राष्ट्रीय आय की अवधारणा ( Concept Of National Income )

राष्ट्रीय आय की अवधारणा ( Concept Of National Income )

Concept Of National Income : जानिए किसी देश की कुल आर्थिक गतिविधियों को मापने का तरीका, इसके प्रमुख घटक, मापन विधियाँ और अर्थव्यवस्था में इसका महत्व। सरल भाषा में समझें राष्ट्रीय आय के विभिन्न पहलू और इसके प्रभाव।

आज हम राष्ट्रीय आय की अवधारणा ( Concept Of National Income ) के बारे में जानने वाले है।

राष्ट्रीय आय की अवधारणा ( Concept Of National Income )

अर्थव्यवस्था में राष्ट्रीय आय एक महत्वपूर्ण अवधारणा है। अर्थशास्त्र एक किसी अर्थव्यवस्था की समझ के लिए राष्ट्रीय आय की गणना से जुड़ी अवधारणाओं का स्पष्ट होना आवश्यक है। वैसे तो इसका पता सामान्य तौर पर देश और वहां के लोगों की खुशहाली और उनकी प्रसन्नता से लगाते हैं। यह तरीका आज भी इस्तेमाल होता है। हालांकि हम यह जान चुके हैं कि ऐसे किसी भी समाज से बेहतर और कुशल होने का अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। इस राय के पीछे कई वजह भी है।

जब 1990 के शुरुआती सालों में मानव विकास सूचकांक की शुरुआत हुई, इस सूचक अंक में किसी भी देश में प्रति व्यक्ति आय को काफी प्राथमिकता दी गई थी। लेकिन समाज में शिक्षा और स्वास्थ्य की स्थिति तभी बेहतर होती है जब इन क्षेत्रों में भारी पैमाने पर निवेश किया जाता हो। यही वजह है कि विकास या मानव विकास का केंद्र बिंदु आय को माना जाता है.

एक आदमी की आय को आकलित किया जा सकता है इस तरह से पूरे देश की आय का आकलन संभव है, और पूरे विश्व की आय का अनुमान लगाना संभव है। हालांकि पूरे विश्व की आय को मापने का तरीका मुश्किल जरूर है। बहरहाल किसी भी देश की आय को आकलित करने के लिए अर्थशास्त्र में चार दृष्टिकोण है-
यह चार दृष्टिकोण है-

राष्ट्रीय आय की अवधारणा ( Concept Of National Income )

  1. जीडीपी GDP
  2.  एनडीपी NDP
  3. जीएनपी GNP
  4. एनएनपी NNP

यह सब किसी भी देश की राष्ट्रीय आय के रूप में है ,लेकिन सब एक दूसरे से अलग है यह अलग-अलग किसी भी देश की आय के बारे में अपने खास अंदाज में विश्लेषण करते हैं।
हम इन चारों दृष्टिकोण के बारे में अलग-अलग अध्ययन करेंगे

जीडीपी. ( GDP)

सकल घरेलू उत्पाद (ग्रॉस डॉमेस्टिक प्रोडक्ट)

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किसी भी अर्थव्यवस्था में एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का अंतिम (फाइनल )मौद्रिक मूल्य है। भारत के लिए यह एक वर्ष 1 अप्रैल से 31 मार्च तक है। इसका आकलन राष्ट्रीय निजी उपभोग ,सकल निवेश ,सरकार यह वह व्यापार शेष (निर्यात- आयात) के योगफल द्वारा भी किया जाता है। इस विधि में देश के बाहर उत्पादित आयतन के व्यय को तथा उन देश निर्मित वस्तुओं एवं सेवाओं का मूल्य जुड़ा होता है जिन्हें देश में नहीं बेचा गया है.

इस दृष्टिकोण में इस्तेमाल किए गए पदों को समझना आवश्यक है। अर्थव्यवस्था और वाणिज्य में ग्रास का मतलब वह होता है जो गणित में कुल का मतलब होता है। डोमेस्टिक का मतलब सभी अर्थव्यवस्थाओं में किसी भी देश और उसकी पूंजी के दायरे में होने वाली आर्थिक गतिविधि है। प्रोडक्ट का मतलब सामान और सेवा है। जबकि फाइनल का मतलब है कि किसी भी उत्पादन में अब वैल्यू एडिशन का मौका नहीं है.

