Withdrawal of troops in Depsang and Demchok between India and China
परिचय
Withdrawal of troops in Depsang and Demchok between India and China: देपसांग और डेमचोक में भारत और चीन के सैनिक पीछे हट रहे हैं। यह समझौता पारंपरिक गश्त और चराई क्षेत्रों को बहाल करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है। जानें कैसे यह कदम सीमा पर शांति और स्थिरता को मजबूत करेगा।
भारत और चीन के बीच वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) पर लंबे समय से जारी गतिरोध को सुलझाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम उठाया गया है। पूर्वी लद्दाख के देपसांग और डेमचोक क्षेत्रों से सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है। यह कदम न केवल दोनों देशों के बीच स्थिरता बहाल करने का प्रयास है, बल्कि क्षेत्रीय शांति के लिए भी आवश्यक है।
इस लेख में, हम विस्तार से समझेंगे कि कैसे भारत और चीन के बीच यह सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया हो रही है, इसके राजनीतिक और सुरक्षा प्रभाव क्या हैं, और यह भारत की आत्मनिर्भरता की नीति से कैसे संबंधित है।
देपसांग और डेमचोक: क्यों हैं ये क्षेत्र महत्वपूर्ण
- देपसांग और डेमचोक क्षेत्र पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा पर स्थित हैं। ये क्षेत्र भारत और चीन के बीच सैन्य तनाव के प्रमुख स्थान रहे हैं। दोनों देशों के बीच 2020 में हुए सैन्य गतिरोध के दौरान इन क्षेत्रों में तैनाती और गश्त पर विवाद हुआ था।
- देपसांग क्षेत्र एक रणनीतिक रूप से महत्वपूर्ण स्थान है, जहां से भारतीय सैनिक काराकोरम दर्रे के पास गश्त करते थे। चीन ने यहां भारतीय गश्ती दल को रोका, जिससे तनाव और बढ़ गया। वहीं, डेमचोक क्षेत्र पारंपरिक चराई क्षेत्रों के लिए जाना जाता है, जहां चीनी सैनिकों ने भारतीय चरवाहों की गतिविधियों को बाधित किया।
सैनिकों की वापसी का महत्व
- सैनिकों की वापसी से न केवल क्षेत्र में स्थिरता आएगी, बल्कि पारंपरिक गश्ती और चराई गतिविधियों की बहाली भी होगी। यह दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास बढ़ाने का एक महत्वपूर्ण कदम है। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अनुसार, यह प्रक्रिया दोनों देशों के बीच “समान और पारस्परिक सुरक्षा” के सिद्धांतों के आधार पर हो रही है।
देपसांग और डेमचोक के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य
क्षेत्र | महत्वपूर्ण बिंदु |
---|---|
देपसांग | भारतीय गश्त रोकी गई थी |
डेमचोक | पारंपरिक चराई बाधित |
विघटन की प्रक्रिया
- सूत्रों के अनुसार, सैनिकों की वापसी की प्रक्रिया मंगलवार से शुरू हो गई थी और इसमें कुछ दिनों का समय लगेगा। इसके तहत दोनों पक्षों द्वारा बनाए गए अस्थायी ढांचे हटाए जाएंगे, और भू-आकृतियों को बहाल किया जाएगा। एक बार यह प्रक्रिया पूरी हो जाती है, तो पारंपरिक गश्ती व्यवस्था फिर से शुरू हो जाएगी।
चीन की पुष्टि और समझौते की स्थिति
- चीन ने भी इस समझौते की पुष्टि की है और कहा है कि यह वार्ताओं के परिणामस्वरूप हुआ है। चीन ने यह भी कहा है कि उसने इस समझौते में 2020 के पहले की स्थिति को बहाल करने पर सहमति जताई है।
भारत-चीन समझौतों की प्रमुख तिथियां और घटनाक्रम
वर्ष | समझौता/घटना | मुख्य बिंदु |
---|---|---|
1962 | भारत-चीन युद्ध | वास्तविक नियंत्रण रेखा (LAC) की स्थापना |
1993 | सीमा शांति समझौता | शांति और स्थिरता बनाए रखने के लिए |
2020 | पूर्वी लद्दाख में गतिरोध | कई घर्षण बिंदुओं पर तनाव |
2024 | सैनिकों की वापसी | देपसांग और डेमचोक से वापसी की प्रक्रिया |
गश्त और चराई व्यवस्था की बहाली
- 2020 के गतिरोध के कारण देपसांग में भारतीय गश्त बंद हो गई थी, जबकि डेमचोक में पारंपरिक चराई क्षेत्रों में बाधा उत्पन्न हुई थी। अब, इस समझौते के बाद, यह स्थिति बहाल होने जा रही है। इसका मतलब है कि भारतीय सैनिक फिर से इन क्षेत्रों में गश्त कर सकेंगे, और स्थानीय चरवाहे अपने मवेशियों को चराने की गतिविधियां फिर से शुरू कर सकेंगे।
आत्मनिर्भरता और वैश्विक सहभागिता
- रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने स्पष्ट किया कि भारत की आत्मनिर्भरता की नीति का मतलब वैश्विक समुदाय से अलग होना नहीं है। बल्कि यह नीति वैश्विक सहयोग और साझेदारी को बढ़ावा देने के उद्देश्य से है। आत्मनिर्भरता का लक्ष्य यह है कि भारत अपनी विशेषज्ञता साझा कर सके और वैश्विक प्रयासों में योगदान दे सके।
- यह भी माना जाता है कि अगर भारत ने अतीत में रक्षा को विकास के साथ जोड़कर देखा होता, तो वह आज आत्मनिर्भरता के क्षेत्र में बहुत पहले ही आगे बढ़ चुका होता। लंबे समय तक आयात पर निर्भरता के कारण भारत ने अपने रक्षा उद्योग के विकास और नवाचार के अवसर खो दिए थे।
आत्मनिर्भर भारत के पांच प्रमुख स्तंभ
- रक्षा उद्योग में स्वदेशी उत्पादन: 25%
- वैश्विक साझेदारी: 20%
- आधुनिक सैन्य तकनीक का विकास: 20%
- आर्थिक विकास में योगदान: 15%
- नवाचार और अनुसंधान: 20%
सुरक्षा और राजनीतिक प्रभाव
- भारत और चीन के बीच यह सैनिकों की वापसी का समझौता सुरक्षा और राजनीतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। एक तरफ यह क्षेत्रीय शांति की दिशा में एक कदम है, तो दूसरी तरफ यह भारत की कूटनीतिक और सैन्य मजबूती को भी दर्शाता है।
निष्कर्ष
- भारत और चीन के बीच देपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी से न केवल क्षेत्रीय स्थिरता में सुधार होगा, बल्कि दोनों देशों के बीच आपसी विश्वास और सहयोग को भी बढ़ावा मिलेगा। इस समझौते से गश्त और चराई गतिविधियों की बहाली होगी, जिससे स्थानीय नागरिकों और सैनिकों दोनों को लाभ होगा।