा मुद्दों पर कानून बनाने की जटिलताओं को रेखांकित किया।
भारत के राष्ट्रपति सदन में आने के बाद सर्वप्रथम भारत का राष्ट्रगान हुआ। उसके बाद राष्ट्रपति ने दोनों सदनों को ससंबोधित करते हुए कहा के-
- आप सब लोगों का निर्वाचित सदस्यों का मैं सदन में हार्दिक स्वागत करती हूं।
1. देश सेवा और जन सेवा का ए सौभाग्य बहुत कम लोगों को मिलता है। मुझे पूरा विश्वास है आप राष्ट्रप्रथम के भावना के साथ अपना दायित्व निभाएंगे।
2. आप सभी लोग 140 करोड़ देशवासियों की आकांक्षाओं की पूर्ति का माध्यम बनेंगे।
3. मैं श्री ओम बिरला जी को लोकसभा अध्यक्ष की गौरवपूर्ण भूमिका की निर्वहन के लिए शुभकामनाएं देता हूं। उनके पास सार्वजनिक जीवन का बहुत व्यापक अनुभव है।
4. मुझे विश्वास है कि वह लोकतांत्रिक परंपराओं का अपने कौशल से नई ऊंचाई तक पहुंचाएंगे माननीय सदस्य गण अपना सहयोग देंगे।
5. मैं आज कोटि-कोटि देशवासियों की तरफ से भारत के चुनाव आयोग का भी आभार व्यक्त करती हु।
6. यह दुनिया का सबसे बड़ा चुनाव था। करीब 64 करोड़ मतदाताओं ने उत्साह और उमंग के साथ अपना कर्तव्य निभाया है।
7. इस बार भी महिला ने बढ़-चढ़कर मतदान में हिस्सा लिया है।
8. इस चुनाव की बहुत सुखद तस्वीर जम्मू कश्मीर में भी सामने आई।
9. कश्मीर घाटी में वोटिंग के अनेक दशकों के रिकॉर्ड टूटे।10. पहली बार इस लोकसभा चुनाव में घर पर जाकर भी मतदान कराया गया है।
11. मैं लोकसभा में जुड़ी चुनाव कर्मी की सराहना करती हु और अभिनंदन करती हु।
12. माननीय सदस्य गण 2024 के लक्ष्यों की चर्चा पूरी दुनिया में हो रही है।
13. दुनिया देख रही है कि भारत के लोगों में लगातार तीसरी बार स्थिर और पष्ट बहुमत की सरकार बनाई है।
14. 6 दशक बाद ऐसा हुआ है।
15. ऐसा समय में जब भारत के लोगों की आकांक्षाएं, सर्वोच्च स्तर पर है ,लोगों ने मेरी सरकार पर लगातार तीसरी बार भरोसा जताया है।
इस तरस हे महमहिम राष्ट्रपति जी भारत को सदन के माध्यम से सम्बोधित कर रही है।
अगर आप भारत के लोकसभा अध्यक्ष्य की भूमिका Role of the Speaker of the Lok Sabha in India के बारे में जानना चाहते हे तो निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे।
https://iasbharti.com/role-of-the-speaker-of-the-lok-sabha-in-india/#more-532
निष्कर्ष
- भारत की संसद का संयुक्त अधिवेशन joint session of parliament विधायी गतिरोधों को हल करने के लिए एक शक्तिशाली साधन है, जो यह सुनिश्चित करता है कि दोनों सदनों के बीच असहमति होने पर भी महत्वपूर्ण विधेयक पारित किए जा सकें। हालाँकि इसका उपयोग सीमित रहा है, लेकिन विधायी प्रक्रिया में इसका महत्व महत्वपूर्ण बना हुआ है।
- इसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, संवैधानिक प्रावधानों और व्यावहारिक अनुप्रयोगों को समझने से भारतीय संसदीय प्रणाली में इसकी भूमिका के बारे में जानकारी मिलती है। पिछले उदाहरणों की जाँच करके और अन्य देशों में प्रथाओं के साथ इसकी तुलना करके, छात्र भारत की विधायी प्रक्रिया के अनूठे पहलुओं और लोकतांत्रिक शासन को बनाए रखने के लिए मौजूद तंत्रों की सराहना कर सकते हैं।
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