जीडीपी के विभिन्न उपयोग निम्न है

1) जीडीपी में होने वाला वार्षिक प्रतिशत परिवर्तन ही किसी अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर (ग्रोथ रेट) है। उदाहरण के लिए किसी देश की जीडीपी 107 रुपया है और यह बीते साल से ₹7 ज्यादा है तो उसे देश की अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर 7% है। जब हम किसी देश की अर्थव्यवस्था को ग्रोइंग इकोनामी कहते हैं तो मतलब यह होता है कि देश की आय परिमाणात्मक रूप से बढ़ रही है.

2) यह परिमाणात्मक दृष्टि कौन है। इसके आकार से देश की अंतरिक शक्ति का पता चलता है। लेकिन देश के अंदर उत्पादों और सेवाओं की गुणवत्ता के स्तर का पता नहीं चल पाता है.

3) अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष और विश्व बैंक की ओर से सदस्य देशों का तुलनात्मक विश्लेषण इसके आधार पर ही किया जाता है।

NDP. शुद्ध घरेलु उत्पाद  

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शुद्ध घरेलू उत्पाद किसी भी अर्थव्यवस्था का वह जीडीपी है जिसमें से 1 वर्ष के दौरान होने वाली मूल्य कटौती को घटाकर प्राप्त किया जाता है। वास्तव में जिन संसाधनों द्वारा उत्पादन किया जाता है उपयोग के दौरान उनके मूल्य में कमी हो जाती है जिसका मतलब उसे सामान का घिसने (DEPRECIATION ) या टूटने -फूटने से होता है। इसमें मूल्य कटौती की दर सरकार निर्धारित करती है। भारत में यह फैसला केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग मंत्रालय करता है। यह एक सूची जारी करता है। जिसकी मुताबिक विभिन्न उत्पादों में होने वाली मूल्य कटौती (घिसावट) की दर तय होती है।

उदाहरण के लिए भारत में रिहायशी निवास की सालाना मूल्य कटौती एक प्रतिशत है वही बिजली से चलने वाले पंखे के मूल्य में 10% की कमी होती है। अर्थशास्त्र में मूल्य कटौती का इस्तेमाल किस तरह से होता है यह उसका एक उदाहरण है। दूसरा तरीका यह भी है जब बाहरी क्षेत्र में उसका इस्तेमाल होता है। जब घरेलू मुद्रा विदेशी मुद्रा के सामने कमजोर होता है। अगर बाजार की व्यवस्था में घरेलू मुद्रा का मूल्य विदेशी मुद्रा के सामने कम होता है ,तो उसे घरेलू मुद्रा का अवमूल्यन कहते हैं। यह घरेलू मुद्रा में दर्ज गिरावट से तय होता है.

इस तरह से देखे तो NDP =GDP – घिसावट।

ऐसे में जाहिर है कि किसी भी वर्ष में किसी भी अर्थव्यवस्था में एनडीपी हमेशा उस साल की जीडीपी से कम होगा। अवमूल्यन को शून्य करने का कोई भी तरीका नहीं है। लेकिन मानव समाज इस अवमूल्यन को कम से कम करने के लिए कई तरकीब में निकल चुका है.

एनडीपी (NDP )का अलग-अलग प्रयोग निम्न है-

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a) घरेलू इस्तेमाल के लिए इसका इस्तेमाल घिसावट के चलते होने वाले नुकसान को समझने के लिए किया जाता है। इतना ही नहीं खास समय अवधि के दौरान उद्योग धंधे और कारोबार में अलग-अलग क्षेत्र की स्थिति का अंदाजा भी इससे लगाया जा सकता है.

b) अनुसंधान और विकास के क्षेत्र में अर्थव्यवस्था की उपलब्धि को दर्शाने के लिए भी इसका इस्तेमाल किया जाता है.

