Mullaperiyar Dam controversy
परिचय
मुल्लापेरियार बांध विवाद भारत में केरल और तमिलनाडु के बीच जल प्रबंधन से जुड़ा एक प्रमुख मुद्दा है। यह विवाद बांध की सुरक्षा, जल स्तर और संचालन अधिकारों को लेकर दशकों से चला आ रहा है। इस लेख में मुल्लापेरियार बांध के इतिहास, कानूनी पहलुओं, सुप्रीम कोर्ट के फैसलों, पर्यावरणीय प्रभावों और वर्तमान स्थिति का विस्तार से विश्लेषण किया गया है। जानिए इस जल विवाद की पूरी जानकारी और भविष्य की संभावनाएँ।
Mullaperiyar Dam controversy मुल्लापेरियार बांध विवाद भारत में जल संसाधन प्रबंधन से जुड़े सबसे महत्वपूर्ण अंतर-राज्यीय विवादों में से एक है।
मुल्लापेरियार बांध का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
बांध का निर्माण
- मुल्लापेरियार बांध का निर्माण 1895 में ब्रिटिश शासन के दौरान हुआ था।
- यह बांध केरल में पेरियार नदी पर स्थित है, लेकिन इसका उपयोग मुख्य रूप से तमिलनाडु द्वारा किया जाता है।
- बांध का निर्माण मुख्य रूप से दक्षिणी तमिलनाडु के शुष्क क्षेत्रों में सिंचाई और जल आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए किया गया था।
- उस समय, त्रावणकोर (अब केरल) और मद्रास प्रेसिडेंसी (अब तमिलनाडु) के बीच एक 999-वर्षीय लीज समझौता किया गया था, जिसमें तमिलनाडु को बांध संचालित करने का अधिकार दिया गया था।
संरचनात्मक विशेषताएँ
- यह एक ग्रेविटी बांध (Gravity Dam) है, जिसे चूना पत्थर और सुरखी मिश्रण से बनाया गया था।
- इसकी ऊँचाई 53.6 मीटर (176 फीट) और लंबाई 365.7 मीटर (1,200 फीट) है।
- यह पेरियार नदी से पानी को डायवर्ट कर वैगई नदी की ओर भेजता है, जिससे तमिलनाडु को सिंचाई और पीने के पानी की आपूर्ति होती है।
मुल्लापेरियार बांध विवाद का उद्भव
केरल की चिंताएँ
- बांध की संरचनात्मक कमजोरी: 1979 में केंद्रीय जल आयोग (CWC) ने बांध की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई थी, क्योंकि यह एक पुराना संरचना है।
- भूकंपीय क्षेत्र में स्थिति: 2011 में सिक्किम भूकंप के बाद बांध की स्थिरता को लेकर केरल सरकार ने संदेह जताया।
- जल स्तर को नियंत्रित करने की माँग: केरल चाहता है कि मुल्लापेरियार बांध का जल स्तर 136 फीट तक सीमित रखा जाए, जबकि तमिलनाडु इसे 142 फीट तक बनाए रखना चाहता है।
- नया बांध बनाने का प्रस्ताव: केरल ने मौजूदा बांध के स्थान पर एक नया बांध बनाने का प्रस्ताव रखा है, ताकि भविष्य में कोई आपदा न हो।
तमिलनाडु का पक्ष
- सिंचाई और जल आपूर्ति पर निर्भरता: तमिलनाडु के कई जिले इस बांध से निकलने वाले पानी पर निर्भर हैं।
- संरचना की सुरक्षा पर विश्वास: तमिलनाडु सरकार और जल संसाधन विभाग का कहना है कि बाँध सुरक्षित है और जल स्तर को कम करना अनावश्यक है।
- लीज समझौते का पालन: तमिलनाडु 1886 के लीज समझौते को मान्यता देने की माँग करता है, जिसके अनुसार उसे इस बांध का प्रबंधन करने का अधिकार है।
कानूनी घटनाक्रम और सुप्रीम कोर्ट के आदेश
- 2006: सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु को जल स्तर बढ़ाने की अनुमति दी, लेकिन केरल ने ‘केरल इरिगेशन एंड वाटर कंजर्वेशन एक्ट 2003’ पारित कर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को चुनौती दी।
- 2014: सुप्रीम कोर्ट ने केरल सरकार के कानून को असंवैधानिक करार दिया और जल स्तर 142 फीट तक बढ़ाने की अनुमति दी।
- 2025: सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में एक पर्यवेक्षी समिति गठित की है, जो बांध की सुरक्षा और विवादों को हल करने के लिए एक रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी।
पर्यावरणीय प्रभाव और सुरक्षा चिंताएँ
- जलवायु परिवर्तन और वर्षा परिवर्तनशीलता: केरल का दावा है कि जलवायु परिवर्तन और अनियमित मानसून पैटर्न से बांध की सुरक्षा को खतरा हो सकता है।
- भूकंप और संरचनात्मक क्षति: पेरियार बेसिन भूकंपीय क्षेत्र में आता है, जिससे यहां भविष्य में बड़े भूकंप की संभावना बनी रहती है।
- वन्यजीव और पारिस्थितिकीय प्रभाव: मुल्लापेरियार बांध पेरियार टाइगर रिजर्व के पास स्थित है, जिससे इसके जलस्तर में बदलाव वन्यजीवों को प्रभावित कर सकता है।
वर्तमान स्थिति और भविष्य की संभावनाएँ
- सुप्रीम कोर्ट की पर्यवेक्षी समिति की रिपोर्ट के आधार पर आगे की कार्रवाई की जाएगी।
- यदि समिति तमिलनाडु के दावों को सही ठहराती है, तो जल स्तर 142 फीट तक बढ़ाया जा सकता है।
- यदि केरल की चिंताएँ उचित पाई जाती हैं, तो नया बांध बनाने का प्रस्ताव तेजी से लागू किया जा सकता है।
- दोनों राज्यों को जल सुरक्षा, कानूनी दायित्वों और पर्यावरणीय स्थिरता के बीच संतुलन बनाना होगा।
निष्कर्ष
मुल्लापेरियार बांध विवाद केवल एक जल विवाद नहीं है, बल्कि यह भारत में सहकारी संघवाद, जल संसाधन प्रबंधन और पर्यावरणीय सुरक्षा के बीच संतुलन बनाने की चुनौती भी प्रस्तुत करता है। सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्देश से इस विवाद के समाधान की उम्मीद बढ़ी है, लेकिन अंतिम समाधान के लिए दोनों राज्यों के बीच सहयोग और संवाद आवश्यक होगा।