काकोरी षडयंत्र Kakori Conspiracy

1925 का काकोरी षडयंत्र: इतिहास के पन्नों की खोज।

आज हम काकोरी षडयंत्र Kakori Conspiracy  के बारे में जानने वाले है।

काकोरी षडयंत्र Kakori Conspiracy

काकोरी षड़यंत्र, जिसे काकोरी ट्रेन डकैती के नाम से भी जाना जाता है, ने ब्रिटिश शासन के खिलाफ स्वतंत्रता के लिए भारत के संघर्ष में एक महत्वपूर्ण अध्याय को चिह्नित किया। यह साहसिक कार्य 9 अगस्त, 1925 को भारत के वर्तमान उत्तर प्रदेश के एक छोटे से शहर काकोरी के पास हुआ था। हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए) से जुड़े क्रांतिकारियों के नेतृत्व में, इस घटना ने न केवल ब्रिटिश साम्राज्यवादियों के खिलाफ प्रहार करने की कोशिश की, बल्कि स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान प्रतिरोध और बलिदान का प्रतीक भी बन गई।

पृष्ठभूमि:

काकोरी षडयंत्र को समझने के लिए उस समय के सामाजिक-राजनीतिक माहौल में गहराई से जाना होगा। 20वीं सदी की शुरुआत में भारत में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ राष्ट्रवादी भावनाओं और उत्साह में वृद्धि देखी गई। महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन का उद्देश्य स्वशासन की मांग के लिए ब्रिटिश संस्थानों और वस्तुओं का बहिष्कार करना था। इसके साथ ही, क्रांतिकारी गतिविधियों की एक समानांतर धारा उभरी, जिसका नेतृत्व उन व्यक्तियों ने किया जो सशस्त्र प्रतिरोध में विश्वास करते थे।

काकोरी षडयंत्र Kakori Conspiracy

हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचआरए), जिसे बाद में हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन (एचएसआरए) नाम दिया गया, ने भारत के स्वतंत्रता संग्राम के इस चरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। समाजवादी और मार्क्सवादी विचारधाराओं से प्रभावित होकर, एचआरए ने सशस्त्र क्रांति के माध्यम से ब्रिटिश शासन को उखाड़ फेंकने की मांग की। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान, चन्द्रशेखर आज़ाद और उनके हमवतन इस आंदोलन में प्रमुख व्यक्ति थे, काकोरी एक ऐतिहासिक क्षण बन गया।

काकोरी षडयंत्र की योजना बनाना:

काकोरी षडयंत्र Kakori Conspiracy

हिंदुस्तान रिपब्लिकन संगठन का सबसे प्रमुख कार्य काकोरी डकैती था। 9 अगस्त 1925 को संगठन के सदस्यों ने सहारनपुर -लखनऊ लाइन पर 8 डाउन रेलगाड़ी को काकोरी नामक गांव में रोक कर रेल विभाग के खजाने को लूट लिया। सरकार इस घटना से अत्यंत क्रोधित हो गई। उसने भारी संख्या में क्रांतिकारियोंको गिरफ्तार कर उन पर काकोरी षड्यंत्र का मुकदमा चलाया। राम प्रसाद बिस्मिल ,अशफाक उल्ला खान ,राजेंद्र लाहिड़ी तथा रोशन सिंह को फांसी दे दी गई। चार को आजीवन कारावास की सजा देकर अंडमान भेज दिया गया। तथा 17 अन्य लोगों को लंबी सजा सुनाई गई। चंद्रशेखर आजाद फरार हो गए। काकोरी षड्यंत्र कांड से उत्तर भारत के क्रांतिकारियों को एक बड़ा आघात लगा। लेकिन इससे क्रांतिकारीयोंका का पूरी तरह दामन नहीं हो सका.

काकोरी षडयंत्र Kakori Conspiracy

काकोरी षड्यंत्र केस से क्रांतिकारी और भड़क उठे। तथा कई और युवा क्रांतिकारी संघर्ष के लिए तैयार हो गए। उत्तर प्रदेश में शिव वर्मा ,जयदेव कपूर तथा विजय कुमार सिंह तथा पंजाब में भगत सिंह, सुखदेव तथा भगवती चरण वोहरा ने चंद्रशेखर आजाद के नेतृत्व में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन को पुनर संगठित करने का काम प्रारंभ कर दिया। इन युवा क्रांतिकारी पर धीरे-धीरे समाजवादी विचारधारा का प्रभाव भी पढ़ने लगा। दिसंबर 1928 में दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में युवा क्रांतिकारियों की एक बैठक आयोजित की गई। जिसमें युवा क्रांतिकारियों ने सामूहिक नेतृत्व को स्वीकार तथा समाजवाद की स्थापना को अपना लक्ष्य निर्धारित किया। बैठक में हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन का नाम बदलकर हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन रख दिया गया.

स्वतंत्रता आंदोलन पर प्रभाव:

काकोरी षडयंत्र का भारत के स्वतंत्रता संग्राम पर गहरा प्रभाव पड़ा। जबकि यह अधिनियम अपने आप में ब्रिटिश शासन की आर्थिक नींव पर प्रहार करने का एक साहसी प्रयास था, बाद के परीक्षणों और निष्पादन ने प्रतिरोध की भावना को प्रेरित किया। काकोरी क्रांतिकारियों के बलिदान की गूंज पूरे देश में सुनाई दी, जिससे कार्यकर्ताओं की एक नई लहर को औपनिवेशिक शासन के खिलाफ संघर्ष में शामिल होने की प्रेरणा मिली।

इस घटना ने स्वतंत्रता आंदोलन के व्यापक स्पेक्ट्रम के भीतर वैचारिक विविधता को भी उजागर किया। जबकि गांधी के नेतृत्व में अहिंसक प्रतिरोध गति पकड़ रहा था, काकोरी षड्यंत्र ने क्रांतिकारियों की एक समानांतर धारा की उपस्थिति को रेखांकित किया जो स्वतंत्रता प्राप्त करने के साधन के रूप में सशस्त्र संघर्ष में विश्वास करते थे।

विरासत और स्मरणोत्सव:

काकोरी षडयंत्र Kakori Conspiracy

काकोरी षड्यंत्र ने भारत की स्वतंत्रता की खोज पर एक अमिट छाप छोड़ी, जिसमें क्रांतिकारी शहीद और बलिदान के प्रतीक बन गए। राम प्रसाद बिस्मिल, अशफाकुल्ला खान और उनके साथियों की फाँसी ने स्वतंत्रता के प्रति व्यक्तियों की प्रतिबद्धता को मजबूत किया। उनकी विरासत पीढ़ियों को प्रेरित करती रहती है और काकोरी षडयंत्र को इन क्रांतिकारियों द्वारा किए गए बलिदान के स्मरण दिवस के रूप में प्रतिवर्ष मनाया जाता है।

1925 का काकोरी षडयंत्र भारत के स्वतंत्रता संग्राम की बहुमुखी प्रकृति के प्रमाण के रूप में खड़ा है। ट्रेन लूटने का साहसिक कार्य केवल एक आपराधिक कृत्य नहीं था, बल्कि ब्रिटिश शासन के आर्थिक आधारों पर प्रहार करने का एक रणनीतिक कदम था। बाद के परीक्षणों और फाँसी ने काकोरी क्रांतिकारियों को प्रतिरोध और बलिदान के प्रतीक में बदल दिया, जिससे औपनिवेशिक उत्पीड़न के खिलाफ भारत की लड़ाई की कहानी में एक नया अध्याय जुड़ गया।

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