लेकिन एनडीपी का इस्तेमाल दुनिया की अर्थव्यवस्थाओं की तुलना के लिए नहीं किया जाता है। इसकी वजह है दुनिया की अलग-अलग अर्थव्यवस्थाएं अपने यहां मूल्य कटौती की अलग-अलग दरे निर्धारित करती है। यह दर मूल रूप से तार्किक आधार पर तय होता है। (उदाहरण के लिए भारत में मकान में होने वाले मूल्य कटौती की दर को ले ,मकान बनाने में सीमेंट,इट , बालू और लोहे की छड़ इत्यादि का इस्तेमाल होता है। और यह माना जाता है कि यह आने वाले 100 साल तक चलेंगे। लिहाजा यहां मूल्य कुटोती की दर 1 प्रतिशत सालाना होती है।)

हालांकि यह जरूरी नहीं है कि हर बार इसका फैसला तार्किकता के आधार पर ही हो। उदाहरण के लिए फरवरी 2002 में भारी वाहन ऐसे वाहन जिम 6 या उससे ज्यादा चक्के हो )में मूल्य कटौती की दर 20% थी। लेकिन उसे आगे चलकर 40% कर दिया गया। ऐसा देश में भारी वाहन की बिक्री को बढ़ाने के उद्देश्य किया गया। दर को दोगुना करने के लिए कोई तर्क सही नहीं हो सकता।मुलत ; मूल्य कटौती और उसकी दरे भी आधुनिक सरकारों के लिए आर्थिक नीतियों को बनाने के लिए एक हथियार है। अर्थव्यवस्था में एवं मूल्यांकन का तीसरी तरह से इस्तेमाल किस रूप में होता है.

GNP (Gross national product )

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किसी अर्थव्यवस्था में ( ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट ) उस आय को कहते हैं जो जीडीपी में विदेशों से होने वाली आय को जोड़कर हासिल होता है। इसमें देश की सीमा से बाहर होने वाले आर्थिक गतिविधियों को भी शामिल किया जाता है।

विदेश से होने वाली आय में निम्नलिखित पहलू शामिल है-

1) निजी प्रेषण ( PRIVATE REMITTANCES)

भारत के नागरिक दुनिया के दूसरे देशों में काम करते हैं। और दुनिया के दूसरे देशों के नागरिक भारत में भी काम करते हैं। इन लोगों के निजी लेने देने से जो आमदनी होती है उसे निजी प्रेषण से होने वाली आमदनी कहते हैं। भारत 1990 के दशक की शुरुआत तक हमेशा फायदे में रहा.क्योंकि बड़ी संख्या में भारतीय लोग खाड़ी देशों में काम कर रहे थे।

हालांकि खाड़ी युद्ध के चलते इसमें भारी कमी देखने को मिली। इसके बाद भारतीय अमेरिका और अन्य यूरोपीय देशों में काम करने के लिए जाते रहे। आज भारत दुनिया में निजी प्रेषण के जरिए सर्वाधिक आमदनी करने वाला देश है। विश्व बैंक के अनुमान के मुताबिक 2015 में भारत को इस तरीके से 72 अरब डॉलर की आमदनी का अनुमान है। 2013 में भारत को 70 अरब डॉलर की आमदनी हुई थी।

2) विदेशी कर्ज पर ब्याज ( इंट्रेस्ट ऑफ़ द एक्सटर्नल लोन्स)

ब्याज के भुगतान पर कुल फायदा या नुकसान। इसमें एक स्थिति वह होती जहां एक अर्थव्यवस्था दूसरे देशों को कर्ज पर रकम देता है। तो उसे ब्याज की आमदनी होती है। एक दूसरी स्थिति भी है जब कोई अर्थव्यवस्था किन्हीं दूसरे देशों से कर्ज लेता है ,तो उसे ब्याज का भुगतान करना होता है।

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3) विदेशी अनुदान
इसके अंतर्गत भारत द्वारा प्राप्त किए गए एवं दूसरे देशों को दिए गए अनुदान का शेष शामिल किया जाता है। काफी निम्न ही सही लेकिन भारत को अन्य विदेशी क्षेत्र से अनुदान की प्राप्ति होती है। ( यथा यूएनडीपी एवं राष्ट्र से) जो मूलत मानवीय आधारों पर दिए जाते हैं। वैश्वीकरण के प्रारंभ के बाद भारत का अनुदान में बढ़ता गया है। यह भारत के राजनीतिक प्रक्रिया का एक अभिन्न अंग है। जो भारत को अंतरराष्ट्रीय पहल पर उच्च भूमिका अदा करने के प्रयास से जुड़ा है.

जीएनपी के विभिन्न प्रयोग इस तरह से है-

a) इस राष्ट्रीय आय के मुताबिक अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (आईएमएफ ) दुनिया के देशों की रैंकिंग तय करता है। इसके आधार पर IMF देशों की उनकी क्रय शक्ति तुल्यता ( PPP पीपीपी ) के आधार पर रैंक करता है। इस आधार पर भारत दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है।

b) राष्ट्रीय आय को आंकने के लिहाज से जीएनपी, जीडीपी की तुलना में विस्तृत पैमाने में है। क्योंकि यह अर्थव्यवस्था की परिमाणात्मक के साथ-साथ गुणात्मक तरीके से भी पेश करता है. किसी भी अर्थव्यवस्था की आंतरिक के साथ-साथ बाहरी ताकत को भी बताता है.

c) यह किसी भी अर्थव्यवस्था के पैटर्न और उसके उत्पादन के व्यवहार को समझने में काफी मदद करता है। यह बताता है कि बाहरी दुनिया किसी देश के खास उत्पादन पर कितने निर्भर है। और वह उत्पाद दुनिया के देशों पर कितना निर्भर है। यह अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में किसी भी अर्थव्यवस्था को अपने मानव संसाधनों के बारे में उनकी संख्या और उनके होने वाली आमदनी के बारे में बताता है। इसके अलावा यह किसी भी अर्थव्यवस्था के दुनिया की दूसरी अर्थव्यवस्थाओं के साथ रिश्ते पर भी रोशनी डालता है। यह दुनिया के देशों से लिए गए कर्ज या फिर दूसरे देशों को दिए गए कर्ज से पता चलता है.

एनएनपी. NNP

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ग्रॉस नेशनल प्रोडक्ट( जीएनपी ) में से मूल्य कटौती को घटाने के बाद जो आय बचती है ,उसे ही किसी अर्थव्यवस्था का शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद NNP कहते हैं.

यानी एनएनपी को हम इस तरह से हासिल कर सकते हैं-
NNP =GNP – घिसावट

या फिर ,
NNP =GDP + विदेशों से होने वाली आय – मूल्य कटौती

NNP के विभिन्न उपयोग इस तरह से है –

1) यह किसी भी अर्थव्यवस्था की राष्ट्रीय आय है। यद्यपि GDP ,NDP ,और GNP सभी राष्ट्रीय आय ही है. लेकिन नेशनल इनकम के तौर पर नहीं लिखा जाता।

2) यहां किसी भी देश के राष्ट्रीय आय को आकलित करने का सबसे बेहतरीन तरीका है.

3) जब हम एनएनपी को देश की कुल आबादी से भाग देते हैं तो उससे देश की प्रति व्यक्ति आय का पता चलता है। यह प्रति व्यक्ति साल ना आए होती है। यहा एक मूल बात पर भी ध्यान देने की जरूरत है। कि अलग-अलग देश में मूल्य कटौती की दर अलग-अलग होती है। ऐसे में किसी देश में मूल्य कटौती की दर ज्यादा होने पर प्रति व्यक्ति की आय में कमी होती है।

यही वजह है कि मूल्य कटौती का इस्तेमाल नीति निर्माण में हथियार के तौर पर किया जाता है। हालांकि अर्थव्यवस्थाओं को किसी भी संपत्ति के मूल्य में कटौती करने का प्रस्ताव दिया जाता है। जब आईयमएफ, विश्व बैंक और एशियाई विकास बैंक जैसी वित्त संस्थाएं नेशनल इनकम के आधार पर देश की तुलना करती है.

राष्ट्रीय आय की अवधारणाएं क्या हैं

राष्ट्रीय आय किसी देश की कुल आर्थिक गतिविधियों का माप है, जो एक निश्चित अवधि (आमतौर पर एक साल) में देश के नागरिकों द्वारा उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य होता है। इसे विभिन्न तरीकों से मापा जा सकता है, जिनमें से प्रमुख हैं:

  1. सकल घरेलू उत्पाद (GDP): यह किसी देश के भीतर एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं का कुल मूल्य होता है।
  2. सकल राष्ट्रीय उत्पाद (GNP): इसमें GDP के साथ विदेशों से प्राप्त आय को भी जोड़ा जाता है, यानी देश के नागरिकों द्वारा विदेशों में कमाई गई आय भी शामिल होती है।
  3. शुद्ध राष्ट्रीय उत्पाद (NNP): GNP में से पूंजी के मूल्यह्रास (depreciation) को घटाने के बाद मिलने वाला मूल्य है।
  4. राष्ट्रीय आय (NI): यह NNP में से अप्रत्यक्ष करों को घटाकर और सब्सिडी को जोड़कर प्राप्त की जाती है। यह आय का वह हिस्सा है जो देश के निवासियों को वास्तविक रूप से मिलता है।
  5. व्यक्तिगत आय (Personal Income): यह राष्ट्रीय आय का वह हिस्सा है जो व्यक्तियों को मिलता है, जिसमें से कॉर्पोरेट कर और अन्य कटौतियाँ घटा दी जाती हैं।
  6. व्यय योग्य आय (Disposable Income): यह वह आय है जो व्यक्तियों के पास करों को चुकाने के बाद बचती है, जिसका वे उपभोग या बचत के रूप में उपयोग कर सकते हैं।

राष्ट्रीय आय की यह अवधारणाएं एक देश की आर्थिक स्थिति को समझने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं और यह बताती हैं कि किसी देश की अर्थव्यवस्था कितनी मजबूत या कमजोर है।

राष्ट्रीय आय मापने की विधियाँ

राष्ट्रीय आय मापने के लिए तीन प्रमुख विधियाँ हैं, जो किसी देश की आर्थिक गतिविधियों का आकलन करती हैं:

  1. उत्पादन विधि (Production Method): इसे “मूल्य वर्धन विधि” भी कहा जाता है। इस विधि में देश के भीतर एक वर्ष में उत्पादित सभी वस्तुओं और सेवाओं के कुल मूल्य का आकलन किया जाता है। इसमें हर उद्योग द्वारा जोड़ी गई “मूल्य वर्धन” का योग लिया जाता है, यानी कच्चे माल से लेकर तैयार वस्तुओं तक की प्रक्रिया में होने वाले मूल्य वृद्धि का हिसाब होता है।
  2. आय विधि (Income Method): इस विधि में सभी आर्थिक एजेंटों (जैसे मजदूर, पूंजीपति, व्यापारी) को उनके योगदान के बदले में प्राप्त आय को गिना जाता है। इसमें मजदूरी, किराया, ब्याज और लाभ को जोड़कर राष्ट्रीय आय मापी जाती है। यह देश में उत्पादित वस्तुओं और सेवाओं से उत्पन्न कुल आय का आकलन करता है।
  3. व्यय विधि (Expenditure Method): इसमें देश के भीतर एक वर्ष में की गई कुल खर्च (व्यय) का आकलन किया जाता है। इसमें उपभोग व्यय, निवेश व्यय, सरकारी खर्च और शुद्ध निर्यात (निर्यात – आयात) शामिल होते हैं। इस विधि के अनुसार, जितनी आय होती है, वह कहीं न कहीं खर्च की जाती है, इसलिए व्यय के रूप में राष्ट्रीय आय को मापा जा सकता है।

इन तीनों विधियों से प्राप्त आंकड़ों से राष्ट्रीय आय का सही-सही आकलन किया जा सकता है, और यह देश की आर्थिक प्रगति को समझने में मदद करती हैं।

राष्ट्रीय आय की गणना कौन करता है

भारत में राष्ट्रीय आय की गणना का कार्य केन्द्रीय सांख्यिकी कार्यालय (CSO) करता है, जो राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय (NSO) का हिस्सा है। यह कार्यालय भारत सरकार के सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय के अधीन आता है।

CSO विभिन्न आर्थिक आंकड़ों को एकत्रित करता है, जैसे उत्पादन, आय, और व्यय संबंधी जानकारी, और इन आंकड़ों के आधार पर राष्ट्रीय आय का आकलन करता है। इसके अलावा, CSO राष्ट्रीय आय के विभिन्न घटकों जैसे GDP, GNP, और NNP की गणना भी करता है।

CSO की गणना का उद्देश्य सरकार और नीति निर्माताओं को देश की आर्थिक स्थिति के बारे में सटीक जानकारी प्रदान करना होता है, ताकि वे सही नीतियों और योजनाओं का निर्माण कर सकें। इसके अलावा, ये आंकड़े विभिन्न अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा भी उपयोग किए जाते हैं।

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